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________________ सूत्र ११७-१२० सचित पृथ्वी आदि का अवग्रह निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [६५५ बहियाओ चा जो अंतो पवेसेजा, णो सुत्त वा ग पडियो- उपकरण पड़े हों, उन्हें वह भीतर से बाहर न निकाले और न हेज्जा, णो तेसि किंचि ति अप्पत्तियं परिणीयं करेज्जा। ही बाहर से अन्दर रखे, तथा किसी सोए हुए को न जमाए। -आ. सु.२.अ. ७, इ.२, सु. ६२१-६२२ उनके गाथ बिचित मात्र भी अनीतिजनक या प्रतिकूल व्यवहार न करे, (जिससे उनके हृदय को आघात पहुंचे ।) अवग्रह ग्रहण निषेध-५ सचित्त पुढवो आईणं उगह णिसेहो--- सचित्त पृथ्वी आदि का अवग्रह निषेध११८. से भिक्खू वा भिक्खूणी या से ज्जं पुण उमगहं जाणेग्जा-- ११६. भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसे अवग्रह स्थान को जाने, जो अणंतरहियाए पुढवीए-जाव-मक्क डा.संताणए तहप्पगारं सचित पृथ्वी के निकट हो यावत्-मकड़ी के जाले से युक्त उम्गहें णो ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा। हो, तो इस प्रकार के स्थान का अवग्रह -"आज्ञा" ग्रहण न - आ. सु. २, अ. ७, उ.१.नु.६१२ बरे । अंतलिक्खजात उगहाणं णिसेहो - अन्तरिक्ष जात अबरहों का निषेध११६. से मिक्खू वा भिक्षूणी वा से ज्ज पुण उग्गहं जाणज्जा-११६. भिक्षु या भिक्षुगी यदि ऐसे अवग्रह को जाने, यथा-ठूठ, थूणंसि बा, गेहलुगंसि धा, उसुयालसि वा, कामजलसि वा, देहली, उखल, स्नान करने की चौकी तथा अन्य भी ऐसे जन्तअषणयरसि वा, तहापगारेसि अंत लिक्खजायसि दुम्बर्द्ध-जाव- रिक्ष जात "आकाशीय" स्थान जो कि दुबंद्ध - यावत्-चला. चसाचले, जो उगह ओगिण्हेन्ज वा पगिण्हेज्ज वा। चल हो उनका अपग्रह ग्रहण नहीं करे । से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से उजं पुण उमगह जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे अवग्रह को जान, जो घर की कच्ची खंधसि वा. मितिसि वा सिलसि वा, लेलुसि वा, अण्णयरंसि पतली दीवार, ईंट आदि की पक्की दीवार, शिला म शिलाखंड वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि दुब्बवे-जाव-चताचले पत्थर आदि अन्य भी ऐसे आकाशीय स्थान जो कि दुर्बद्ध जो उगहं ओगिण्हेज बा, पगिण्हेज्ज वा। -यावत्-चलाचल हो उनका अत्रग्रह ग्रहण न करे । से भिक्खू वा भिक्खूणी बा से ज्ज पुण उग्गहं जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे अवग्रह को जाने-जो स्तम्भ गृह खंधसि वा, मंचसि वा, मालसि बा, पासायसि वा, हम्मि- चान, ऊपर की मंजिल, प्रासाद, हवेली की छत तथा अन्य भी यततंसि वा, अण्णयरसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि ऐसे आकाशीय स्थान जो कि दुबंद-यावत्-चलाचल हो, दुबवे-जाव-चलाचले, णो उग्गहं ओगिण्हेज्ज वा पगिण्हेर उनका अवह ग्रहण न करे। वा। --आ. सु. २, अ. ७, उ. १, सु. ६१३-६१५. सागारिय संजुत्त उबस्सयस्स उगह णिसेहो- गृहस्थ संयुक्त उपाश्रय का अवग्रह निषेध१२०. से भिक्खू वा मिक्खूणी चा से जं पुण जग्गाहं जाणेज्जा- १२०. भिनु या भिक्षुगी ऐसे अवग्रह को जाने, जो गृहस्थों से ससागारियं, सागणिय, सउदयं सहत्यि, सखुदाई, सपमु. संसक्त हो, अग्नि से युक्त हो और जल से युक्त हो तथा जो मसपाणं णो पण्णस्स णिक्तमण पवेसाए-जाव-धम्माणुओर स्त्रियाँ, छोटे बच्चे, पशु और खाद्य सामग्री से युक्त हो प्रज्ञादाद चिताए. साधु के लिए ऐम आवास स्थान निगंगन-प्रवेश – यावत् -धर्मा नुवोग चिन्तन के योग्य नहीं है, सेवं गचा तहप्पगारे उबस्सए ससागारिए-जाव-सपसु- यह जानकर गे गृहस्थ से संनक्त यावत् -पशु और खाद्य भरापाणे, नो उग्गहं ओगिहेज्ज वा, पगिरहेज्ज वा। सामग्री से युक्त उपाश्रय का अवयह ग्रहण न करे। -आ. सु. २, भ.७, उ. १, सु. ६१६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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