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________________ सूत्र ५५-५६ बड़ी दीक्षा के योग्य दीमा [6 -Aan नयम-t आयरिय-उबमाए असरमाणे परं चउरायाओ पंचरायाओ आचार्य या उपाध्याय को स्मृति में न रहने से बड़ी दीक्षा वा कप्पागं भिक्खु नो उबट्टायेइ, कप्पाए, अस्थियाई से केई के योग्य भिक्षु को चार पांव रात के बाद भी बड़ी दीक्षा में भागणिज्जे कप्पाए, मस्थि से फेह छेए वा परिहारे वा, उपस्थापित न करे । उस समय यदि वहां उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ी दीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाच्छेद या तपरूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। पस्थियाहं से केई माणिज्जे व.प्प.ए. से संतरा छेए वा यदि उम स्वदीक्षित के बड़ी दीक्षा लेने योग्य कोई पूज्य परिहारे वा। पुरुष न हो तो उन्हें उस पार पाँच रात्रि उल्लंघन करने का छेद या तप रूप प्रायश्चित्त आता है । आयरिय-वज्शाए सरमाणे षा असरमाणे या परं वसराय आचार्य या उपाध्याय को स्मृति में रहते हुए या स्मृति में कप्पाओ कप्पागं भिक्खु नो उबट्टावे कप्पाए. अस्थियाई से न रहते हुए बड़ी दीक्षा के योग्य भिक्षु को दस दिन के बाद भी केद्द भाणणिज्जे कप्पाए, नस्थि से कइ छए वा परिहारे वा। बड़ी दीक्षा में उपस्थापित न करे। उस समय यदि उस नवदीक्षित के कोइ पूज्य पुरुष की बड़ी दीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षा लेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। पस्थियाई से केइ मापणिज्जे कप्पाए, संवच्छर तस्स तप्प- यदि उस नवदीक्षित के बड़ी दीक्षा के योग्य कोई पूज्य लियं नो कप्पइ आयरियतं वा-जाव-गणाबच्छेइयत्त चा पुरुष न हो तो उन्हें उम दश त्रि उल्लंघन करने के कारण उद्दिसित्तए। -धव. उ. ४, सु. १५-१७ एक वर्ष तक आचार्य-शवत्-रणावश्छेदक पद पर रहना नहीं कल्पता है। उवदावण जोगा बडी दीक्षा के योग्य५६ पुढविक्काइए जीये, सद्दहइ जो जिणेहि पण्णते । ५६. जो जिन-ग्रजाल विकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुग्ण पायो, सो इ उवट्ठावणे जोग्गो ।। की) श्रद्धा रखता है और पुण्य एवं पाप को जानता है, वह बड़ी दीक्षा के योग्य है। आउक्काइए जीवे. सहइ जो जिहि पण्णत्ते । जो जिन-प्रज्ञप्त अकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुण्ण-पावो, सो हु उबट्टावणे जोग्गो ॥ की) श्रद्धा रखता है और पुण्य एवं पाप को जानता है, वह बड़ी दीक्षा के योग्य है। तेउक्काइए जोवे, सद्दहइ जो जिणेहि पणत्ते । ___जो जिन-प्रज्ञात तेजस्मायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुषण-पावो, सो है उषावणे जोम्यो । की) श्रद्धा रहता है और पुष्प एवं पाप को जानता है, वह बड़ी दीक्षा के योग्य है। माउपकाइए जीवे, दहाइ जो जिहि पणते । जो जिग-प्रज्ञप्त वायुकायिक जीवों में (जीव है इस प्रकार अभिगयपुण्ण-पागे सो ह उक्टावणे जोम्गो ॥ की) श्रवा रखता है और पुण्य एवं पाप को जामता है, वह बड़ी दीक्षा के योग्य है। वणसइकाइए जीवे, सद्दहा जो जिणेहिं पणते। जो जिन-प्रज्ञाप्त वनस्पतिकायिक जीवों में (जीव है इस अभिगयपुण्ण-पायो, सो ह उचट्ठावणे जोग्यो । प्रकार बी) श्रद्धा रखता है और पुण्य एवं पाप को जानता है, वह बड़ी दीक्षा के योग्य है। तसकाइए जीवे, सद्दह्इ जो जिहिं पत्ते । जो जिन-प्रज्ञप्त प्रसका यिक जीवों में (जीच है इस प्रकार अभिगयपुग्ण-पापो, सो है उष्टावणे जोग्गो ॥ की) श्रद्धा रखता है और पुण्य एवं पाप को जानता है, वह बड़ी --दम. अ. ४. गा. ७-१२ दीक्षा के योग्य है। १ उपरोक्त गाथायें महावीर विद्यालय की प्रति में है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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