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________________ २२२-२२५ जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं, वायाए कारण न करेमि न फारमेमि, करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, 1 तरस भंते! पश्विकमानि नियामि परिहामि, अप्पानं वोसिरामि । - आव. अ. १, सु. २ गुरु बंदणमुक्त - २२४. इच्छामि माम बंदि जाए जिसीहियाए, अहम, निमीहि, अहो काय काय संकासं, स्वमगिज्जो मे फिलामो, बंजन सूत्र अतितार्थ बहुसुमेणं मे दिवसो वडतो ? जत्ता मे ? जवणिज्जं वं मे ? खामि बामणी देवकर्म गुरुवंदणस्स वालसावलाई २२५. बुबालसा कितिकम्मे पण्णसे, तं जहा आयरिसाए पकिमानि समालमा देवसियाए आसामचाए तित्तीसबराए fefa fमछाए मणक्कडाए, वयरकडाए कायक्कडाए, कोहार मानाए. माधाए, लोमाए, सव्वकालिए, सव्य मोयारा, सधन्माषक मणाए आवाज मे अध्यारो को तरस समासमणो 1 परिमामि विदामि गरिहामि अध्याणं वोसिरामि । - आव. अ. २, सु. १० संयमी जीवन [ -५ जीवनपर्यन्त तीन करण तीन योग से अर्थात् मन, वचन, और काया से (सर्व सावध पाप कर्म ) न मैं स्वयं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा और न पाप कर्म करने वाले का अनुमोदन ही करूँगा। भन्ते ! मैं पूर्वकृत पापों से निवृत्त होता हूँ, आत्मसाक्षी से उसकी निन्दा करता हूँ, आपकी साक्षी से में उसकी गर्दा करता हूँ और पाप कर्म करने वाली आत्मा की अतीत अवस्था का पूर्ण रूप से त्याग करता हूं । गुरु वंदन सूत्र - २२४. हे क्षमाशील श्रमण ! मैं पाप प्रवृत्ति से निवृत्त हुए अपने शरीर से आपको यथाशक्ति बन्दना करना चाहता हूँ । अतएव मुझे आपके चारों और के अवग्रह ( तीन हाथ जितने क्षेत्र में प्रवेश करने की आशा दीजिए। नै अशुभ क्रियाओं को त्यागकर अपने मस्तक तथा हाथ से आपके चरणों का सम्यग् रूप से स्पर्श करता हूँ । चरण स्पर्श करते समय आपको जो कुछ भी पीड़ा हुई हो वह क्षन्तव्य है अतः क्षमा करें । क्या ग्लानिरहित आपका आज का दिन बहुत आनन्द से व्यतीत हुआ, आपकी तप एवं संयम रूप यात्रा निर्बाध है ? और आपका शरीर मन तथा इन्द्रियों की बाधा से रहित हैं ? हे क्षमा श्रमण गुरुदेव ! मेरे से दिन में कोई अपराध हुआ हो तो मैं क्षमा चाहता हूँ । भगवन् ! आवश्यक क्रिया करते समय मेरे से कोई विपरीत आचरण हुआ हो तो मैं उसका प्रतिक्रमण करता हूँ । जं आप क्षमाश्रमणों को दिवस सम्बन्धी तंतीस आशातनाओं में से किसी एक प्रकार की आशातना मिथ्याभाव से, मानसिक से, दुधन से शारीरिक कुओं से से, मान से, माया से लोभ से सर्वकाल से सम्बन्धित सब प्रकार के मियाभावों से सब प्रकार के धर्मों को अतिक्रमण करने वाली आशातदा के द्वारा मैंने जो कोई भी अतिचार किया हो तो हे क्षमा श्रमण ! उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, मन से उसकी निन्दा करता हूं, आपके समक्ष उसकी गर्दा करता हूँ, और पाप कर्म करने वाली आशातना युक्त उस आत्मा का परित्याग करता हूं । गुरु वन्दन के बारह आवर्तन २२५. बारह आवर्तनयुक्त गुरु वन्दन किया जाता है, यथा
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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