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सूत्र १३३-१३६ प्रतिलेखन किये बिना शय्या पर शयन करने वाला पाप-श्रमण होता है चारित्राचार : एषणा समिति
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से य अणुगवेसमाणे लभेज्जा तस्सेब पडिवायथ्ये सिया। अन्वेषण करने पर यदि मिल जाये तो उसी को दे देना
चाहिए। से य अणुगसमाणे नो लभेज्जा एवं से कप्पद वोच्चंपि अग्देषण बारने पर कदाचित् न मिले तो पुन: आज्ञा लेकर उग्गहं अणुण्णवेसा परिहारं परिरित्तए।
अन्य शा संस्तारक ग्रहण करके उपयोग में लेना कल्पाता है।
...कृष्प. उ. ३. सु. २५ अपडिलेहिए सेज्जासंथारए सुबमाणो पावसमणो--- प्रतिलेखन किये बिना शय्या पर शयन करने वाला पाप
श्रमण होता है - १३४. ससरक्खपाए सुबई, सेन्जं न पडिलेहह।
१३४, जो सचित्त रज से भरे हुए परों का प्रमार्जन किये बिना संथारए अणाउत्ते, पावसमणि त्ति बुच्चई।
ही सो जाता है और सोने के स्थान का प्रतिलेखन नहीं करता -उत्त. अ. १७, गा.१४ - इस प्रकार बिछौने (या सोने) के विषय में जो असावधान होता
है वह पाप-श्रमण कहलाता है। अणुकूल पडिकूलाओ सेज्जाओ
अनुकूल और प्रतिकुल शय्यायें१३५. से भिक्खू बा, भिक्खूणी वा,
१३.. संवमशील भिक्षु या भिक्षुणी को, समा वेगथा सेम्जा भवेज्जा,
कभी सम शय्या मिले, विसमा वेगा सेज्जा भवेज्जा,
कभी विषम शय्या मिले, पवाता वेगया सेज्जा भवेग्जा,
कभी वायु युक्त शय्या मिले, णिवाता वेगया सेज्जा भयेमा,
कभी निर्मात् शय्या मिले. ससरक्खा वेगया सेन्जा भवेजा,
कभी धूल युक्त शय्या मिले, अप्पसरवला वेगया सेज्जा भवेज्जा,
कभी धूल रहित शरमा मिले, सर्वस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा,
कमी डास मच्छरों से युक्त शय्या मिले, अप्पस-मसगा वेगया सेज्जा मवेज्जा.
कभी डांस मच्छरों से रहित शय्या मिले, सपरिसाडा बेगया सेज्जा भवेन्जा,
कभी जीर्ण-शीर्ण शय्या मिले, अपरिसाहा गया सेज्जा भवेज्जा,
कभी सुदृढ शय्या मिले, सउवसांगा बेगया सेज्जा भयेज्जा,
कभी उपसगं युक्त शय्या मिले, णिरुषसगा वेगया सेज्मा भवेज्जा,
को उपसर्ग रहित शय्या मिले। तहप्पगाराई सेग्जाहि संविज्जमाणाहिं पहियतराग विहारं इन ग्याओं के प्राप्त होने पर उसमें समचित्त होकर संयम बिहरेन्जा । णो किचि वि गिलाएजजा ।
में रहे, किन्तु मन में जरा भी खेद या ग्लानि का अनुभव न —आ. मु.२, अ. २. उ. ३, सु. ४६२ करे।
संस्तारक ग्रहण विधि निषेध-७
करपणिज्जा अकप्पणिज्जा सेज्जा संथारगा
कल्पनीय अकल्पनीय प्रय्या संस्तारक१३६. से मिक्खू वा भिक्खूणी था, अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए। १३६. भिक्षु या भिक्षुणी संस्तारक की गवेषण करना चाहे और
से ज्जं पुण संभारगं जाणेज्जा-रा अंड-जान मक्का -संताणगं, यह जाने कि वह मंस्तारक अण्डों से-यावत् --मकड़ी के जालों नहप्पगारं संथारग अफासूर्य-जा-णो पहिगाहेज्जा। से युक्त है तो ऐसे सस्तारक को अप्रासुक समझकर-यावत् --
ग्रहण न करे।