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पुत्र १०६-१०७
आहार युक्त उपाश्रय के विधि-निषेध
चारित्राचार : एषणा समिति
[६५१
आहार जुत्त उपस्सयस्त विहि-सही
आहार युक्त उपाश्रय के विधि-निषेध.. १०६. उत्स्सयस्स अंतोषगडाए-पिण्डए बा, लोपए था, खीरं १०६. उपाश्रय की परिधि में पिण्डरूप वाद्य, लोचक-यावा आदि,
वा. वहि वा. नवणीए था, सपि वा, तेल्ले चा, फाणिय वा, दूध, दही, नवनीत, घृत, तेल, गुड़, मालपुए, पूड़ी और धीखण्ड पूर्व वा. सक्कुली वा, सिहरिणो वा।
(शिखरण) उक्खित्ताणि वा, विक्खित्ताणि वा, विइगिरणाणि वा, विष्प- उत्क्षिप्त विक्षिप्त व्यतिकर्ण और विपकी है तो, इण्णाणि वा। नो कप्पइ निग्गंधाण या निग्गंथीण बा, महालंदमवि वत्थए। निग्रन्थों और निम्रन्थियों को वहाँ "पथालन्दकाल' बसना
भी नहीं कल्पता है। मह पुण एवं जाणेज्जा -नो उक्सित्ताई, नो विश्वित्ताई, यदि निन्थ और निम्रन्थियां यह जाने कि (उपाश्रय की नो विइकिग्णाई वा, नो विपदण्णाई वा।
परिधि में या आंगन में पिण्डरूप खाद्य-यावत्-- श्रीखण्ड)
संक्षिप्त, विक्षिप्त, व्यतिकीर्ण या चित्रवीर्ण नहीं है, रासिकहाणिया, पुंजकदाणि वा. भित्तिकवाणि वा, कृलि- किन्तु राशिकृत, पुंजकृत, भिनिकृत, कुलिकाकृत तथा लांछित याकखाणि वा, लछियाणि वा. मुदियाणि बा, पिहियाणि वा। मुद्रित या पिहित है सो, कप्पड निरगंथाण था, निग्गंथोण वा हेमंत-गिम्हासु निम्रन्थों और निग्रन्थियों को वहां हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु बत्थए।
में बसना कल्पता है। अह पुण एवं जाणेज्जा-नो रासिकमाई-त्राव-नो फुलिया- नियन्य और निर्गन्धियाँ यदि यह जाने कि (आश्रय के कडाई।
भीतर में पिण्डरूप खाद्य-पावत्-श्रीखण्ड) राशिकृत-यावत्
कुलिकाकुत नहीं है, कोढाउत्ताणि वा, पल्लाउत्साणि था, मंचाउत्ताणि वा, किन्तु कोठे में या पल्य में भरे हुए हैं, मंच पर या माले पर मालाउत्ताणि वा, भिउत्साणि वा, करभि-उत्ताणि वा नुरक्षित है, कुंभी या दोघी में घरे हुए हैं, मिट्टी शगोबर से औलित्ताणि वा, चिलित्ताणि वा, पिहियागि वा, लंछियाणि लिप्त हैं, ढके हुए, चिन्ह किये हुए या मुहर लगे हुए हैं तो उन्हें वा. मुष्टियाणि वा। कप्पइ निग्गंधाण वा, निग्गंधीण वा वहाँ वर्षावास करना कल्पता है । वासावासं वत्थए।
-कप. उ. २, सु. ८-१० मामाइसु वासाबास विहि-णिसेहो
ग्रामादि में चातुर्मास करने का विधि-निषेध१०७. से भिक्खू वा मिक्खूणी वा से ज्जं पुण जाणेजा-मामं वा १०७. भिक्षु या भिक्षुणी ग्राम-पावत् ---राजधानी के सम्बन्ध -जाव-रायहाणि वा।
में यह जाने किइमंसि खलु गामंसि वा-जाब-राबहागिसि वा जो महती इस ग्राम-यावत् -राजधानी में स्वाध्याय योग्य विशाल बिहार भूमि, गो महती बियार भूमी ।
भूमि नहीं है, मलमूत्र विसर्जन के लिए विशाल स्थंडिल भूमि
णो सुलभे पोह फलग सेज्जा-संयारए ।
पीठ फलक शम्या संस्तारक भी सुलभ नहीं है, जो सुलमे फासुए उछे अहेसगिज्जे ।
प्रारुक निदोष एषणीय आहार पानी भी सुलभ नहीं है, बहवे जत्थ समण-ज्ञाव-वणीमगा उबागया उवागमिस्संति य जहाँ बहुत से श्रमण-मावत्-भिखारी आये हुए है या अच्चाइण्णा विती, णो पण स्स णिप्रखमण पवेसाए-जाय- जावेंगे, तथा मागों में जनता की भीड़ भी अधिक रहती है। चिताए।
प्रज्ञावान् साधू को वहाँ निकालना प्रवेश करना--यायत्-धर्म सेवं गच्चा तहप्पगार गाम वा-जाय-रायहाणि वाणो वासा- चिन्तन कारमा उपयुक्त नहीं होता है, ऐसा जानकर इस प्रकार के बासं उपसिएज्जा।
ग्राम-पावत् । राजधानी में वर्षाचास नहीं करे। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से ज्जं पुण जाणेज्जा-गाम घा भिक्षु या भिक्षुणी ग्राम-- यावत्-राजधानी के सम्बन्ध में जाव-रावहाणि वा।
यह जाने कि,