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________________ ४६] चरणानुयोग व्यवसाय (अनुष्ठान) के प्रकार सूर ६३.६५ धम्मिए उवषकमे, (१) धार्मिक-उपक्रम-श्रुत और चारित्र रूप धर्म की प्राप्ति के लिए प्रयास करना। अम्मिए उबरकमे, (२) अधार्मिक-उपक्रम-असंयमवर्धक आरम्भ कार्य करता। धम्मियाम्मिए जवक्कमे । (३) धार्मिकाधार्मिक-उपक्रम--संयम और असंयम रूप कार्यों -ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १९४ का करना । ववसायप्पगारा व्यवसाय (अनुष्ठान) के प्रकार--- ६४.तिविहे ववसाए पष्णते, तं जहा ६४. व्यबसाय (वस्तुरूप का निर्णय अथवा पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) सीन प्रकार का कहा गया है - धम्मिए ववसाए, अधम्मिए ववसाए, धम्मियाघम्मिए (1) धार्मिक व्यवसाय, (२) अधार्मिक व्यवसाय, (३) यवसाए। धार्मिकाधार्मिक व्यवसाय । अहवा-तिविहे ववसाए पणते तं जहा भषवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-- पञ्चकले, पच्चाइए, अणुमामिए । (१) प्रत्यक्ष व्यवसाय, (२) प्रात्ययिक (व्यवहार-प्रत्यक्ष) म्यवराय गौर (३. अनुताणित (अनुयानिक भावसाय) अहवा-तिविधे अवसाए पण्णते तं जहा अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैइहलोइए, परसोइए- इहलोइम-परलोइए। (१) ऐहलौकिक, (२) पारलौकिक, (३) ऐहलौकिक-पार लौकिक । इहलोइए बवसाए तिविहे पण्णते, तं जहा ऐहलौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैलोइए, बेहए, सामइए। (१) लौकिक, (२) वैदिक, (३) सामयिक (श्रमणों का व्यवसाय) । सोइए ववसाए तिविधे पणते, तं जहा लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैअधे, धम्मे, कामे। (१) अर्थ व्यवसाय, (२) धर्मव्यवसाय, (३) काम-व्यवसाय । वेदए यवसाए तिषिधे पापसे, तं जहा वैदिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैरिजवंदे, जउध्वेदे, सामवेरे । (१) ऋग्वेद, (२) यजुर्वेद, (३) सामवेद व्यवसाय (अर्थात् इन वेदों के अनुसार किया जाने वाला निर्णय या अनुष्ठान) सामइए ववसाए तिविधे पण्णते, तं जहा मामयिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-- गाणे, वसंणे, चरित। - ठाणं. अ. ३, उ. ३, मु. १९१ (१) ज्ञान, (२) दर्शन, (३) चारित्र व्यवमाय । संजयाइणं धम्माइसु ठिई संयतादि की धर्मादि में स्थिति६५. प०-१. से गं भंते ! संजय-विरय-पडिहप-पच्चक्खायपाब- ६५. प्र.--(१) हे भदन्त ! संयत, प्राणितिपातादि से विरत, कम्मे धम्मे थिए? जिसने प्राणातिपातादि से पाप कर्मों का प्रतिधात और प्रत्याख्यान किये हैं ऐसा जीव धर्म में स्थित है ? २. असंजय-अविरय-अपरिहय - अपच्चक्लायवावकम्मे (२) असंयत, प्राणातिपातादि से अविरत, जिसने प्राणातिअधम्मे हिए? पातादि पांच कर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान नहीं किये हैं ऐमा जीव अधर्म में स्थित है ? ३. संजयासंजए धम्माधम्मे लिए? (३) संयत-असंयत (अंशतः असंयत, अंशतः संयत) जीव धमाधर्म में स्थित है ? उ०-१. हेता गोयमा! संजय-विरय-परिहय-परसक्लाय- 3-(१) हा गौतम ! संयत, प्राणातिपातादि से विरत, पावकम्मे धम्मे ठिए। जिसने प्राणातिपातादि पाप क्रमों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किये हैं—ऐसा जीव धर्म में स्थित है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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