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प्रकाशकीय
भारतीय संस्कृति का सर्वमान्य सूत्र है-आचारः प्रथमो स्थानकवासी जैन समाज के प्रख्यात तत्वचिन्तक आस्मार्थी धर्म:-आचार प्रथम धर्म है । जैन परम्परा में पास पहमी मोहनमानी , विदुषी मणिष्या जिनशासन चन्द्रिका अंगो"--आचार प्रथम अंग है। अंग का अर्थ धर्मशास्त्र तो है महासती उज्ज्वल कुमारीजी की सुशिष्या डा महासतीजी ही, किन्तु व्यापक अर्थ में ले तो--जीवन का मुख्य अंग भी मुक्तिप्रभाजी, डा० महासतीजी दिव्यप्रभाजी तथा उनकी श्रुताहै । भारतीय आगमों में मानवता का जितना महत्व कहा है भ्यासी शिष्याओं की सेवायें इस कार्य में समर्पित हैं- यह हम उससे भी कहीं अधिक महत्त्व साधक जीवन में आचार धर्म का सब का अहोभाग्य है। उनकी अनवरत श्रुत सेवा से यह विशाल कहा है।
कार्य शीघ्र सम्पन्न हो सका है। प्राचीन जैन परम्परा में "आचार" के लिए "चरण" शन्द
जैन दर्शन के विख्यात विद्वान श्री दलसुख भाई मालवणिया का प्रयोग होता था। चरण याने चारित्र । मनुष्य के आचार
भारतीय प्राच्य विद्याओं के प्रतिनिधि विद्वान है, उनका आत्मीय धर्म की मर्यादा, संयम-साधना का व्यवस्थित माम-चरण है। मयोग अनयोग प्रकाशन कार्य में प्रारम्भ मे दी atजानने
जैन श्रुत शान-शास्त्रों को चार अनुयोगों में विभक्त किया अत्यधिक उदारता व निःस्वार्थ भावना से इस कार्य में मार्गगया है-(१) चरणानुयोग, (२) धर्मकथानुबोग, (३) गणिता- दर्शन किया, सहयोग दिया, समय-समय पर अपना मूल्यवान नुयोग एवं (४) द्रव्यानुयोग । इनमें धर्मकथानुयोग तथा गणिता- परामर्श भी दिया अतः उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा नुयोग का प्रकाशन हम कर चुके हैं। चरगानुयोग और व्या- कर्तव्य है। नुयोग दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं विशाल ग्रन्थ है। चरणानुयोग
इसी के साथ एक भूल का संशोधन भी कर देना चाहते हैं, का विषय बहुत विस्तृत है अतः पाठकों की सुविधा के लिए दो
गणितानुयोग के प्रकाशन के समय जैन गणित शास्त्र सम्बन्धी भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। दव्यानुयोग मूल पाठ का
अनेक दुर्लभ चित्र व वाकृतियाँ हमें पूज्य आचार्यश्री विजयपशोदेव सम्पादन कार्य भी पूज्य गुरुदेव श्री कन्हैयालालजी महाराज सा.
सूरि जी महाराज की कृपा से प्राप्त हुई थी। श्राचार्यश्री ने "कमल" सम्पन्न कर चुके हैं । अब उसका अनुवाद एवं परिशिष्ट
अपने गम्भीर आगम ज्ञान व चित्रकला सम्बन्धी तलस्पर्शी अनुआदि कार्य शेष है।
भव ज्ञान के बाधार पर आगममत विषयों को स्पष्ट करने हेतु घरणानुयोग का प्रथम भाग पाटकों की सेवा में पहुंच चुका वे महत्वपूर्ण चित्र तैयार करवाये थे तथा हमारी मांग पर बड़ी है । अब द्वितीय भाग (सम्पूर्ण चरणानुयोग) प्रस्तुत करते हुए ही उदारता व सदभावना के साथ प्रकाशन हेतु हमें प्रदान हमें अत्यधिक प्रसनता हो रही है, साथ ही हम अपने लक्ष्य को किये। यपि उन चित्रों में से बहुत कम चित्र हमने उपयोग में अब बहुत शीघ्र सम्पन्न कर सकेंगे इसका विश्वास पाठकों को लिये, तथा वे भी गुजराती में होने के कारण हिन्दी भाषी जनता दिसाता हूँ।
के लिए हिन्दी में उनके रेखाचित्र तैयार करवाकर प्रकाशित अनुयोम सम्पादन-प्रकाशन कार्य में गुरुदेव श्री कन्हैयालाल किये । हिन्दी रेखा चित्रकार उनमें अकित नाम संकेत को स्पष्ट जी म. "कमल" ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया है। करना भूल गये तथा आचार्यषी का आदरपूर्वक स्मरण उल्लेख ऐसे जीवन-दानी श्रुत सपासक सन्त के प्रति आभार व्यक्त करता नहीं कर सके, इसके लिए हम आचार्यश्री से क्षमा चाहते हैं। मात्र एक शेपचारिकता होगी, आने वाली पीढ़ियां युग युग तक अस्तु, हम आचार्य श्री की इस उदारता व सदभावना के प्रति उनका उपकार स्मरण कर श्रुत का बहुमान करेंगी यही उनके हार्दिक रूप से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं एवं भविष्य में उनके प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी।
स्नेह-सौजन्य सहकार की भावना रखते हैं।
ऐसे जीवन-दानी बताने वाली पीढ़ियाँ युग युग
हार्दिक कम से कृतज्ञता