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________________ पुत्र २१६ चार प्रकार के आवश्यक संयमी जीवन [७e १०-से कि आगमतो बचावस्सय? पा-आगम से द्रव्यावश्यक क्या है? उ.-आगमतो दवावस्सयं-जस्सणं "आवस्सए" ति पर्व उ०-आगम से टल्यावश्यक- 'आवश्यक' यह पद जिसके सिविणस, ठितं, जितं. मितं, परिजितं, णामसमं, सीखा हुआ है, धारण किया हुआ है. गाना हुआ है, पूर्णाक्षर है. घोससम, अहोणपखरं, अपच्चक्खरं, अभ्याइसक्खर, सम्यक् प्रकार से जाना हुआ है, स्वनाम समान सदा याद है, शुद्ध अक्वालियं, अमिलियं, अवच्चामेलियं, परिपुण्ण, उच्चारण किया हुला है, न हीनाक्षर है, न अधिकाक्षर मुक्त है, परिपुष्णघोसं, कंठोढविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं । सभी अक्षर क्रमबद्ध है, अस्खलित है, अक्षर मिले हुए नहीं है, अपुनरुक्त है, प्रतिपूर्ण है, प्रतिपूर्ण स्वर से घोषित है, कंठ और ओ से सुप्रयुक्त है, गुरु द्वारा दी गई वाचना से युक्त है। से गं तत्थ वागणाए, पुरछणाए. परिपट्टणाए, धम्म- जो कि वाचना से, पृच्छाओं से, पुनरावृत्ति से और धर्म कहाए, गो अणुप्पेहाए । कथा से युक्त होता है, किन्तु अनुप्रेशा से नहीं होता है। १० : कहा? प्र.---इसका क्या कारण है ? - अणुवओगो दव्यमिति कट्ट। उ०-उपयोग रहित होना ही द्रव्य आवश्यक होने का कारण है इसलिये अनुप्रेक्षा का निषेध किया गया है। (१) णेगमस्स-एगो अणुवउत्तो आगमओ एग (१) नेगमनय के अनुसार -उपयोग रहित एक व्यक्ति वम्यावस्सर्य, वोणि अणुवउत्ता आगमजो दोणि आगम से एक न्यावश्यक है, उपयोग रहित दो व्यक्ति आगम रव्यावस्सयाई, तिणि अणुवजत्ता आगमओ लिग्णि से दो द्रव्यावश्यक है, तीन उपयोग रहित व्यक्ति आगम से तीन सम्यावस्सपाई एवं जावइया अणुवउत्ता तावयाई ताई द्रव्यारण्यक है। इस प्रकार जितने उपयोग रहित व्यक्ति हों उतने गंगमस्स आगमओ वव्यावस्सयाई । ही दे नैगमनयानुसार आगम से द्रव्यावश्यक हैं। (२) एवमेव वबहारस्स वि । (२) इसी प्रकार व्यवहार नप के अनुसार भी द्रव्यावश्यक होते हैं। (३) संगहस्स-एगो वा, अगेगा वा, अणुवउत्तो वा, (३) संग्रहनय के अनुसार - एक हो या अनेक, एक व्यक्ति अणुवउत्ताबा, आगमओ दध्वावस्मयं वा. दयावस्स- उपयोग रहित हो या अनेक व्यक्ति उपयोग रहित हों, आगम से याणि वा से एगे दवावस्सए। एक द्रव्यावश्यक हो या अनेक द्रव्यावश्यक हों, वे संग्रहनयानुसार एक ध्यावश्यक है। (४) उज्जुसुयस्स–एगो अणवउत्तो आगमओ एग (४) ऋजुसूत्रनय के अनुसार-एक व्यक्ति जो उपयोग दब्यावस्सयं, पुहत्त नेनछ । रहित हो रही एक अत्यावश्यक है। ऋजसूत्रनय भिन्न-भित्र व्यक्तियों की विवक्षा नहीं करता। (५) तिण्हं सदनयाण-जागए अणुवउसे अवस्यू। (५-६-७)-शब्द आदि तीन नयों के अनुसा हो और उपयोग रहित भी हो ऐसा नहीं हो सकता है। प.-कम्हा ? प्र. - इसका क्या कारण है? ज० बा जाणए अणुवउसे न भवा, जन अणुक्जत्ते जाणए उ-जो ज्ञाता हो वह (इन नयों की अपेक्षा) उपयोग न भया, सम्हा गपि आगमको दवावस्सयं । रहित नहीं होता है। जो उपयोग रहित हो वह ज्ञाता नहीं कहलाता है, अतः वह आगम से द्रव्यावश्यक नहीं है । से तं आगमओ दब्बावस्सयं । यह आगम से द्रव्यावश्यक हुआ। ५०-से कितं नोमागमतो पवावस्सय? प्र०-नोआगम से द्रव्यावश्यक क्या है ? --नोबागमतो दवावस्सयं-तिविह पण्णत्तं तं जहा- ३०-नोआगम से व्यावश्यक तीन प्रकार का कहा गया है। यथा(१) बागगसरीर दवावस्मय, (१) ज्ञायकशरीर द्रव्यावश्यक, (२) भवियसरीर वायस्सर्ष, (२) भव्य शरीर द्वब्यावश्यक, •
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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