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________________ ६०४] चरणानुयोग जे भिक्खू वस्थं अच्छेज्जं अणिसिद्ध, अभिहडमाहटु वैज्जमाया डिवाइ तं सेवमाणे आयज्ज चाउम्मासियं परिहारद्वाणं उग्धाइयं । नि.उ.१८, सु. २४-२७ अहरेग वत्थ विवरण वाच्छित्तगुप्साई१८०. जे भिक्खू अगं वत्थं णि उद्दिसियं गणि समृद्दिसिवं तं गणि अणापुच्छिय अणामतिय अण्णमण्णस्स वियरद्द, वियतं वा साइज्जड बाबा रस्स बा, थेरियाए या (१) अहत्यच्छिष्णस्स (२) अपायsure, (३) अकण्णछिष्णस्स (४) अणासच्छिण्णस्स (५) अणीच्छिण्णस्स सक्क्स्स देइ देतं वा साइज्जइ । रस् जे भिक्खू अइरेगं वत्थं खुहुगस्स वा, खुड्डियाए वा वारियार (१) हत्यचिणस्स (२) पाय (३) कण्णछिष्णस्स ( ४ ) णासच्छिण्णस्स, (५) ओच्छि oute अकस्स न देइ, न देतं वा साइज्जइ । वत्थ धारण कारणाई १०१ (१) हरियलि (२) गुंछावत्तियं, (२) प एसणिज्जाणि वत्थाणि१०२. अतिरिक्त वस्त्र वितरण के प्रायश्चित सूत्र (१) (२) वा (२) गावा सं से ज्जं पुण व जागेउजा, तं परिहार उद -- नि. उ. १८, सु. २५-३० -ठाण. अ. ३, उ. ३, सु. १७६ वा जवस अहा- आता है। अतिरिक्त वरष वितरण के प्रायश्चित जो भिक्षु आच्छेद्य, अनिरृष्ट और सामने लाये गये वस्त्र को लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। उपासिकात परिहारस्थान (अति) वस्त्र धारण - २ [१] सूत्र १७६ १८२ जो भिक्षु अतिरिक्त वस्त्र को जिसके १. हाथ, २. पैर, ३. बदन, ४. नाक और ५ होठ कटे हैं ऐसे क्षुल्लक या सुल्लिका के लिए स्थविर और स्थविरा के लिए जो अशक्त हैं उन्हें नहीं देता है, नहीं दिलवाता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। कठ - १८०. जो भिक्षु अतिरिक्त वस्त्र को गणी के उद्देश्य से या किसी विशेष गणी के उद्देश्य से लाये गये वस्त्र को उस गणी से बिना पुणे, बिना आमन्त्रण दिये यदि किसी अन्य को देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है । " जो भिक्षु अतिरिक्त वस्त्र को १. जिसके हाथ कटे हुए नहीं हैं, २. पैर कटे हुए नहीं हैं, ३. काम, ४. नाक और ५. होठ कटे हुए नहीं हैं ऐसे क्षुल्लक या भुल्लिका स्थविर या स्थविरा जो सशक्त हैं उनके लिए देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनु मोदन करता है । वस्त्र धारण के कारण १०) तीन कारणों से वस्त्र धारण करें, यथा- १. २. ३. एषणीय वस्त्र १०२. भाभी की गा करना चाहे तो वे वस्त्रों के सम्बन्ध में जाने। वे वस्त्र इस प्रकार हैं- सेवानिवार के लिए)। 1 (पुणा निवारण के लिए)। मेतादि परीषद के निवारण के लिए)। १. जागमिक जीवों के अव्यको से निष्पन्न वस्त्र । २. मांगिक अली की छाल से निष्पन्न वस्त्र । ३. सानिक सण से निष्पन्न वस्त्र | -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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