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________________ सूत्र ५२-५५ प्रवज्या को कृषि को उपमा योमा [. (४) सियालखाया। (४) सियाल के समान दीन-वृत्ति से आजीविका को जाने -ठाणं. अ. ४, ७.४, सु. १ ली प्रवासा: पव्वज्जाए किसी-उवमा.. प्रव्रज्या को कृषि की उपमा५२. चाउम्विहा किसी पण्णता, तं जहा ५२. कृषि (खेती) चार प्रकार की कही गई है । जैसे(१) बाविया, (१) एक बार बोयी गई कृषि। (0) परिवाबिया, (२) उगे हुए घान्य को उखाड़कर रोपण की जाने वाली कृषि। (३) णिविता, (३) घास को निकालकर तैयार की आने वाली कृषि । (४. परिणिदिता। (४) चास को अनेक बार निवारण करने पर होने वाली कृषि । एवामेव बडविहा पवज्जा पण्णता, तं जहा इसी प्रकार प्रत्रज्या भी चार प्रकार की कही गई है। जैसे(१) वाविता, (१) सामायिक चारित्र में आरोपित करना (छोटी दीक्षा) (२) परिवाविसा, (२) महावतों में आरोपित करना (बड़ी दीक्षा) (३) णिविता, (३) एक बार आलोचना से आने वाली दीक्षा । (४) परिणिदिता । -ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३५५ (४) बार-बार आलोचना से आने वाली दीक्षा। पन्वज्जाए धण्णोबमा - प्रवज्या को धान्य की उपमा - ५६. चाउरिवहा एवज्जा पणत्ता, तं जहा ५३. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है, जैसे(1) धष्णपुंजितसमाणा, (१) खलिहान में साफ करके रखे गए धान्यपुंज के समान निर्दोष प्रवज्या। (२) धणविरल्लितसमाणा, (२) साफ किये गये किन्तु खलिहान में बिखरे हुए धान्य के समान अल्प-अतिचार वाली प्रवज्या । (३) अण्णविक्खितसमाणा, (३) खलिहान में देनों आदि के द्वारा कुचले गये धान्य के समान बहु-अतिचार वाली प्रजज्या । (४) धण्ण संकदित समाणा। (४) खेत से काटकर खलिहान में लाए गये धान्य-फूलों के -- ठाणं. अ ४, ३. ४, सु. ३५५ समान बहुतर अतिचार बाली प्रवज्या । मुण्डणस्सप्पगारा . मुण्डन के प्रकार५४. पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा ५४. मुण्ड (जयी) पाँच प्रकार के होते हैं(१) सोतिदियमुंडे (२) चक्विवियमुंडे, (३) घाणिरियमुंडे, (१) श्रोरेन्द्रिय मुण्ड, (२) चक्षुरिन्द्रिय मुण्ड, (३) प्राणे(1) जिभिदियमुंडे, (५) फासिरियमुंडे । न्द्रिय मुण्ड, (४) जिह्वन्द्रिय मुण्ड, (५) स्पर्शनेन्द्रिय मुण्ड । पंच मुंडा पण्णता, तं जहा मुण्ड पाँच प्रकार के होते हैं(१) कोहमुंडे, (२) माणमुंडे, (३) मायामुंडे, (१) क्रोध मुण्ड, (२) मान मुण्ड, (३) माया मुण्ड, (४) लोभमुंडे, (५) सिरमुंडे।। (४) लोभ मुण्ड, (५) शिरो मुण्ड । -ठाणं. अ. ५, २.३, सु. ४४३ (२-३) बस पथ्वज्जा पगारा प्रव्रज्या के दस प्रकार५५. यसबिधा पटवज्जा पण्णता, तं जहा ५५. दस प्रकार से प्रव्रज्या ली जाती है, जैसे(१) छंचा, (२) रोसा, (६) परिजुण्णा, (१) आनी इच्छा से, (२) रोष से, (३) दरिद्रता से, (४) मुषिणा, (५) पडिस्मता चेव, (६) सारणिया (४) स्वप्न के निमित्त से, (५) पहले की हुई प्रतिज्ञा के कारण,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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