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चरगानुयोग
केवली का मोक्ष और सम्पूर्ण शानिश्व
सूत्र ५०-५३
केलिस्स मोक्खो संपुण्णणाणित्तं च
केवली का मोक्ष और सम्पूर्ण ज्ञानित्व५०.५०केवली गं भंते ! मणूसे तोतमणतं सासयं समय-जाव- ५०.४०-भगवन् ! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में केवली सम्बनुक्खा अंत करें?
मनुष्य ने-यावत् – मर्च दुःखों का अन्त किया है ? -हंता, सिजिससु-जाव-सय्यबुवखाणं अंतं करेंसु । एते उ हाँ गोतम ! बह सिद्ध हुआ,-पावत् - उसने समस्त तिणि आलावगा माणियम्वा छउमस्थस्स जधा, नवरं दुःखों का अन्त किया। यहाँ भी छमस्थ के समान ये तीन सिनिशिदि, पिविासंति।
लाक कहने चाहिए। विशेष यह है कि सिद्ध हुआ, सिज्ञ होता
है और सिद्ध होगा, इस प्रकार तीन आलापक कहने चाहिए । प०-से नणं भंते ! तीतमणी सासयं समयं, पड़प्पन्न वा प्र०--भगवन् ! बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में, वर्तमान
सासयं समय, अणागतमर्णत वा सासर्य समधं जे केइ शाश्वत काल में और अनन्त शाश्वत भविष्य काल में जिन अन्तअंतकरा वा अंतिमसरोरिया वा सम्बदुक्खाणमंत करों ने अथवा चरमशरीरी पुरुषों ने समस्त दुःखों का अन्त करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा सन्चे ते उत्पन्नताण- किया है, करते हैं या करेंगे; क्या वे सब उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, बसणधरा बरहा जिणे केवली भवित्ता तओ पच्छा अहन्त, जिन और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध बुद्ध आदि होते
सिझंति-जाव-सवदुक्खाणं अंत करेस्संति वा? हैं,--यावत्-सब दुःखों का अन्त करेंगे? 30--हंता, गोयमा ! तीतमगंत सासतं समय-जाव-सन्ध- उ-हाँ, गौतम ! बीते हुए अनन्त शाश्वतकाल में-यावतटुक्खाण अंत करेस्संति या।
सब दुःस्त्रों का अन्त करेंगे। १०–से नूग भंते ! उत्पन्ननाग वंसणधरे अरहा जिणे केवली प्र-भगवन् ! वह उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी अर्हन्त, जिन "असमत्यु" ति वत्तव्य सिया
और फेवली 'अलमस्तु" अर्थात् पूर्ण है, ऐमा कहा जा सकता है ? ज-हता, गोयमा ! उप्पन्ननाण-दसणधरे अरहा जिणे उ०-हाँ, गौतम ! वह उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी, अर्हन्त, जिन केवली "अलमत्थु" ति यत्तव्यं सिया।
और केवली पूर्ण (अलमस्तु) है, ऐसा कहा जा सकता है। वि. स. १, उ. ४, सु. १६-१८ बलिपण्णत्तस्स धम्मस्स सवणाणकलो वयो
केवलिप्रज्ञप्त धर्म श्रवण के अनुकूल वग -- ५१. तो क्या पण्णसा, जहा -
५१. वय (काल-कृत अवस्था - भेद) तीन कहे गये हैपतमे वए, मजिसमे बए, पच्छिमे वए।
प्रथम वय, मध्यम वय, और पश्चिम क्य। तिहि वहि आया फेवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तीनों ही बयों में आत्मा केबलि-प्रजप्त धर्म-श्रवण का लाभ त जहा---
पाता है यथा-- पढमे वमे, मजिसमे वए, पच्छिमे पए।
प्रथम बय में, मध्यम वय में और पश्चिम वय में । -ठाणं, अ. ३, उ. २, सु. १६१ केवलिपणतस्स धम्मस्स सवणाणु फूलो कालो
केबलिप्रज्ञप्त धर्म धवण के अनुकूल काल४२. १. तो जामा पग्णत्ता, तनहा
५२. १. तीन याम (महर) कहे गये हैंपदमे जामे, मजिसमे जामे, परिछमे जामे ।
प्रश्रम याम, मध्यम याम और पश्चिम याम । २. तिहि जामेहि आया केवलिपण्णत्तं धम्मं तमेज २. तीनों ही यामों में आत्मा केबलि-प्रज्ञप्त धर्म-श्रवण का सवणयाए, तं जहा
लाभ पाता हैपढमे जामे, मजिममे जामे, पच्छिमे जामे ।
प्रथम याम में, मध्यम याम में और पश्चिम याम में । -ठाणं. म. ३. ज. २, सु. १६२ धम्माराहणाणुकूलखितं
धर्म आराधना के अनुकूल क्षेत्र५३. (क) गामे अनुबा रणे,
५३. महामाहण मतिमान भगवान महावीर ने कहा हे साधक ! (a) व गामे, णेब रपणे धम्ममायाणह।
तू ये जान ले कि यदि विवेक है तो गाँव में या अरण्य में ... पवेइयं माहणेण मइमया ।
दोनों जगह धर्म आराधना हो सकती है। यदि विवेक नहीं है तो -आ. सु. १, अ. E, उ.१, सु. २०२ न गांव में और न अरण्य में आराधना हो सकती है।