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सूत्र १२५-१२९
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नियों के कल्प्य आसन
मेरा य से अगुजाज्जा, तस्सेव लिया । बेरा य से नो अणुजाणेला नो तस्सेव सिया ।
एवं से कापड अहारानिति ॥ - बव. उ. ८ सु. १
विभ्ययाणं कप्पणिज्ज आसगाई - सावस्सयति असणंसि असइत्तए वा.
१
१२६. कप्पनिया तुर्यात्तिए या
कप्पइ निग्रगंधाणं सविसाणंसि पोठंसि वा फलगंसि वा, आइए वा तुयट्टिए वा । अप्प . सु. ३७-३३ सेज्जासंवारग आणण विहि
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सेम्जा, जं चक्किया एमेणं हत्येणं ओगिज्न जाब- एगार वा बुयाई वा तियाहं वा अाणं परिवहित्तए, एस में हेमंत गिम्हालु भविस्स ।
से य अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा-जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिण्झ-जात्र एगाहं वा, बुयाहं वा तियाया अपरिवहिए एव
सेय अहालहसगं सेज्जासंधारगं गयेसेज्जा जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्न जान एयाहं वा दुयाहं वा, तियाहं वा चज या या पंचा वा घूरमवि अद्धाणं परिवहिलए एम मे बुढाबासामु भविस्सइ । -उप सु. २-४
सेज्या संथारगस्स पुणरवि अणुष्णा
१२८. कप्पए निर्णाण वा निम्नयोण या पाडिहारियं वा लामारिया सेनाधार अवेता
बहिया नोहरितए । कम्पह निगंधाण वा निमोण वा पाडिहारियं वा सागारिय-संतियं वा सेज्जासंघारगं सवप्पपा अप्पिणिता दोच्चं पिओमा अणुखता अहि. ७-६ सेज्जा संचारण संचरण बिही १२.भा.अभिलासेजार
भूमि परिहारिया
या
पवत्तएणं वा, थेरेण वा गणिणा वा गणहरेण वा गणा
कप्प. उ. २, सु. १६ ।
चारित्राचार : एषणा समिति
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किन्तु स्थविर यदि उस स्थान के लिए आशा दे तो वहाँ शय्या संस्तारक करना कल्पना है। यदि स्थविर आज्ञा न दें तो वहाँ शय्या संस्तारक करना नहीं कल्पता है ।
स्थविर के आज्ञा न देने पर ययारत्नाधिक (दीक्षा पर्याय से ज्येष्ठ-कनिष्ठ) क्रम से शय्या संस्तारक ग्रहण करना कल्पता है । निर्ग्रन्थों के कल्प्य आसन
१२६. निसाको साग (अवलम्बनयुक्त पर बंदना एवं शयन करना कल्पता है ।
निर्ब्रन्थ साधुओं को सविषाण पीठ (बाजोट) पर या फलक (शयन का पाट) पर बैठना एवं शयन करना कल्पता है । शय्या संस्तारक के लाने को विधि
१२७. श्रमण यथासम्भव हल्के सध्या संस्तारक का अन्वेषण करे। वह इतना हल्का हो कि उसे एक हाथ से ग्रहग करके लाया जा सके तथा एक दो तीन दिन तक के मार्ग से लाया जा सकता है। इस प्रयोजन से कि यह शय्या संस्तारक मेरे हेमन्त या ग्रीष्म ऋतु में काम आएगा ।"
श्रमण यथासम्भव हल्के या संस्तारक का अन्वेषण करे । वह इतना हल्का हो कि उसे एक हाथ से ग्रहण करके लाया जा सके तथा एक दो तीन दिन तक के मार्ग से लाया जा सकता है। इस प्रयोजन से कि "यह शय्या संस्कारक मेरे वर्षावास में काम आएगा।"
श्रमण यथासम्भव हल्के शय्या संस्तारक की याचना करे । वह इतना हल्का हो कि उसे एक हाथ से उठाकर लाया जा सके तथा एक, दो, तीन, चार, पाँच दिन में पहुंचे इतने दूर (दो कोश उपरान्त) के मार्ग से भी लाया जा सकता है इस प्रयोजन से कि "यह शय्या संस्तारक मेरे वृद्धावास में काम आएगा।" शय्या संस्कारक को पुनः आशा लेने की विधि
१२. निर्ग्रन्थ निन्थियों को प्रातिहारिक या शय्यातर का शय्या संस्कारक दूसरी बार आशा लेकर होति से बाहर से जाना कल्पता है ।
निर्ब्रन्थ निर्ग्रन्थियों को प्रातिहारिक मा शय्यातर का व्या संस्तारक सर्वथा सौंप देने के बाद दूसरी बार आज्ञा लेकर ही काम में लेना कल्पता है ।
शय्या संस्तारक के बिछाने की विधि
१२६. विमा निक्षुषी या संस्कार भूमि की प्रतिलेखना करना चाहे तो वह आचार्य उपाध्याय प्रवर्तक स्थविर, गणी, गणधर गणावच्छेदक, बालक, वृद्ध, शैक्ष (नवदीक्षित) ग्लान एवं