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________________ शुत्र १५१-१५६ कुलों में रहने का प्रायश्चित्त सूत्र दुच्छिय कुल पायच्छित सुतं११.पापा का घुमित कुलों में रहने का प्रायश्चित - १५१. जो भिक्षु घृणित कुलों की शय्या में आश्रय स्थान लेता लाता है, या लेने वाले का अनुमोदन करता है । उसे चातुर्मासिक उपातिक गरिहाल्या आता है । निर्ग्रन्थियों के उपाय में अविधि से प्रदेश करने का प्रायश्चित्त सूत्र १२. चीन उपरसवंत अविहीए अपविसह १५२. जो मिनि के उपाश्रय में अविधि से प्रवेश करता है, प्रवेश करवाता है या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। अणुत्पवितं वा साइज्ज उसे मासिक उद्भातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) बाता है । साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासि परिहाराणं उपधाइयं । - नि.उ. १६. सु. ३० गिंयो उबस्सए अविहि पवेसणस्स पायच्छित सुतं ३ तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारद्वाणं उम्द्याइयं । - नि. उ. ४. सु. furiथी आगमणपहे उवगरण-ठवणस्स पाच मुस १२. गावा रहरणं वा मुहपत्तियं वा अन्ययरं वा उकारणजाएं os, ठवतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवजह गासियं परिहारट्ठाणं उग्घा इयं । - नि उ. ४. सु. २४ सरिसणिग्ययस्स आवासे अदिष्णुं पायच्छि १५४. जे जिथे गिंयस्स सरिसगस्स अंते ओवासे संते, ओवासं ण दे ण देतं वा साइज्जद 14 तं सेवमाणे आज चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उपायं । -नि. उ. १७, मु. १२१ सरिसग्गिंथीए आवास अदिष्णस्स पायच्छित सुतं१५४. जा जियांची सिरिया से ओवासं ण देव देतं वा साइज । तं सेवमाणे यावज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाहयं । - नि. उ. १७. नु. १२२ उवस्सए णायगाणं असावणस्स पायच्छित सुशाई१५६. जे मिक्णाय वा अणावगं था. उवासगं वा अणुवःसगं वा अंतो उवस्सस्स अहं वा राई कसिणं वा राई संघसा बेई, संवसावतं वा साइज । चारित्राचार एषणा समिति जे भिक्षू णाय वा अणायगं या अणुवासगं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राई, कसिणं या राई वसावे, तं [६०५ निर्ग्रन्थियों के आगमन पथ में उपकरण रखने का प्रायश्चित सूत्र - १५३. जो भिक्षु निर्ग्रन्थियों के आगमन पथ में दंड, लाठी, रजोहरण का मुख वस्त्रिका अथवा अन्य कोई उपकरण रखता है, रखवाता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । उसे मासिक उपातिक परिहारस्थान (पति) माता है। स्वधर्मी निर्ग्रन्य को आवास न देने का प्रायश्चित्त सूत्र - १५४ जो निर्ग्रन्थ सहरा ( आचार वाले) निग्रन्थ को उपाथय में ठहरने के लिए स्थान होते हुए भी स्थान नहीं देता है, न दिवाल है, न देने वाले का अनुमोदन करता है। इसे पर्यातिक प्रद्यानिक परिहारस्थान ( आता है। निधीको आवास न देने का प्रायश्चित सूत्र १५५. जननी में हरने के लिए स्थान होते हुए भी स्थान नहीं देती है, न दिवाली है या न देने वाली का अनुमोदन करती है। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (शश्चित ) आता है। स्वजन आदि को उपाश्रय में रखने का प्रायश्चित्त सूत्र - १५६. जो भिक्षु स्वजन या परजन, उपासक या अन्य कोई भी स्त्री को उपाश्रय में आधी रात या पूरी रात रखता है, रखवाता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु स्वजन या परजन, उपासक या अन्य कोई स्त्री को आधी रात या पूरी रात रखकर उसके निमित्त उपाश्रय से
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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