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________________ पुत्र ३४७-३४६ वीतराग सम्मत बेहानस वालमरण आराधक-विराधक {१७३ मिच्छादसणरसा, सप्रियाणा । हिंसगा। मिथ्या-दर्शन में अनुरक्त, निदान सहित और हिंसक दशा में पय जे मरन्ति जीवा, सेसि पुण बुल्लता बोही ।। जो मरते हैं उनके लिए फिर बोधि बहुत दुर्लभ होती है। सम्मत्वंसणरता अभियाणा सुस्कलेसमोगाटा । सम्यग् दर्शन में अनुरक्त निदान रहित और शुक्ल-लेश्या में इय जे मरन्ति जीवा, सुलहा तेसि भवे दोही ।। प्रवर्तमान होते हुए जो जीव मरते हैं, उनके लिए बोधि सुलभ है। मिच्छावसणरत्ता सनियाणा काहलेसभोमारा। मिथ्या दर्णन में रक्त, सनिदान और कृष्ण-लेण्या में इय जे मरन्ति जीया, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ! प्रवर्तमान होते हए जो जीव मरते हैं उनके लिए फिर दोधि बढ़त दुर्लभ होती हैं। जिगवयणे अणुरसा, जिणबयणं जे करेन्ति भावेण । जो जिन-प्रचन में अनुरक्त हैं तथा जिन वचनों का भाव अमला असं किलिट्ठा, ते होन्ति परित्तसंसारी ॥ पूर्वक आचरण करते है, वे निर्मल और असंक्लिष्ट होकर अल्प -उत्त.अ. ३६. गा. २५६-२६० जन्म मरण वाले हो जाते हैं। जिणाणुमयं वेहाणस बालमरणं वीतराग सम्मत वेहानस बालमरण३४८, जस्स गंभिक्खुस्स एवं भवा पुट्ठो खलु अहमंसि, नालह- ३४८, जिस भिक्षु को यह प्रतीत हो कि मैं अनुकूल परीषहों से मंसि सीतफा अहियासेत्तए से वसुमं सम्बसमण्णायतपण्णा- आक्रान्त हो गया हूँ और मैं इसे सहन करने में समर्थ नहीं है। णणं अप्पाणं फेड अकरणयाए आउट्ट तवस्सिणोतं प्रज्ञावान् संयमी मुनि यदि अब्रह्मचर्य रूप अकृत्य के लिए तत्पर सेयं जमेगे विह्मादिए। हो रहा हो तो उस तपस्वी भिक्षु को यही उचित है कि वह फांसी लगाना स्वीकार कर ले (किन्तु कुशील सेवन न करे।) तस्थावि तस्स कालपरियाए. से वि तस्य बियंतिकारए। ऐसा करने में उसका मरण हो सकता है और वह मृत्यु भी मोहकर्म का अन्त करने वाली होती है । इच्चोतं बिमोहायतणं हियं सुहं बम गिस्सेयस आणुगामियं। इस प्रकार यह मोह से मुक्त कराने वाला मरण भिक्ष के -आ. मु. १, अ. ६, उ. ४, सु. २१५ लिए हितकर, सुखकर, कर्मक्षय में समर्थ, कल्याणकर तथा पर लोक में साथ चलने वाला होता है । बालमरण-पसंसा-पायच्छित्त सुतं बालमरण की प्रशंसा के प्रायश्चित्त सूच३४१. जे मिक्खू-- ३४६. जो भिक्षु१. गिरि-पवणाणि वा. (१) पर्वत से दृश्य स्थान पर गिरकर मरना, २. मह-परिणाणि बा. (२) पर्वत से अदृश्य स्थान पर गिरकर मरना । ३. मिगु-पङगाणिवा, (३) खाई कुए आदि में गिरकर मरना । ४. तरु-पडपाणि वा, (४) बुक्ष से गिरकर मरना। ५. गिरि पक्खंदणाणि वा, (५) पर्वत से दृश्य स्थान पर कुद कर मरना, ६. मरु-पक्ष णाणि या, (६) पर्वत से अदृश्य स्थान पर कूद कर मरना । ७. मिगु-पक्खवणाणि वा, (७) साई कुए आदि में कूद कर मरना । तर-परखंदणाणिवा, (८) वृक्ष से कूद कर मरना । ६.बल-पवेसाणि वा, (E) जल में प्रवेश करके मरना। १०. जसण-पवेसागि था, (१०) अग्नि में प्रवेश कर के मरना । ११. जल-पमखंदगाणि वा, (११) जल में कूब कर मरना, १२. जलण-पक्वणाणि वा, (१२) अग्नि में कूद कर मरना, १३. विस-मखणागि बा, (१३) विष भक्षण करके मरना, १४. सत्योपावणाणिवा, (१४) तलवार आदि शस्त्र से कटकर मरना, १५. बसण्मरणाणि वा, (१५) गला मोड़कर भरना,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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