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________________ सूत्र २६२ ww प० ४० पतित था विमृत उपकरण की एयणा साहम्मिए पाज्मा, कम्प से सागारक गहाय दूरमवि श्रद्धाणं परिवहितए, जस्त्र अशमन्नं पासा तत्व एवं घएक्जा " इमे मे अज्जो ! कि परिचाए ? से ज्जा" परिणा" तोष डिभिजाए यध्ये सिया । से व वएज्जा - "नो परिझाए" तं नो अपणा परिमुंजेडा नो अमनस्स धावए एवं बहुफासुए पहिले परिवेयर सिया । व उप सु. १३-१५ · प्र उस उपकरण को यदि कोई साधर्मिक श्रमण देखे तो "जिसका यह उपकरण है उसे दे दूंगा इस भावना से वह उस उपकरण को दूर तक भी लेकर जाए और जहाँ किसी श्रमण को देखे यहाँ इस प्रकार कहे- प्र० - " हे आयें ! इस उपकरण को पहचानते हो ?" वह कहे - "हाँ पहचानता हूँ" तो उस उपकरण को उ० चारित्राचार आदान-निक्षेप समिति उसे दे दे । [ote यदि वह कहे "मैं नहीं पहचानता हूँ" तो उस उपकरण को न स्वयं उपभोग करे और न अन्य किसी को दे किन्तु एकान्त प्रासु भूमि पर उसे छोड़ दे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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