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________________ १८] परमानुयोग उपधि प्रत्याख्यान का फल सूण २६०-२६२ जे भिक्खू सागारिय-संतिय बंग्य' वा-जाव-वेणुलई वा जो भिक्षु शय्यातर के दण्ड,-यावत्-- बांस की सुई की जआइत्ता "सुए पच्चप्पिणिस्सामि ति' तामेव रणि याचना करके "कल लौटा दूंगा" ऐसा कहकर आज ही लौटाता पश्चप्पिणा, पच्चप्पिणतं वा सापज्जा। है, लौटवाता है, लौटाने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ भासिय परिहारटुाग उम्घाइय। उसे मासिक अनुद्घातिक परिहरान (श्चित्त) -नि. उ. ५, सु. १६-२२ आता है । उवहि-पस्वक्वाण फलं उपधि प्रत्याख्यान का फल - २६१.५०-उवहि-पच्चक्लाणे पते ! जीये कि जणया? २९१.प्र.-भ-ते ! उपधि प्रत्याख्यान से जीव क्या उपार्जन करता है? उ.-उबहि पस्चक्खाणेणं अपलिमषं जगवइ, निरवहिए 30-उपधि प्रत्याख्यान से स्वाध्याय आदि में निर्विघ्नता गं औवे निक्कलो उबहिर्मतरेग य न संकिलिस्सई। प्राप्त करता है। उपधि विहीन जीव निरीह (आकांक्षा रहित) -उत्त. अ. २६, सु. ३६ बन जाता है और उपधि के अभाव में संक्लेश नहीं पाता है। पभट्ठ उवगरणस्स एसणा पतित या विस्मृत उपकरण की एषणा२९२. निम्मथस्स णं गाहावइकुल पिण्डवाय-पडियाए अनुपविटुस्स २६२. निर्यन्व गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करे और अहालहुसए उबगरणजाए परिम्म? सिया, कहीं पर उसका कोई लघु उपकरण गिर जाएसंच केई साहम्मिए पासेज्जा, कम्पह से सागारका गहाय उस उपकरण को यदि कोई सार्मिक श्रमण देखे तोमामाराम भार एवं परमा "जिसका यह उपकरण है उसे दे दूंगा" इस भावना से लेकर जाए और जहाँ किसी श्रमण को देखे वहाँ इस प्रकार कहे१०-इमे भे अज्जो कि परिवाए। प्र-“हे आर्य ! इस उपकरण को पहचानते हो?" उ.-से व बएग्जा-"परित्राए" तस्सेव पडिणिज्जाए- 30---वह कहे-"हां पहचानता हूँ" तो उस उपकरण को यम् सिया। उसे दे दे। सेय वएग्जा-'नो परिमाए" तं नो अप्पणा परि- यदि वह कहे-"मैं नहीं पहनानता हूँ।" तो उस उपकरण मजेना, नो अरमन्नास वावए एगते महफासुए का न स्वयं उपभोग करे और न अन्य किसी को दे किन्तु एकांत पण्डिले परिदृयेयवे सिया।। मासुक (निजींद) भूमि पर उसे परठ दे। निगंथस्स पं अहिया विद्यारभूमि वा विहारभूमि का स्वाध्याय भूमि से या उच्चार-प्रस्रवण भूमि से निकलते हुए निश्चन्तस्स महालहुसए उवगरणमाए परिम्म? निर्धन्य का कई लघु उपकरण गिर जाएसिया, रोच कई साहम्मिए पासेमा, कप्पइ से सागारकडं उस उपकरण को यदि कोई सार्मिक धरण देखे तोगहाय अत्येय अन्नभन्न पासेज्जा तस्येव एवं वएग्जा- “जिमका यह उपकरण है उसे दे दूंगा।" इस भावना से लेकर जाए और जहाँ किसी श्रमण को देखे वहाँ इस प्रकार कहेप.-"इमे मे भक्जो ! कि परिवाए ? प्र.-"हे आर्य ! इस उपकरण को पहचानते हो?" •-से य एज्जा -"परिमाए" तस्सेन पडिणिज्जाएपब्वे ३०-वह कहे-"हाँ पहनानता हूँ" तो उस उपकरण सिया। को उसे दे दे। से य वएग्जा-"नो परित्राए" सं नो अप्पणा परि- यदि वह कहे "मैं नहीं पहनानता हूँ" तो उस उपकरण का भुजेज्जा, नो अनमन्त्रस्स दावए एगले बहुफासुए न स्वयं उपयोग करे और न अन्य किसी को दे किन्तु एकान्त पण्डिले परिवेपव्वे सिया। प्रासुक भूमि पर उसे छोड़ दे। सामानुपाम विहार करते हुए निर्घन्य का यदि कोई उपकरण उदगरणजाए परिभट्ठसिया, गिर जाए
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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