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________________ सूत्र २५७-२५६ चोरों के भय से उन्मार से जाने का निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [७०३ आमोसगभएण उम्मग्ग-गमण णिसेहो घोरों के भय से उन्मार्ग से जाने का निषेध २५७. से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा गामाणुगाम दूइजमाणे अंतरा २५७. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी के से विहं सिपा, से जंपुर्ण विहं जाणेज्जा-इमंसि खतु मार्ग में अटवीवाला लम्बा माग हो और वह यह जाने किविहंसि यहवे आमोसगा पायपटियाए रूपजिया गया , इस अटवीबहुल मार्ग में बहुल से पोर पात्र छीनने के लिए आते जो तेसि भीओ उम्मग्गे गच्छेज्जा-जाव-ततो संजयामेव गामा- है, तो साधु उनसे भयभीत होकर जन्मार्ग से न जाए-यावत् - पुगामं वइग्वेज्जा। समाधि भार स्थिर होकर यमपूर्वक प्रामानुग्राम विचरण -आ. सु. २, अ. ६, उ, २, सु. ६०५ () करे । आमोसगावहारिय पायस्स जायणा णिसेहो- चोरों से अपहरित पात्र के याचना का विधि-निषेध२५८. से भिक्खू वा, मिक्खूणी वा गामाणुगाम इज्जमाणे अंतरा २५८. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी के मार्ग से आमोसगा संपडियाऽगरछेज्ताते गं आमोसगा एवं में चोर पात्र हरण करने के लिए आ जाएं और कहे किबदेज्जा । "आउसंतो समणा ! आहरेतं पायं देहि, णिक्खियाहि" "आयुष्मन् श्रमण ! यह पात्र लाओ हमारे हाथ में दे दो या हमारे सामने रख दो।" तं गो वेज्जा, णिक्खिषेज्जा, इस प्रकार कहने पर साधु उन्हें दे पात्र न दें, बगर वे बलपूर्वक लेने लगें तो भूमि पर रख दें। णो पंपिय जाएगा, णो अंजलि कदर जाएग्जा, णो कलुण- पुनः लेने के लिए उनकी स्तुति (प्रशंसा) करके, हाथ जोड़कर पबियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुतिणीय- या दीन-वचन कहकर याचना न करे अर्थात् उन्हें इस प्रकार से णावेण वा उवहेज्जा। वापस देने को न कहे। यदि मांगना हो तो उन्हें धर्मवचन कह-आ. सु. २, स. ६, उ.२, सु. ६०५ (च) कर समझा कर मांगे, अथवा मौन भाव धरण करके उपेक्षा भाव से रहे। पात्र-परिकर्म का निषेध पाय परिकम्म पिसेहो पात्र के परिकन का निषेध२५६. से मिक्खू वा भिक्खूणी वा "णो गदए मे पाये ति कट्ट" २५६. भिक्षु या भिक्षुणी "मेरा पात्र नया नहीं है" ऐसा सोचकर णो बदेसिएण तेल्लेण वा-जाव-गवणीएण वा, मक्खेज वा, उसके अल्प या बहुत तेल-वावत्-नवनीत न लगावे, न बारमिलिंगेजज था। बार लगावे। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा "गो गयए मे पाये ति ऋ?" भिक्षु या भिक्षुणी "मेरा पात्र नया नहीं है" ऐसा सोचकर जो बहुदेसिएण सिणाणेण वा जाब-पउमेण वा आघसेज्ज वा, उसे अल्प या बहुत सुगंधित द्रव्य समुदाय से-यावत्-पह्मचूर्ण प,सेज वा । से न पिसे, न बार-बार घिसे । से भिवासू वा मिक्खूणी वा “णो गवए में पाये ति कट्ट" भिम या भिक्षुणी ''मेरा पात्र नया नहीं है" ऐसा सोचकर णो बहुवेसिएग सीओदगविपण वा, उसिणोजगवियडेग वा, उसे अल्प या बहुत अचित पीत जल से या अचित्त उरुण जल उम्छोलेज वा, पधोएब्ज था। से न धोये, न बार-बार धोये। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा "बुग्भिगंधे मे पाये ति कट्ट" भिक्षु या भिक्षुणी "मेरा पात्र दुर्गन्धवाला है" ऐसा सोचणो यहदेसिएण तेल्नेण वा-जाव-गवणीएण घा, मक्खेज्ज वा, कर उसके अल्प या बहुत तेल-यावत्-नवनीत न लगावे, न मिलिगेज्म वा। बार-बार लगावे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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