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५०] धरणानुयोग- २
समायारीए पव्वत्तणं
१५०. (१) गम आवस्य कुल्जा (२) निपिं ठाणे कुज्जा (३) आयुष्यासकरणे,
(४) परकरणे परिपृच्छणा
(५) छन्दणा भाएणं,
(१) इच्छाका सारने,
(७) बिछाकरी व निदाए
(८) तक्कारो य पडिस्सुए,
(१) अणं गुरुपूया,
(१०) उपसंपदा ।
एवं बु.पंच संजुत्ता, सरमायारी पवेश्या ।
वेयसिय समावारी१५१. पुलाआए आमि समुट्टिए । पहिला पन्दितायत ॥ पंज किए। इच्छं निभइ भन्ते ! बेयावच्चे व सम्झाए |
उत्स. अ. २६, मा. ५-७
या निणं काय अविना यानि सव्यदुवोक्स |
(पृष्ठ का
उत्तराध्ययन सूत्र (४) परिणा (५) छंदणा
(६) इच्छाकार
(७) भिच्छाकार
(८) सहकार
(१) अभ्युत्यान
(१०) उपसंपा
समाचारों का प्रवर्तन
समाचारी का प्रवर्तन-
१५०. १. स्थान से बाहर जाते समय आवस्सही ३ कहना | २. स्थान में प्रवेश करते समय निस्सही ३ कहना ।
३. अपना कार्य करने से पूर्व गुरु से अनुमति लेना । ४. एक कार्य से दूसरा कार्य करते समय गुरु से पुनः अनुमति
लेना ।
५. 'आपकी इच्छा हो तो इन पदार्थों में से कुछ ने इस प्रकार गुरु आदि से कहना |
६. सारणा में इच्छाकार का प्रयोग करे, आपकी इच्छा हो तो मैं आपका अमुक कार्य करू, आपकी इच्छा हो तो कृपया मेरा अमुक कार्य करें।
७. साधु वृत्ति से विपरीत आचरण होने पर 'मिच्छामि दुक्क' देना ।
८. गुरु के वचनों को सुनकर "तहत्ति" - 'जैसा आपने कहा वैसा ही है' इस तरह कहना
६. गुरु के प्रति
पूज्य भाव दिखाने के लिए गुरु के आने पर
खड़ा होना ।
१०. ज्ञान प्राप्ति के लिए आचार्य या उपाध्याय आदि के पास रहना ।
यह दश प्रकार की समाचारी कही गई है।
सूत्र १५०-१५१
दिवस समावारी
१५१. सूर्य के उदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के चतुर्थ भाग में उपकरणों की प्रतिलेखना करे। तदनन्तर गुरु को वन्दना कर
हाथ जोड़ कर पूछे - " अव मुझे क्या करना चाहिए ? भंते ! मैं चाहता हूँ कि आप मुझे वैयावृत्य या स्वाध्याय में से किसी एक कार्य में नियुक्त करें।"
में नियुक्त किये जाने पर अम्लान भाव से या करे अथवा सर्व दुःखों से मुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त किये जाने पर अग्लान भाव से स्वाध्याय करे ।
भगवती सूत्र
(७)
(८) छंदणा
(१) इच्छाकार
(२) मिष्ठाकार
मा
(३) तहकार
(१) निमन्त्रण
(१०) सं
१०वीं समाचारी का क्रम तीनों सूत्रों में समान है। शेष के क्रम में भिन्नता है। वीं ममाचारी के नाम की मित्रता है किन्तु अर्थ समान होना है।