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सूत्र १०२-१०३
तृण पराल मिमिस उपाभय का विधि-निषेध
चारित्राचार : एषमा समिति
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से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से उजं पुण उवस्मयं जाणेज्जा- भिक्षु वा भिक्षुणी ऐसा उपाश्रय जाने कि गृहस्थ साधुओं के अस्संजए भिक्खपडियाए उबकपमुयाणि कवाणि वा, मूलाणि निमित्त से. पानी से उत्पन्न हुए लन्द मूल, पत्र, फूल, फल, बीज वा, पत्ताणि वा, पुष्पाणि वा, फलाणि वा, धीयाणि या, और हरी को एक स्थान से दुसरे स्थान ले जाता है या भीतर से हरियाणि वा, ठाणाओ ठाणं साहति, बहिया वाणिण्णक्ल । कन्द आदि पदार्थो को बाहर निकालता है। तहप्यारे उबस्सए अपुरिसंतरकर जाब-अणालेविते णो ठाणं ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत-यावत् - अनासेवित हो बा, सेम्जं वा, मिसीहियं वा येतेजा।
सो वहाँ स्थान, शय्या एवं स्वाध्याय न करे । मह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे-आब-प्रासेविते, पछि- यदै यह जाने कि वह उपाश्रय पुरुषान्तरकृत-यावत्लेहिता पमज्जिता ततो संजयामेव ठाणं वा सेज्ज वा जासेवित है तो प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक स्थान, मिसीहियं वा चेतेज्जा।
शच्या एवं स्वाध्याय करे। -आ. सु. २, अ. २, उ.२, सु. ४१७ से भिक्खू या भिक्खू गो वा से जं पुण उपस्सयं जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षणी ऐसा उपाश्रय जाने कि गृहस्थ साधुओं को अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं या, फलगं वा, गिस्सेणि बा, ठहराने की दृष्टि से (उसमें रखे हुए) चौकी, पाट, नीसरणी या उदूनतं वा, ठाणाओ ठाणं साहति, बहिया वा णिण्यक्षु । ऊपल आदि सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता
है, अथवा अन्य मामान बाहर निकालता है। तहप्पगारे उबस्सए अपुरिसंतरकरे-जाव-अगासेविते मो ठाणं ऐसा उपाश्रय अपुरुषान्तरकुत-यावत्-अनासेवित्त हो तो वा, सेज्जं बा, णिसोहियं वा चैतेज्जा ।
माधु उसमें स्थान, शय्या एवं स्वाध्याय न करे। अह पुण एवं जाणेज्जा - पुरिसंतरकडे-नाव-प्रासेविते, पति- यदि यह जाने फि उपाश्रय पुरुषान्तरकृत - यावत् - आसे. सेहिता पमज्जित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, बित है तो प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक स्थान, मिसीहियं वा तेज्मा ।
शय्या एवं स्वाध्याय करे । -आ. सु. २, अ, २, उ.१, सु. ४१८ तण पलाल णिम्मिय उबस्सय विहि-णिसेहो
तृण पराल निर्मित उपाश्रय का विधि-निषेध१०३. से मिक्खू वा भिक्खूणी वा मे जंपुग उत्स्स आणेग्जा, १०३. भिल या भिक्षुणी उपायय के सम्बन्ध में यह जाने कि तृण
तं जहा - तणपुंजेसु बा, पलालपुंजेसु वा. समंडे-जाव-मक्का पुंज ने बना गृह या पुआल पुंज से बना गृह अंडे-यावत्-- संताणए।
मकड़ी के जालों से युक्त है। तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेजलं वा, णिसीहियं या इस प्रकार के उपाय में स्थान, शय्या एवं स्वाध्याय न चेतेज्जा ।
करे। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से चं पुण उवस्सयं जाणेज्जा भिन या भिक्षुणी उपाषय के सम्बन्ध में यह जाने कि तृणतं जहा-तणपुजेसु वा पलालपुंजेसु वा अपंडे-जाव-मक्कडा पुंज से बना गृह या पुत्राल पूंज से बना गृह अंडों यावत्संताणए।
भकढी के जालों से युक्त नहीं है। तहापगारे उबस्सए पडिलेहिता पमज्जिता ततो संजयामेव इस प्रकार के उपाश्रय में प्रतिलेखन प्रमार्जन करके यतना ठाणं वा, सेज्ज था, णिसीहियं बा चैतेजा।
पूर्वक स्थान, शम्या एवं स्वाध्याय करे। -आ. सु.२, अ. २, उ. २, सु. ४३१ से तणेसु वा, तणपुंजेसु वा, पलालेसु वा, पलालपुंजेसु वा, जो उपाथय तृण या तृण पुंज, पराल या परालपुंज से बना अप्पडेसु-जाव-मक्कडा संतापएसु, अहे सवणमायाए । हो और वह अंडे - यावत्-मकड़ी के जालों से रहित हो तथा
उस उपाश्रय के छत की ऊँचाई कानों से नोची हो तो । नो कप्पह निग्ग याण वा, निमांधीण वा, तहप्पगारे उबस्सए ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्धों और नियंन्थियो को हेमन्त ग्रीष्म हेमंत-गिम्हासु वत्थए।
ऋतु में बसना नहीं कल्पता है। से तणेसु वा-जाव-माकडासंताणएसु, उरिपसवणमायाए । जो उपाय तृप या तृणपुंज से बना हो-यावत्---मकड़ी
के जालों से रहित हो (मार हो) उपाश्रय की छत की ऊंचाई कानों से ऊँची हो तो,