SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 652
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२०] चरणानुयोग संसृष्ट असंपृष्ट शब्यातर पिड के ग्रहण का विधि-निवेध एवं तत्य कप्पानं ठबइसा अवसेसे निविसेज्ना। वहाँ एक को कल्पाबा-सागारिक स्थापित करके उसे पारि-कप्प. उ. २, सु. १३ हारिक मानना चाहिए और शेष करों में आहारादि लेने के लिए जादे। संसद-असंसद सागारिय-पिंडगहणस्स बिहि-णिसेहो- संसृष्ट असंपृष्ट शय्यातर पिंड के ग्रहण का विधि-निषेध४६. नो कप्पइ निग्यथाण वा, निम्गयीण या, सागारियपिण्डं ४६. निग्रन्थों और निम्रग्घयों को नागारिक-पिण्ड जो बाहर बहिया अनीहवं, असंसठे वा, संस वा परिमाहितर। नहीं निकाला गया है, नाहे यह अन्य किसी ने स्वीकार किया है या नहीं किया है तो लेना नहीं कल्पता है। नो कप्पद निग्गंधाण वा, निम्गयोण वा-सागारियपिण्डं निर्गन्थो और निग्रन्थियों को सामरिक-पिण्ड जो बाहर तो बहिया नोहा असंसद्धं पजिगाहित्तए। निकाला गया है, किन्तु अन्य ने स्वीकार नहीं किया है तो लेना नहीं कल्पता है। कापड निर्णयाण वा, निग्गंधीण वा-सागारियपिई निग्रन्थों और निग्रंथियों को सामारिक पिण्ड जो घर से बहिया नीहार संसठ्ठ पडिग्गाहित्तए। बाहर भी ले जाया गया है और अन्य ने स्वीकार भी कर लिया -कप्प. द. २, सु- १४-१६ है तो ग्रहण करन कल्पता है। सागारिय असंसपिउस्स संसदकरावण णिसेहो शय्यातर के असंसृष्ट पिंड के संसृष्ट कराने का निषेध व पायच्छित्तं च प्रायश्चित्त४७. नो कम्पद निगंधाण वा, निगौण वा-सागारियपिण्ड ४७. निर्ग्रन्थों और निर्यन्थियों को घर में बाहर ले जाया गया अहिया नोहरं असंसझे संसद करित्तए । सागारिक-पिण्ड जो अन्य ने स्वीकार नहीं किया है उसे स्वीकृत कराना नहीं कलता है। जो बलु निगरायो पा, निगयो वा-सागारियपिण्ड यहिया जो निर्जन्य और निन्थी घर के बाहर ले जाये गये सागानोहरं असंसट्ठ संसर्ट करे करतं वा साइजइ। रिक-पिण्ड जो अन्य से स्वीकृत नहीं है उसे स्वीकृत करता है, कराता है या कराने वाले का अनुमोदन करता है। मे दरओ विक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाण बह लौकिक और लोकोत्तर दोनों मर्यादा का अतिक्रमण अणुग्धाइयं । -कप्प. उ. २, सु. १७-१८ करता हुआ रातुर्मासिक अनुघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) का पात्र होता है। सागारिय आहडिया गहणस्स विहि-णिसेहो--- शय्यातर के घर आये आहार के ग्रहण का विधि निषेध४८. सागारियस आया सागारिएणं पबिगहिया, तम्हा ४८. अन्य घर से आये हुए आर को सागारिक ने अपने घर वायए, नो से कप्पद पढिरगाहेत्तए । पर ग्रहण कर लिया है और वह उसमें से साधु को दे तो लेना नहीं कल्पता है। सागारियस्स आहडिया सागारिएणं अपडिग्गहिया, तम्हा किन्तु अन्य घर से लाये हुए आहार को सागारिक ने अपने वायए, एवं से कम्पद पनिगाहेत्तए। घर पर ग्रहण नहीं किया है। यदि आहार लाने वाला उस आहार -कप्प. उ. २. सु. १९-२० में से साधु को दे तो लेना लल्पता है। सागारिय मीडिया गहणस्स विहि-णिसेहो-- शम्यातर के अन्यत्र भेजे गये आहार को ग्रहण करने का विधि-निषेध४६. सागारियस्स नीहडिया परेण अपरिहिया, तम्हा दावए, ४६. सागारिक के घर से अन्य घर पर ले जाये गये आहार को नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। उस गृहस्वामी ने स्वीकार नहीं किया है । उस आहार में से साधु को दे तो लेना' नहीं वल्पता है । सागारिपस्स नोहडिया परेल पडिमा हिया, तम्हा दायए, एवं किन्तु सागारिक के घर से अन्य घर पर ले जाये गपे आहार से कप्पा पहिगाहेत्तए। -कप्प. उ.२, सु. २१-२२ को उन गृह-स्वामी ने स्वीकार कर लिया है। यदि बह उस आहार में से साधु को दे तो लेना कल्पता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy