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________________ ६१६] चरणानुयोग ३. पाए वा पाए समभवति ४. घट्ट नति ५. कारण वा काए. संखोभितपुष्ये मति ६. दंडेण वा अट्ठी वा मुट्ठीण वा लेखुणा वा क्यालेण मा अनिल भवति वा ओमिति ७.सी उसों में आहार के ग्रहण का विधि-निषेध ८. रमसा वा परिघासितपुवे भवति, ६. अस णिज्जे वा परिभुतपुव्ये भवति, १०. अण्णेस वा दिज्जमाणे पडिगाहितपुण्ये भवति । तरहा से संजते नियंडे पवार आइयो ट यो अभि -आ. सु. २, अ. १, ३.३, सु. ३४२ उसने आहारस्स ग्रहण बिही जिसेहो ३८. से भिक्खू या भिक्खुणी वा महाबडकुलं पिवायपडियाए अणुपविट् समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा जाबसावा अट्टमपहिए का अद्धमाखिए वा भासिए वा, दोमासिनु वा नासिल् वा चावभासिनु वा पंचमासिए वर, छम्मासिएन वा । उकवा, उदुगंधीसु वा उपरियट्टेस वा बहवे समणमाण अतिहि कि वणवणीमगे परिपेता दोहि उपखाहि परिसिज्माणे पेहाए. सिंह परिहा हिउाहिरिएसनमा पेहाए. मी जाति था संगि परिसिज्माणे पेहाए, हत्यारं साइमं या अपुरिसंतराव अणासेवितं अकासु जाव णो पश्चिम्पाना । 11 अपुग एवं पुरत जावयासेवितं - जाव- पडिगाहेज्जा । – आ. सु. २, अ. १, उ. १, सु. ३३५ महामहेसु आहारस्त गहण विहि जिनेहो २६. कापडिया अणुपविट्ठे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा जाव साइमं या समवाय वापरे वा दवा दवा का दम था तथा wwwwwww सूत्र ३७३६ wwwwwwww.. (३) पात्र से पात्र रगड़ खाएगा । (४) सिर से सिर का स्पर्ण होकर टकराएगा । (५) शरीर से शरीर का संघर्षण होगा । (६) लेडी, मुद्री देवरा पर से एक दूसरे पर प्रहार होना भी सम्भव है । (2) इसके अतिरिक्त पानी के टेन सकते हैं। (८) रज-धूल आदि से भर सकता है। (६) अरणीक आहार का उपभोग करना पड़ सकता है। (१०) अन्य को दिया जाने वाला आहार ग्रहण किया जा सकता है । अतः दह संयमी निन्स प्रकार की जनरकीर्ण एवं अल्प आहार बाली संरडी में संखडी के संकल्प से जाने का विचार न करे । उत्सवों में आहार के ग्रहण का विधिनिषेध - ३८. भिक्षू या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार प्राप्ति के निमित्त प्रविष्ट होने पर अशन - यावत्- - स्वाद्य के विषय में वह जाने कि यह आहार आदमी पौष व्रत में नया अ मासिक (पाक्षिक), मासिक, वासिक, मासिक, चातुर्मासिक, मासिक और पाण्मासिक उत्सवों के उपलक्ष्य में, तयों एवं रनों के उत्सवों के उपलक्ष्य में वहुत से श्रमण ब्राह्मण अतिथि, दरिद्री एवं भिलारियों को, एक मुख वाले वर्तनों से परोसते हुए देखकर, दो मुग वाले बर्तनों से परोसते हुए देखकर, तीन मुख वाले बर्तनों से परोसते हुए देखकर, एवं नर मुख वाले वर्तनों से परोसते हुए देखकर तथा बड़े मुंह वाली और जॉस की टोकरी एवं समिति संचय के स्थान से लेकर परोसते हुए देखकर इसी प्रकार के अशन- - पावत् स्वादिम जो कि पुरुषान्तरकृत नहीं है अनासेवित है तो उस आहार को अप्रासुत जानकर - यावत् ग्रहण न करे । यदि ऐसा जाने कि यह आहार पुरुषान्तरकृत है-पावस् असेवित है तो उस आहार को प्रमुख जानकर - यावत् ग्रहण करे | महामहोत्सवों में आहार के ग्रहण का विधिनिषेध१९. मिथु वा भिक्षुणी भिक्षा के लिए बृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते रामय अशन – पावत् – स्वाद्य के विषय में यह जाने कि मेला पितृपण्ड के निर्मित भोज तथा इन्द्र महोला, स्कन्द महल होत्यत्र मुकुन्द-महोत्सव भूत-महोत्सव यक्ष , ,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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