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परिशिष्ट १
अक-पल्पक में निवद्यादि करने के प्रायश्चिस सूत्र
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जे भिक्ष माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए "चित- जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से सपित्त मंताए सिलाए" णिसीयावेज्ज वा, सुपट्टावेज्ज वा, शिला पर स्त्री को निठाता है या सुलाता है अथवा बिठाने वाले णिसीयात वा, तुयट्टायेतं वा साइम्जइ। का या सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खु माउग्गामस्स मेनुग-वडियाए “चित्त- जो भिक्षु स्त्री के साथ मथुन सेवन के संकल्प से सर्विस मंताए लेलुए" णिसोयावेज था, युयट्रावेज्ज वा, मिट्टी के ढेले पर या पत्थर के टुकड़े पर स्त्री को बिठाता है या णिसीयावत वा, तुयथावतं वा साइज्जह । सुलाता है अथवा बिठाने वाले का' या मुलाने वाले का अनुमोदन
करता है। जे भिक्यू माउग्मामस्स मेहण टियाए कोलावा- जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन के संकल्प से घुन या दीमक संसि वा दारुए जोवपट्टीए; सडे, सपाणे, लग जाने से जो काट जीव युक्त हो उस पर तथा जिस स्थान सबीए, सहरिए. सोते. सउदए. सउत्तिग-पग- में अडे, त्रप्त जीव, बोज, हरी, घास, ओस, पानी, कीड़ी आदि दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणगंसि णिसीयावेज्ज वा, के बिल, बोलन-फूलन, गीली मिट्टी, मकड़ी के जाले हों, वहां तुयट्टावेज्ज वा णिसीयावतं वा, तुपट्टावेतं वा पर स्त्री को बिठाता है या मुलाता है अथवा बिटाने वाले या साइज्जह।
सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवग्जइ घाउम्मासिय परिहारट्टागं उसे चातुर्मामिक अनुवातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
अणुग्धाइयं । —नि. ३.७, सु. ६५-७४ आता है। अंक-पलियंकसि निसिज्जाकरण पायच्छित सुताई- अंक-पल्वंक में निषद्यादि करने के प्रायश्चित्त सूत्र
जे भिक्खू माजग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा, पलिय कसि जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को वा, णिसीयावेज वा, तुषट्टावेज्ज वा, णिसीयावतं वा, अर्धपत्यका आसन में या पूर्ण पल्यंकासन में बिठाता है या सुलाता तुपट्टावेत वा साहज्जा ।
है अथवा बिठाने वाले का या सुलाने वाले का अनुमोदन
करता है। जे मिक्बू माउन्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा, पलियं- जो मिक्षु स्त्री के साथ बुन सेवन के संकल्प से स्त्री को कसि वा. णिसीयावेत्ता वा, तुयट्टावेत्ता वा, असणं वा-जाध- एक जंघा पर अर्थात् गोद में या पल्यंकासन में बिठाकर या साइमं वा अणग्धासेग्ज वा अगुप्पाएज्ज वा, अणुग्धासंतं वा सुलाकर अरान-पावत् –स्वाद्य खिलाता है या पिलाता है अणुप्पाएंत वा साइज्जइ ।
अथवा खिलाने पिलाने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आवजह घाउम्मासिय परिहारहाण अणु ग्याइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
--नि. .७, सु. ७५-७६ आत है। आगंतारादिसु निसिज्जाइकरण पापच्छित्त सुत्ताई- धर्मशाला आदि में निषद्यादि करने के प्रायश्चित्त सत्र
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियए आगंतारेसु था, जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को आरामागारेमु था, गाहावइफुले दा, परियावसहेसु वा धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर में या परिव्राजक के स्थान णिसीयावेज्ज वा, तुपट्टायेज्ज वा, णिसीयावेतं वा, तुपट्टायत में बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाने वाले या सुलाने वाले या साइजह ।
का अनुमोदन करता है। मे भिवस्तू माउरमामास मेहुणवडियाए आगंतारेसु वा, जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को आरामागारसुवा, गाहावह कुलस वापरियावसहेसु वा, धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर में या परिवाजक के स्थान णिसीयावेत्ता वा, तुयावेत्ता वा, असणं वा-जाव-साहम में बिठाकर या सुनाकर अगन-यावत् -स्वाद्य खिलाता है या वा अणुग्घासेज्ज बा, अगुपाएन वा, अणुग्यासंतं वा, पिलाता है अथवा खिलाने-पिलाने वाले का अनुमोदन करता है। अणुपाएंत या साइज्म । तं सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासियं परिहारट्टावं अणुग्धा- उसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) इयं ।
--नि. उ.७, मु. ७७-७८ आता है।