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________________ ६१०] घरणानुयोग इंगातादि दोष का स्वरूप सुन्न २६-२७ इंगालाइ दोसाणं सरूवं इंगालादि दोष का स्वरूप२६. ५०... अह मंते ! सइंगालस्स सधूमस्स.' संजोयणा बोसदृटुस्स* २६. प्र. । हे भगवन् ! अंगारदीप सहित, धूम दोष सहित और पाणभोयणस्त के अट्टे पणते ? रायोजना दोष से दूषित पान-मोजन का क्या अभिप्राय है? उ.-गोयमा ! जे गं निगंथे था, निगंथी वा फासुएस- 1 --हे गौतम ! निग्रंथ या निर्ग्रन्यी प्रासुवा एवं एषणीय णिज्ज असणं-जाब-साइमं पष्टिग्गाहिता मुछिए गिद्धे अशन यायः स्वादिम आहार को ग्रहण कर मूच्छित, गुद्ध, गढिय अशोषबन्ने आहार आहारेड एन गं गोपमा ! प्रश्रित एवं आसक्त होकर यदि आहार करे तो हे गौतम ! यह सइंगाले पाणभोयणे । अंगार दोष सहित पान-भोजन कहा जाता है। जे गं निग्गंथे वा, नियंश्री वा फासु-एमणिज्ज असषं निर्ग्रन्य या निर्ग्रन्थी प्रासुक एवं एषणेय अशन-पावत् -- घा-जान-साइमं वा पडिग्गाहेत्ता मयाअप्पत्तियं कोह- स्वादिम आहार को ग्रहण कर अत्यन्त सत्रीतिपूर्वक व क्रोध से किलामं करेमाणे आहार आहारेइ । एन गं गोषमा1 खिन्न होकर यदि आहार करे तो हे गौतम ! यह धूम दोष सहित सधूमे पापमोयणे। पान-मोजन कहा जाता है। जे पं निग्गं वा, निग्गंधी वा कानु-एमणिज्जं असगं लिपॅन्ध या निग्रन्थी प्रासुक एवं एषणीय अश्न-यावत्-जाव-साइमं पडिग्गाहेत्ता गुणप्पायणं हेउं-अन्न-दग्वेग स्वादिम आहार को ग्रहण कर स्वाद उताभ करने के लिए दूसरे सद्धि संजोएना आहार आहारेइ एस गं गोयमा ! पदार्थ के साथ संयोग करके यदि आहार करे तो हे गौतम ! यह संजोयणादोसदुठे पाण-भोयणे । योजना दोष से दूषित पान भोजन कहा जाता है। एस पं गोयमा । सइंगालस्स सधूमस्त संजोयणा हे गौतम ! इस प्रकार अंगार दोष, धूमदोष, संयोजना दोष दोसदुदुल्स पाणभोयणस्स अट्टे पम्पत्ते । से दूषित पान भोजन का यह अभिप्राय है। वि. स. ७, उ.१, शु. १७ इंगालाइ दोस रहियं आहारस्स सरूवं इंगालादि दोष रहित आहार का स्वरूप-- २७. प.-अहमंते ! वीतिगालस्स वीयधूमल्स संजोयणा-दोस- २७. १०-हे भगवन् ! अंगारदोषरहित, धूमदोषरहित और विप्पमुक्कस्स पाणभोयणस्म के अट्ठे पण्णते? संयोजनादोष रहित भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? उ.-गोयमा ! जे गं निगंथे वा निराधी वा-जाव- उ.-हे गौतम ! निर्ग्रन्थ या निर्गन्धी यावत -आहार पहिगाहेता, अमुच्छिए-जाव-आहारोह । ग्रहप करके मूळ रहित होकर-यावत्-आहार करे तो हे एस गं गोयमा ! बीतिगाले पाण-भोयणे। गौतम ! यह अंगार दोष रहित पान-भोजन कहा जाता है। जेणं निर्गवा, निग्गी ता-जाब-पडिगाहेत्ता नो निर्ग्रन्थ या निग्रन्थीयावत् -- आहार ग्रहण करके अत्यन्त महया अप्पत्तियं-जाव-आहारेह । एस गं गोयमा! अतिपूर्वक–यावत्-आहार न करे तो हे गौतम ! वह धूमयीयधूमे पाण-भोयणे । दोष रहित पान-भोजन कहा जाता है। जेणं निरांथे या निग्गंधी वा-जाव-पडिग्गाहेसा जहा नियन्थ या निम्रन्थी---यावत्-आहार ग्रह्ण करके जैसा सझं तहा आहारं आहारे । एस पं गोयमा संजोय- आहार प्राप्त हुआ है, वैसा ही आहार करे (जिन्नु स्वाद के लिए णादोस विष्यमुपके पाण-मोयणे । अन्य पदार्थ के साथ संयोग न करे तो हे गौतम ! यह संयोजना दोष रहित पान-भोजन कहा जाता है। एस णं गोपमा ! वीतिगालस्म वीरधूमस्स संजोयणा हे गौतम ! इस प्रकार अंगारदोष रहित, धूमदोष रहित और वोसविप्पमुक्कस्स पाण-भोषणस्स अट्टे पणते। संयोजना दोष रहित पान-भोजन का यह अर्थ कहा गया है। –वि. स.७. उ. १, सु.१% १ अंगार दोष और घूम दोष की व्याख्या देखिए--पिण्ड नियुक्ति गाथा ६३५-६६७ । २ संयोजना दोष का उदाहरण, व्याख्या और भेद-देखिए पिण्डनियुक्ति गाथा ६२९-६४२ ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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