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चरणानुयोग
व्यवसाय (अनुष्ठान) के प्रकार
सूर ६३.६५
धम्मिए उवषकमे,
(१) धार्मिक-उपक्रम-श्रुत और चारित्र रूप धर्म की प्राप्ति
के लिए प्रयास करना। अम्मिए उबरकमे,
(२) अधार्मिक-उपक्रम-असंयमवर्धक आरम्भ कार्य करता। धम्मियाम्मिए जवक्कमे ।
(३) धार्मिकाधार्मिक-उपक्रम--संयम और असंयम रूप कार्यों -ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १९४ का करना । ववसायप्पगारा
व्यवसाय (अनुष्ठान) के प्रकार--- ६४.तिविहे ववसाए पष्णते, तं जहा
६४. व्यबसाय (वस्तुरूप का निर्णय अथवा पुरुषार्थ की सिद्धि के
लिए किया जाने वाला अनुष्ठान) सीन प्रकार का कहा गया है - धम्मिए ववसाए, अधम्मिए ववसाए, धम्मियाघम्मिए (1) धार्मिक व्यवसाय, (२) अधार्मिक व्यवसाय, (३) यवसाए।
धार्मिकाधार्मिक व्यवसाय । अहवा-तिविहे ववसाए पणते तं जहा
भषवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-- पञ्चकले, पच्चाइए, अणुमामिए ।
(१) प्रत्यक्ष व्यवसाय, (२) प्रात्ययिक (व्यवहार-प्रत्यक्ष)
म्यवराय गौर (३. अनुताणित (अनुयानिक भावसाय) अहवा-तिविधे अवसाए पण्णते तं जहा
अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैइहलोइए, परसोइए- इहलोइम-परलोइए।
(१) ऐहलौकिक, (२) पारलौकिक, (३) ऐहलौकिक-पार
लौकिक । इहलोइए बवसाए तिविहे पण्णते, तं जहा
ऐहलौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैलोइए, बेहए, सामइए।
(१) लौकिक, (२) वैदिक, (३) सामयिक (श्रमणों का
व्यवसाय) । सोइए ववसाए तिविधे पणते, तं जहा
लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैअधे, धम्मे, कामे।
(१) अर्थ व्यवसाय, (२) धर्मव्यवसाय, (३) काम-व्यवसाय । वेदए यवसाए तिषिधे पापसे, तं जहा
वैदिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया हैरिजवंदे, जउध्वेदे, सामवेरे ।
(१) ऋग्वेद, (२) यजुर्वेद, (३) सामवेद व्यवसाय (अर्थात्
इन वेदों के अनुसार किया जाने वाला निर्णय या अनुष्ठान) सामइए ववसाए तिविधे पण्णते, तं जहा
मामयिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-- गाणे, वसंणे, चरित। - ठाणं. अ. ३, उ. ३, मु. १९१ (१) ज्ञान, (२) दर्शन, (३) चारित्र व्यवमाय । संजयाइणं धम्माइसु ठिई
संयतादि की धर्मादि में स्थिति६५. प०-१. से गं भंते ! संजय-विरय-पडिहप-पच्चक्खायपाब- ६५. प्र.--(१) हे भदन्त ! संयत, प्राणितिपातादि से विरत, कम्मे धम्मे थिए?
जिसने प्राणातिपातादि से पाप कर्मों का प्रतिधात और प्रत्याख्यान
किये हैं ऐसा जीव धर्म में स्थित है ? २. असंजय-अविरय-अपरिहय - अपच्चक्लायवावकम्मे (२) असंयत, प्राणातिपातादि से अविरत, जिसने प्राणातिअधम्मे हिए?
पातादि पांच कर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान नहीं किये हैं
ऐमा जीव अधर्म में स्थित है ? ३. संजयासंजए धम्माधम्मे लिए?
(३) संयत-असंयत (अंशतः असंयत, अंशतः संयत) जीव
धमाधर्म में स्थित है ? उ०-१. हेता गोयमा! संजय-विरय-परिहय-परसक्लाय- 3-(१) हा गौतम ! संयत, प्राणातिपातादि से विरत, पावकम्मे धम्मे ठिए।
जिसने प्राणातिपातादि पाप क्रमों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किये हैं—ऐसा जीव धर्म में स्थित है।