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________________ सूत्र २६०.२६३ पात्र का स्वयं परिस्कार करने का प्रायश्चित्त सम चारित्राचार : एषणा समिति [७.५ जे भिक्खू "बुरिमगंधे मे पडिगहे सद्धे "प्ति कटु बहुवेसि- जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर एण सीओवगवियण का, उसिणोदईवयोण वा, उच्छोलेग्ज पात्र को अल्प या बहुत अचित्त शीट जल से या अचित्त उष्ण वा, पधोएज्ज वा, उच्छोलेत या, पधोवतं वा साइज्मह। जल से धोये, बार-बार धोये, धुलावे, बार-बार धुलावे, धोने वाले का बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्तू-"दुरिमगंधे मे पडिग्गहे सडे" ति कट्ट बहुवेब- जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर सिएण तेल्लेण वा-जाव-णवीएण वा, मक्खेग्ज वा, मिलि- पत्र के रात रखा हुआ तेल-यावत् -नवनीत लगावे, बारपेज्ज वा, मक्खतं बा, भिलिगत वा साइजइ। बार लगावे, लगवावे बार-बार लगवावे, लगाने वाले का बार बार लगाने वाले का अनुमोदन करे। जे मिक्खू "दुरिभगंधे मै पडिम्महे लो" ति कट्ट बहुदेव- जो भिक्षु "मुने दुर्गन्ध बाला पात्र मिला है" ऐसा सोचकर सिएण लोण वा-जाव-चण्णण का, उल्लोलेज्ज वा, उन्य- पात्र के रात रखे हुए सोध-यावत् -- वर्ण से लेप करे, बारलेग्ज वा, जल्लोलेंतं वा, उवलेतं वा साइज्जा । बार लेप करे, लेप करावे, बार-बार लेप करावे, लेप करने वाले का बार-बार लेप करने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्खू "दुहिमगंधे मे पडिगहे लढे" ति कटट बहवेव- जो भिक्षु "मुझे दुर्गन्ध वाला पात्र मिला है" ऐसा संचकर सिएण सीओसगवियोण वा, उसिणोगवियडेण था, उच्छो- पात्रको रात रखे हुए अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल लेज्ज था, पधोएज्ज था, उच्छोलेंतं वा, पधोएतं वा से धोये, बार-बार धोये, धुलावे, बार-बार धुलावे, धोने वाले साइजह। का बार-बार धोने वादे का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिवं परिहारट्टाणं उग्धाइयं। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) ---नि. उ. १४, सु. १२-२६ आता है। सयं पायपरिकम्म करणस्स पायपिछत्तसुत्तं-- पात्र का स्वयं परिष्कार करने का प्रायश्चिस सू २६१. जे भिक्खू लाउय-पाय दा-दा-पाय वा, मट्टिया-पायं वा, २६१ जो भिक्ष "तुम्ब पात्र, काष्ठपात्र, या मृतिका पात्र का सयमेव परिघट्ट वा, संठावेह वा, जमावड़ वा, परिघट्टन्तं स्वयं निर्माण करता है, आकार सुधारता है, विषम को सम वा, संठवेंतं बा, जमावत वा साइज्मा । बारता है, निमार्ण करवाता है, आकार सुधरवाता है, विषम को सम करवाता है या निर्माण करने वाले ना अकार सुधारने वाले का विषम को सम करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जद मासियं परिहारट्ठाणं उघाइयं। उसे मासिक उघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. २, सु. २५ आता है। पाय परिकम्म कारावणस्स पायच्छित्त सुतं- पात्र के परिष्कार करवाने का प्रायश्चित सूत्र२६२. जे भिक्खु लाउय-पाय था, हात-पाय वा, मट्टिया-पाय दा, २६२ जो भिक्षु तुम्ब पात्र, काष्ठ पात्र या मुक्तिका पात्र का अण्णउत्थिएण था, गारस्थिएण वा, परिघट्टावेहवा, संठायेा परिघट्टण, संठयग, जमावण का कार्य अन्यती थिक या गृहस्थ से वा, जमावेइ बाअलमप्पणी करणयाए मुहममवि नो कप्पइ, से कराता है. तथा स्वयं करने में समर्थ होते हुए "गृहस्थ से जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स वियरह, वियरंत वा किंचित् भी कराना नहीं कल्पता है" यह जानते हुए या स्मृति साइरगह। में होते हुए भी अन्य भिक्षु को गृहस्थ से कराने की आजा देता है, दिवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाग अणुग्धाइय। उसे मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता -नि. ३. १. मु. २६ है। पाय कोरण पायच्छित्त सुत्तं पात्र को कोरने का प्रायश्चित्त सूत्र२६३. जे भिक्खू पडिगह कोरेह, कोरावेह, कोरियं आहट्ट वेज्ज- २६३. जो भिक्षु पात्र को कोरता है, कोरवाता है, कोरकर देते माणं पहिगाहेछ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवजइ पाउम्मातिय परिहारदाण उग्घाइयं। उसे उपातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि, उ.. १४. सु. ४१ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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