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________________ सूत्र २५३-२८५ शम्या-संस्तारक मादि प्रतिलेखन विधान चारित्राचार : साक्षम-निक्षेप समिति [७१५ उपकरण का प्रतिलेखन--२ सेज्जा-संथारगाई पडिलेहण विहाणं - शय्या सस्तारक आदि प्रतिलेखन विधान२८३. धुवं च पडिलेहेजा जोगसा पाय कंव। २६३, मुनि पाद कम्बल (पर पोंछने का गरम कपड़ा) शय्या, सेजमुच्चारभूमि च संथारं अनुवाऽऽसणं ॥ उच्चार भूमि, संस्तारक अथवा बासन का यपासमय प्रविलेखन -दस. ब, ८, गा. १७ करे । उबहि-उबओग बिही उपधि को उपयोग में लेने की विधि२४. बोहोयहोवगहिय', भण्डगं दुविहं मुणौ। २८४. मुनि ओघ-उमधि (सामान्य उपकरण) और औपग्रहिकगिहन्तो निक्सिवन्तो य, पउंग्ज इमं विहिं ।। पनिमेष उपकरण दोनों गाल के करों देते और रखने में इस विधि का उपयोग करेपरषुसा पडिलेहिसा, पमज जयंबई। सदा सम्यक्-प्रवृत्त और यतनाशील यति दोनों प्रकार के आइए निविक्षवेजावा, मुहमओ वि समिए मया ॥ उपकरणों को सदा चक्ष से प्रतिलेखन कर तथा रजोहरण आदि --उत्त. अ, २४, गा. १३-१४ से प्रमार्जन कर उन्हे ले और रखे। अप्पमाय-पमाय-पडिलेहणा अप्रमाद-प्रमाद-प्रतिलेखना के प्रकार२८५. शनिवहा अप्पमायपजिलेहणा पणता, तं जहा २८५. प्रमाद रहित प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई (१) अपस्चावितं (२) अवलित (३) अणानुबंधि, १. अतिता---गरीर या बस्त्र को हनचाते हुए प्रतिलेखना करना। २. अवलिता-शरीर पा वस्त्र को मुड़ाये बिना प्रतिलेखना करना । ३. अनानुवरधी-उताचल रहित मा वस्त्र को मटकाये विना प्रतिलेखना करना । ४. अमोसली-वस्त्र के ऊपरी, नीचते आदि भागों को मसले बिना प्रतिलेखना करना । ५. चटपूर्वा-नवखोड़ा-प्रतिलेखन किये जाने वाले वस्त्र को पसारकर और बोषों से भली-भांति देखकर उसके दोनों भागों को तीन-तीन बार खखेरना षटपूर्वी प्रतिलेखना है, वस्त्र को तीन-तीन बार एंज कर तीम-तीन बार शोधना नवखोड़ा है। (४) अमोसलि, (५) छप्पुरिमा जव बोरा १ छ पुरिमा नद खोरा का विवरण-"पुरिमा"= विभाग | "खोडा"=विभाग के विभाग-खंड । इन्हें चहर की प्रतिसे बना विधि से इस प्रकार समझनाश्रमण के बढ़ने की चद्दर की लम्बाई का पूरा माष ५ हाथ होता है और चौड़ाई का पूरा माप ३ हाथ होता है। सर्वप्रथम चद्दर की चौड़ाई के मध्य भाग से मोड़कर दो समान पट कर लें, प्रथम एक पट की चौड़ाई हेढ़ हाथ और लम्बाई ५ हाथ रहेगी । इसके बार पट की लम्बाई के तीन समान भाग करें, प्रत्येक भाग के ऊपर से नीचे तक तीन-तीन खंड करे । प्रत्येक खंड पर दृष्टि डालकर प्रतिलेखन करें। इसी प्रकार दूसरे पट के भी तीन समान भाग करें और प्रत्येक भाग के ऊपर से नीचे तक तीन-तीन संड करें। प्रत्येक खंड पर दृष्टि डालकर प्रतिलेखन करें यह चद्दर के एक पार्श्व भाग की प्रतिलेखना हुई। (शेष अगले पृष्ठ पर)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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