________________
परिशिष्ट नं. १
अवशिष्ट पाठों का विषयानुक्रम से संकलन (कित पुरुलांक और सुत्रों के अनुसार पाठक अवलोकन करें)
पृष्ठ १५
पृष्ठ १५ भगवओ धम्म-देसणा
भगबान की धर्म देशनासूत्र २० (क) ततो गं समणे भगवं महावीरे उम्पमाणसणधरे सूत्र २०(क) अनुतर जान-दर्शन के धारक श्रमा भगवान
अप्पागं च लोग च अभिसमिक्स पुवं वेवाणं महावीर ने केवलज्ञान द्वारा अपनी आत्मा और लोक को घमाइक्वंती, ततो एग्धा मणुसाणं ।
सम्यक प्रकार से जानकर पहले देवों को, तत्पश्चात् मनुष्यों को -आ.स. २. अ. १५, सु. ७७५ धर्मोपदेश दिया। पुण्ठ ३०
सोच्चा वई मेधावी पंडिपागं निसामिया । तमि- सूत्र ३३. आचार्य की यह वाणी सुनकर. मेघाची साधक हृदयंगम याए धम्मे आरिएहि पोइए'।
करे कि- आयों ने समता में धर्म कहा है। --आ. सु. १, अ. ५, इ. ३, सु. १५७ (ख-ग) पृष्ठ ३०
पृष्ठ ३० सूत्र १३, (ख) बुविहे सामाइए पप्णते, तं जहा---
सूत्र ३३. (ख) सामायिक दो प्रकार की कही गई है, यया(१) अगारसामाहए वेध, (२) अणगारसामाइए (2) अगार सानायिक, (२) अनगार सामायिक । चेद।
ठाणं. अ. २, उ. १, मु. पृष्ठ ३१
पृष्ठ ३१ सूत्र ३३. (ग) तिविहा पावणा पण्णता, सं जहा
सूत्र ३३. (ग) प्रज्ञापना तीन प्रकार की होती है, यथा-- (१) पाणपण्णवणा, (२) बंसणपग्णवणा, (१) ज्ञान प्रशापना, (२) दर्शन प्रज्ञापना, (३) चरिसपण्णवणा।
(३) चरित्र प्रज्ञापना। सिविहे सम्मे पण्णते, तं जहा
सम्यक् तीन प्रकार का होता है, यथा-- (१) माणसम्मे, (२) सणसम्मे, (३) चरित- (१) ज्ञान सम्यक्, (२) दर्शन सम्प, (३) चरित्र सम्यक् ।
सम्मे। -ठाणं. अ. ३, सु. १९८/२-३ पृष्ठ ५१
पृष्ठ ५१ जिग्गंथाणं आयार धम्मो
निर्ग्रन्थों का आचार धर्मसत्र ७.. (क) नाण-वेसणसंपन्न संजमे य तवे रयं। सूत्र १०. (क) ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न, संयम और तप में रत,
गणिमागमसंपन्नं उज्जाम्मि समोसा ॥१॥ आगम-सम्पदा से युक्त आचापं को उद्यान में विराजित देखकर
-
:
-
१
आ. सु. १, अ. ६, उ. ३, सु. २०६ (ख)
-.
५..