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________________ ३८] चरणानुयोग केबलिप्राप्त धर्म की प्राप्ति सूत्र ४७-४८ पल-से केण?णं भंते एवं बुच्चद प्र. हे भदन्त ! किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैअसोच्छा गं फेलिस्स वा--जाव-तपक्षिय उवा- कंबली से यावत्-केबली-पाक्षिक उपासिका से बिना मुने सियाए या अस्थगतिए केवलिपन्न धम्म लज्जा कई जीव केबली प्रजप्त धर्म को श्रवण करते हैं, कई जीव केवली सवणयाए अत्येतिए केलिपमतं घम्मं नो लमज्जा प्रज्ञप्त धर्म को श्रवण नहीं करते हैं ? सपणयाए? उ-गोयमा ! जस्स नाणावरणिज्जाणं कम्माणं समो- ज....गौतम । जिसके जानावरणीय कमों का क्षयोपशम यसमे करे भवद, से असोपचा फेवलिस वा-जाय- हुआ है, वह केवली से-पावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से तप्पविषयउवासियाए वा केवलि-पन्नतं धम्मं बिना सुने केवली प्रजप्त धर्म का श्रवण प्राप्त कर सकता है। लभेज्जा सवणयाए। जस्स गं माणावरणिज्जाणं कम्मागं खोवसमे नोकडे जिसके ज्ञानापरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं हुआ है, वह मवइ, से गं असोच्चा केवलित वाजाव-तप- केवती से-यावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से बिना सुने क्खियउवासियाए वा केवलि पन्नतं धर्म नो सभेजा केवली प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण प्राप्त नहीं करता है। सवणयाए। से तेणगुणं गोयमा एवं बुच्चइ गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैजस्स पं नाणावरणिज्जाणं कम्मागं खओवसमे कडे जिसके ज्ञातावरणीय कमों का अयोपशम हुआ है, वह केवली भवा, से गं असोन्या केवलिस वा—जाब-सप्प- से-यावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से बिना सुने केवली क्खियउवासियाए या केवलि पन्नतं घम्भ लभेजा। प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण प्राप्त कर सकता है। जम्स पं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खोबसमे नोकडे जिसके ज्ञानावरणीय कर्मों का भयोपशम नहीं हुआ है, वह मवइ, से पं असोपचा केलिस्स वा-जाव- तप्प- केवली से पावत् ... केवली पाक्षिक उपासिका से बिना सुने मिखयउवासियाए वा केवलि पन्नतं धम्म नो लभेज्जा। केवली प्रज्ञान धर्म का थक्षण प्राप्त नहीं कर सकता है। –वि. स. ६, उ. ३१, सु. १३ प०-सोचा गं भंसे ! फेवलिस्स वा, केवलिसाबस्स वा, प्र०-भन्ते ! केवली से, केवली के श्रावक से, कंबली की केलिसावियाए का, फेलिउवासगम्स वा, केबलिखवा- श्राविका से, केवनी के उपामक से, केवली की उपासिका से, सियाए वा, सप्पक्खियस्स वा, तपस्वियसाबगरस वा, केवली में पाक्षिक से, केवली पाक्षिक श्रावक से, केवली पाशिक तप्पविष्णयसावियाए वा, तपक्खियउवासगस्स वा, सम्प. उपासिका से सुनकर कोई जीव केवली प्रज्ञप्त धर्म के श्रवण का क्वियउवासियाए चा, केबलिपन्नतं धम्म लमज्जा लाभ प्राप्त कर सकता है? सवषयाए? उ०-गोयमा । सोच्चा पं केवलिस्स वा-जान-सम्प- उ.नौतम ! केबली से--यावत्-केवलि पाक्षिक उपा विखयउवासियाए वा अत्थेगतिए केलिपन्नतं धम्म सिका से सुनकर कई जीव केवली प्राप्त धर्म का श्रवण प्राप्त लमेज्जा सबणयाए, अस्थगतिए केलिपन्नत्तं धम्म नो कर सकते हैं कई जीव केवली प्रजप्त धर्म का श्रवण प्राप्त नहीं सभेजा सक्णयाए। कर सकते हैं। प०-सेकेणगुण भंते एवं बुच्चा -- प्र०- भन्ते ! विरा प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैसोच्चा णं केवलिस्स या-जान—तप्पक्षियउवा- केवलि से—यावत् केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर सिपाए वा अस्थगतिए केवलिपन्नत्तं धर्म लमेजा कई जीव केबली प्रजप्त धर्म को श्रवण करते हैं, और कई जीव सवणयाए अत्थेतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा केवली प्रज्ञप्त धर्म को श्रवण नहीं करते हैं ? सवणयाए? -गोयमा ! जस्स गं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओ- उ०—गौतम 1 जिसके ज्ञानाबरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं बसमे नो कडे भयइ, से सोचा फेवलिस्स दा हुआ है, वह केवती से-मावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से -जाब-तप्पक्खियउदासियाए वा केवलि पन्नत्तं सुनकर केवली प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण नहीं करता है। धम्म नो लमेरजा सवणयाए ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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