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________________ परिशिष्ट १ अकेली स्त्री के साथ रहने के प्रायश्चित तत्र [७४७ पृष्ठ ४२३ पृष्ठ ४२३ एगाणीए इत्थीए सद्धि संवासकरण पायच्छित सुताई- अकेली स्त्री के साथ रहने के प्रायश्चित्त सुत्रसूत्र ६३६. (ख) जे भिक्खू (१) आगंतारेसि वा, (२) आरामागा- गूत्र ६३६. (ख) जो भिक्षु (१) धर्मशाला में, (२) उद्यान गृह रसि वा, (३) गाहावदकुलंलि बा, (४) परिवार में, (३) गृहस्थ के घर में या (४) परित्राजक के आश्रम में ससि बा. एगो एगिस्थिए सद्धि विहारं वा फरेइ, अकेला अकेली स्त्री के साथ रहता है, स्वाध्याय करता है, अशन सन्मापं वा करेड, असणं वा-जाब-साइम वा -यावत् -- स्वाद्य का आहार करता है, उच्चार प्रस्रवण परठता आहारेड, उपचार वा पासवणं वा परिठ्ठयेह, है, या कोई साधु के न कहने योग्य कामकथा कहता है या नहुने अग्णयर दा अणारियं पिटुटर असमगपाउग्गं कहं वाले का अनुमोदन करता है । कहेछ, कहेंतं वा साइज्जा । जे भिक्खू (१) उजाणसि वा, (२) उज्जाणगिहंसि जो भिक्षु (१) नगर के समीप ठहरने के स्थान में, १२) था, (३) उज्जायसालसि वा, (४) णिज्जाणंसि नगर के ममीप ठहरने के गृह में. (३) नार के समीप ठहरने वा. (५)णिज्जाणगिहंसि वा, (६) णिज्जाणसा- की शाला में, (४) राजा आदि के नगर निर्गमन के समय ठहरने लसि वा एगो एपिरियए सद्धि विहार वा करेइ के स्थान में, (५) पर में, (६) शाला में अकेला अकेली स्त्री के -जाब-असमणपाउणं कहं कहेइ, कोत या साथ रहता है यावत्-साधु के न करने योग्य कामकया कहता साइज्जइ। है या कहने वाले का अनुमोदन करता है।। जे भिक्खू (१) असि वा, (२) अट्टालयसि वा, जो भिक्ष (१) प्राकार के ऊपर के गृह में, (२) प्राकार के (३) चरियसि वा, (४) पगारंसि वा, (५) दारंसि झरोखे में, (३) प्रकार य नगर के बीच के मार्ग में, (४) प्राकार में, वा, (६) गोपुरंसि वा एगो एगिरिधए सरि बिहार (५) नगर द्वार में या (६) दो द्वार के बीच के स्थान में अकेला वा करेइ-जाब-असमणपाजगं कह कहेइ, कहेंत वा अकेली स्त्री के साथ रहता है-यावत्-साधु के न कहने योग्य साइज्जद। कामकथा कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू (१) दग-मग्गसि वा, (२) दग-पहंसि जो भिक्षु (१) जलाशय में पानी आने के मार्ग में, (२) वा, (३) बग-तीरंसि बा, (४) इंग-ठाणसि वा जलाशय से पानी से जाने के माम में, (२) जलाशय के तट पर, एगो एगिथिए सद्धि विहारं वा करेइ-जाव-असम- (४) जलाशय में, अकेला अकली स्त्रो के साथ रहता है णपाउग्गं कहं फहेइ, कहेंतं वा साइज्जह। -मावत-साधु के न बहने योग्य कामकथा कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू (१) सुण्ण-गिहंसि था, (२१ सुपण जो भिक्षु (१) शून्य गृह में (२) शून्य थाना में, (३) सालसि वा, (३) भिषणविहंसि वा, १४) भिरण- खण्डहर गृह म, (४) खण्डहर गाला में, (५) झोपड़ी में, (६) सालसि वा. (५) कूडागारंसि वा, (६) कोवा- धान्यादि के कोठार में अकेला अकेली स्त्री के साथ रहता है गारपि वा एगो एगिथिए सद्धि विहारं ना करेह -पावत्-साधु के अयोग्य कामकथा कहता है या कहने वाले -जाव-अस मणपाउम्मं कहं कहेइ, कहेंतं वा का अनुमोदन करता है। साइज्जइ। जे भिक्खू (१) तणगिहसि वा, (२) तणसालसि जो भिक्षु (१) तृण गृह में, (२) तृण शाला में, (३) शालि वा, (३) तुसगहंसि वा, (४) तुससालसि दा, आदि के तुष गृह में, (४) तुष शाला में (५) मूंग, उड़द आदि (५) मुसगिहसि वा (६) भुससालसि वा एगो के भुस गृह में, (६) भुसशाला में अकेला अकेली स्त्री के साथ एगिथिए सरि विहारं वा फरेइ-जाव-असमणपा- रहता है-पावत्- साधु के अयोग्य कायकथा कहता है या उम्र कह कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ। कहने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू (१) जाणसालसिवा, (२) जाणगिहंसि जो भिक्षु (१) यान गृह में, (२. यान शाला में, (३) बाहन वा, (३) बाहगिहसि बा, (४) वाहणसालसि गृह में या (४) वाहन गाला में अकेला अकेली स्त्री के साथ वा एगो एगिस्थिए सदि विहार वा करेइ-जाव- रहता है- यावत्-साधु के अयोग्य कामकथा कहता है या कहने असमणपाडगं कह कहेइ, कहेंत या साइजछ। वाने का अनुमोदन करता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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