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________________ १८४ चरणानया। -२ इवांस सबल दोष पूत्र ३६८ १२. आउट्टियाए पाणाइवायं करेमाणे सबले । (१२) जान-बूझ कर जीवों की हिमा करने वाला शबल दोष युक्त है। १३ बाउट्टिायए मुसावायं बदमाणे सञ्चले। (१३) जान-बूझ कर असत्य बोलने वाला शबल दोषयुक्त है। १४. आउट्टियाए अदिग्णादाण गिण्हमाणे सबले । {१४) जान-बुझ कर अदत्त वस्तु को ग्रहण करने वाला शबल दोष युक्त है। १५. आउट्टियाए अगंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा, सेज्जं वा, (१५) जान-बूझ कर सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर निसीहियं वा, एमाणे सबले। कार्यात्मर्ग शयन एवं स्वाध्याय आदि करने वाला शबल दोष युक्त हैं। १६. आउट्टियाए सांणिमाए पुरवाए, ससरक्खाए पुरवीए (१६) जान-बूझ कर सस्निग्ध पुथ्वी पर और सचित्त रज ठाण वा, सेज्जंबा, निसीहियं या, एमाणे सबले। से युक्त पृथ्वी पर कायोत्सर्ग, शयन एवं स्वाध्याय आदि करने याला शबल दोष बुक्त है। १७. आट्टियाए चित्तमताए सिलाए, चित्तमसाए लेलुए. (१७) जान-बूझ कर सचित्त शिला पर. सचित्त पत्थर के कोलावासंसि वा दारुए जीवपट्टिए, सअंडे-जाव-मश्कटा- ढेले पर, घुन लगे हुए या दीमक लगे हुए जीव-युक्त काष्ठ तथा संताणए, हामं वा, सेग्जं वा, निसीहिम वा चेएमाणे सबले। अन्डे-युवत-यावत्-मकड़ी के जालों से युक्त स्थान पर कायोत्सर्ग शयन एवं स्वाध्याय आदि करने वाला शबल दोष युक्त है। १५. आउट्टियाए मूलभोयण वा, कंव-मोयणं था, संघ- (१८) जान-बूझ कर के मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, कोंपल, भोयणं या, तया भोयणं वा, पवाल-भोयण बा, पत्तभोयणं वा, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरी वनस्पति का भोजन करने वाला पुष्फ-भोयर्ण वा, फल-भोयणं वा, बीय-भोयणेवा, हरिय-भोपणं शवल दोष युक्त है। वा अजमाणे सबले। १६. अंतो संबच्छरस्स बस दगलेवे करेमाणे सबले । (१६) एक वर्ष के भीतर दश बार उदक-लेप लगाने वाला शबल दोष युक्त है। २०. अंतो संबच्छरस्स बस माइद्वापाई करेमाणे सबले। (२०) एक वर्ष के भीतर दश बार मायास्थान सेवन करने बाला शदल दोष युक्त है। २१. भाष्टिपाए सीतोषय-वग्धारिय-हत्येग वा, मत्तेण वा, (२१) जान-बूझ कर शीतल सचिन जल से गीले हाथ, दबीए वा, मायणेष वा, असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, पात्र, चम्मच या भाजन से, अशन, पान, खादिम और स्वादिम साइमं वा परिगाहिता भंजमाणे सबले को लेकर खाने वाला शनल दोष युक्त है । -दसा. द. २, सु.२ १ (क) सम. सम. २१, सु. १ (ख) समवायांग में राजपिड पाचवा है और सागारिय पिंड ११वां है। दशाश्रुतस्कन्ध में सामारिय पिंड पचिवाँ है और राजपिंड ११ वा है । समवायांग में १७वें सबल दोष में "चित्तमंताए पुढविए" पाठ अधिक है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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