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________________ ७४६] घरणानुयोग मैथुन के संकल्प से वस्त्र निर्माण करने के प्रायश्चित्त सत्र परिशिष्ट १ (७) दुगुल्लाणि वा, (७) गौड देश में प्रसिद्ध या दुगुन वृक्ष से निष्पन्न विशिष्ट कपास का वस्त्र () तिरोड पट्टाणि वा, (८) तिरीड वृनावयव से निष्पन्न बन्त्र, (e) मलपाणिवा, (E) मलयागिरि चन्दन के पत्रों से निष्पन्न वन्त्र, (१०) पत्तण्णाणि वा, (१०) बारीक वालो-संतुओं से निष्पन्न वस्त्र, (११) बसुयाणि वा, (११) दुगुल वृक्ष के अभ्यंतरावयव से निष्पा बस्त्र, (१२) चिणंसुयाणि वा. (१२) चीन देश में निष्पन्न अत्यन्त सूक्ष्म वस्त्र, (१३) वेसरागाणि चा, (१३) देश विशेष के रंगे वस्त्र, (१४) अमिलाणि वा, (१४) रोम देश में बने वस्त्र. (१५) गजलाणि वा, (१३) चलने पर आवाज करने वाले वस्त्र, (१६) फालिहाणि वा, (१६) स्फटिक के समान स्वच्छ वस्त्र (१७) कोयवाणि वा, (१७) वस्त्र विशेष = "कोतवोवरको", (१८) कंबलाणि वा, (१६) पावराणि वा, (१६) कम्बल विशेष ='खरडग पारिगादि पावरगा"। (२०) उद्दाणि वा, (२०) सिन्ध देश के मफ के चमं से निष्पन्न वस्त्र, (२१) पेसागि था, (२१) सिन्धु देश के सूक्ष्म चमं वाले पशु से निष्पन्न वस्त्र, (२२) पेसलेसाणि वा, (२२) उसी पशु की सूक्ष्म पश्मी से निष्पन्न बस्त्र, (२३) किण्हनिगाईणगाणि वा, (२३) कृष्ण मृग चर्म, (२४) नीलमिगाईणगाणि या (२४) नील मृग चर्म, (२५) गोरमिगाईणगाणि वा, (२५) गौर मृग चर्म, (२६) कणमाणि वा, (२६ स्वर्ण रस से लिप्त गाक्षात् स्वर्णमय दिखे ऐसा बन्ध, (२७) कणयंताणि बा, (२७) जिसके किनारे स्वर्ण रस रंजित किसे हो ऐसा वस्त्र, (२८) कणगपट्टाणि वा (२८) स्वर्ण रसमय पट्टियों से युक्त वस्त्र, (२६) कणगखचियाणि वर, (२६) सोने के तार जड़े हुए वस्त्र, (३०) कणगफुसियाणि वा, (३०) सोने के स्तबक या फूल जड़े हुए वस्त्र (३१) बघाणि वा, (३१) व्याघ्र चर्म, (३२) विवधाणि वा, (३२) चीते के चर्म, (३३) आभरण-चित्ताणि वा, (३३) एक विशिष्ट प्रकार के आभरण युक्त वस्त्र, (३४) आभरण-विचित्ताणि वा करेइ. करेंतं वा (३४) अनेक प्रकार के आभरग युक्त बस्त्र बनाता है या साइजह। बनाने वाले का अनुमोदन करता है। सूत्र :२६. (ग) जे भिक्खू माजग्गामस्स मेटण-वखियाए आइणाणि सूत्र ६२९. (ग) जो भिक्षु स्त्री के साथ में वुन सेवन के संकल्प से वा-जान-आभरण-विचित्ताणि था घरेड, धरत वा मुषक आदि के चर्म से निष्पत वस्त्र । यावत्---अनेक प्रकार के साइजइ। आभरण गुरू वन्च धारण करता है या धारण करने वाने का अनुमोदन करता है। सूत्र ६२६. (घ) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहग-वडियाए आरणाणि सूत्र ६२६ (घ) जो निक्ष स्वी के साथ मैबुग सेवन के संकल्प से या-जाब-आमरण-विचित्ताणि वा पिगटेड, पिणतं मूषक आदि के चर्म से निष्पा बस्त्र -यावत्-अनेक प्रकार के वा साइजह। आभरण युक्त वस्त्र पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवश्शा चाउम्मासिय परिहारट्टाणं उसे चातुर्मागिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) अणुग्णइयं -नि.उ.७, सु. १०-१२ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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