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मूत्र
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नाम से निर्वाण प्राप्ति
ज्ञानाचार
जया खोगमलोगं च, जिणी जाणह केवलो।
जब मनुष्य जिन और केवली होकर लोक-अलोक को जान सपा जोगे निकम्मित्ता, सेलेसि परिवज्जई। लेता है तब वह योगों का निरोध कर शैलेशी अवस्था को प्राप्त
होता है। जया जोगे निकभिता, सेलेसि पडिवज्जई। ___ जब मनुष्य योग का निरोध कर शैलेशी अवस्था को प्राप्त सया काम खविताणं, सिद्धि गच्छा नौरओ। होता है तब वह कर्गों का क्षय कर रज-मुक्त बन सिद्धि को प्राप्त
करता है। जया कम वित्ताणं, सिद्धि गच्छा नीरओ।
जब मनुष्य कर्मों का क्षय कर रजमुक्त बन सिद्धि को प्राप्त तया लोगमापयत्यो', सिखो हबह सासओ। होता है तब वह लोक के मस्तक पर स्थित शाश्वत सिद्ध
-दस, अ, ४, गा.१७-४४ होता है। वहिं ठाहिं संपणे अणणारे अणावीयं अणवाग बोहम इन दो स्थानों से सम्पन्न अनगार (माधु) अनादि अनन्त चाउरतं संसारकतार बीतिवएग्जा,
दीप मागं वाले एवं चतुर्गति रूप विभाग वाले संसार रूपी गहन
वन को पार करता है, अर्थात् मुक्त होता है। तं जहा-बिज्जाए चेव चरण चेव ।
यथा-१. विद्या से (ज्ञान), और चरण (चारित्र) से। --ठाणं. अ.२, उ.१, सु.५३
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१ सूक्ष्मकिया अप्रतिपाति शुक्लध्यान में योगों का निरोध होता है। योग निरोध का क्रम इस प्रकार है-.
सर्वप्रथम मनोयोग का निरोध होता है, पश्चात् पचनयोग का निरोध होता है, तत्पश्चात् काययोग का निरोध होता है। इसके लिए देखिए उसराध्ययन अ. २६, सू. ७२ २ शैल+ई =शैलेश, मेह का नाम है, मेक के समान अडोल, अकम्प, अवस्था शैलेशी अवस्था है। कम्पन योग-निमित्तक
होता है, योगरहित आस्मा में कम्पन नहीं होता है, अतः योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था को प्राप्त होता है। जहाँ तक
कम्पन है वहाँ तक आत्मा मुक्त नहीं होता इसके लिए देखें भगवती. शत. १७, उद्दे. ३ ३ कर्मों का क्षय करके रजमुक्त आत्मा लोक के मस्तक पर किस प्रकार स्थित होता है ? यह रूपक है
जहा मिउलेवालित, गरुयं तुम्ब अहो वयह एवं । आसवकयतुम्बगुरू, जीवा वच्चंति अहरगई ॥ तं व तस्विमुक्क, जलोवरि ठाइ जायलहुभावं । जह सह कम्मविमुक्का, लोयगपट्टिया होति ॥
-ज्ञाताधर्म कथा-श्रुत. १, अ. ६ तुम्बे का रूपक