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सूत्र ३४४-३४५
अशानियों के बालमरण
आराधक-विराधक
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अण्णाणीणं बालमरणाई३४४. बालमरणाणि जसो अकाममरणाणि चंब य बहूणि । मरिहिति से बराया, जिणवयणं से न जाणन्ति ।।
- उत्त. अ. ३६, गा. २६१ बालमरण सरूवं३४५. तस्थिमं पढम ठाणं, महावीरेण देसियं ।
काम-गि जहा बाले, मिसं राई कुवइ ।।
जे गिझे काम-भोगेसु, एगे कूडाय गच्छई। न मे विट्ठ परे लोए, चपखु-विट्ठा इमा रई॥
हत्यागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोए, अस्थि वा नत्यि वा पुणो ।।
"जणेण सवि होक्षामि", हवाले पगमई । काम-मोगाणुराएण, केस संपतिवज्जई ।।
लओ से वर्ष समारंभई, तसेसु पावरेसु य । अट्ठाए य अगट्ठाए, भूयगामं विहिंसई ।
अज्ञानियों के बालमरण३४४. जो पाणी जिन वचनों से परिरित नहीं है, वे बेचारे अनेक बार बालमरण तथा बहुत बार अकाम-मरण से मृत्यू को प्राप्त होंगे। बालमरण का स्वरूप३४५. भगवान महावीर स्वामी ने उन दो स्थानों में पहला स्थान इस प्रकार का बताया है कि कामासक्त बाल-जीव अनेक प्रकार के क्रूर-कर्म करते हैं। __ जो काम-भोगों में आसक्त होते हैं, उनमें से कई नरक में जाते हैं । वे अज्ञानी इस प्रकार कथन करते हैं कि -"परलोक तो हमने देखा ही नहीं है किन्तु यह इहलौकिक आनन्द तो आँखों के सामने ही है।"
ये काम-भोग हाथ में आये हुए हैं किन्तु भविष्य में होने वाले सुख तो संदिग्ध हैं, कौन जानता है-"परलोक है या नहीं ?"
कोई बाल जीव धृष्टतापूर्वक इस प्रकार कथन करता है कि 'जो गति अन्य की होगी वही मेरी होगी ऐसा सोच कर वह काम-भोग में अनुरक्त होकर क्लेश को प्राप्त होता है।
फिर वह अस तथा स्थावर जीवों के प्रति दण्ड का प्रयोग करता है और प्रयोजनक्श या बिना प्रयोजन ही प्राणी समूह की हिंसा करता है।
हिसा करने वाला, मूठ बोलने वाला, छल-कपट करने वाला, घुगली खाने वाला और धूर्त वह अज्ञानी मनुष्य मद्य और मांस का भोग करता है और "यह कल्याणकारी है" ऐसा मानता है।
वह शरीर और वाणी से मत्त होता है, धन और स्त्रियों में गृद्ध होता है तथा राग और द्वेष दोनों से उसी प्रकार कर्म-मल का संचय करता है जैसे केंचुआ मुख और शरीर दोनों से मिट्टी का संचय करता है।
फिर कभी रोग आतंक से ग्लान बना हुआ वह परिताप करता है । और अपने कर्मों का विचार कर परलोक के दुःख से भयभीत होता है।
वह सोचता है कि शील रहित पुरुषों की जो गति होती है उस नरक गति के विषय में मैंने सुना है कि वहाँ कूरकर्मी अज्ञानी जीवों को अत्यन्त वेदना होती है।
उन नरकों में उत्पन्न होने का जो स्थान है वह भी मैंने सुना है। आयुष्य क्षीण होने पर बह बाल जीय अपने कृत को के अनुसार वहाँ जाकर पीछे परिताप करता है।
हिंसे वाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सके। मुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई।
कायसा वयसा मत्ते, विते गिडे य इस्विसु । बुहो मलं संचिणई, सिसुणागोम्ब मट्टिये ।।
तो पुढो आयकेणं, गिलाणो परितप्पई। एमीओ परलोगस्म, कम्मानुष्णेहि अप्पणो ॥
सूया मे नरए ठाणा, असीलाणं बजा गई। बालाणं कूर-कम्माण, पगाढा जत्य वेयणा ।।
तस्थोववारयं ठाणं, अहा मेयमणुस्सुर्य । माहाकम्मेहि गच्छन्तो, सो पच्छा परितप्पई ॥