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________________ 1 ५७८ ] चरणानुयोग अपरिणत जीवयुक्त पुराने महार के इण का निषेध असत्यपरिणय-जीव-स-पोराणस्स आहारस्स ग्रहण वशस्त्रपरित जीव युक्त पुराने आहार के प्रका जिसे हो निषेध--- ९५७. से भिक्खू वर, भिक्खुणी वा गाहाबद्दकुलं विडवायपडियाए ६५७. भिक्षु या भिक्षुणी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश अनुप समाने से वंगनाकरने पर यह जाने कि १. आमा बा २.पा. ३. सप्पिया पुराणगं एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्य पाणाजावा. एल्य पाणा संबुड्ढा, एत्थ पाणा अयुक्ता एत्य पाणा अपरिणता, एत्य पाणा अविज्ञत्वा अफासुयं जाव णो परिगहिन्या । (१) भाजी अपक्व और अर्धपत्र है, (२) खल पुराणा है था (३) घृत पुराणा है, और उनमें प्राणी पुनः पुनः उत्पन्न होने लगे हैं, उत्पन्न हो गये हैं व बढ़ गये हैं। इनमें से प्राणियों का व्युत्क्रमण (च्यवन) नहीं हुआ है, वे शस्त्र-परिणत नहीं हुए हैं और -आ. मु. २, अ. १, इ. ८. ३५१ वे पूर्ण अत्ति नहीं हुए है अतः उन्हें अत्रासुत जानकर - यावत्ग्रहण न करे। अपरिणय-मीम-वस्ताई ग्रहणणिसेहो -- अनुप २०. से क्या भिवा महावा१ि५८. समाने से वा तं जहा पुण जागे, १.जा. हवा ३. पा ४. आसोत्यमंथं वा, अष्णतरं वा तप्यगारं मंयुजातं आमयं सागुरीयं अफामुपगोडामा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुल पिढयायपडियाए अणुप समाने से पुन जाणाज्जं १. अस्थि वा २. ३. तेंदुवा, नेपा ४. कासवणालिय" वा अण्णतरं वा तहपगार आनं असत्यपरिणयं अफानुयं जाणो पडिगा हेना। - आ. सु. २, अ. १, ८ नु. ३०७ 1 (१) उदुम्बर ( गुरुलर) का चूर्ण, (२) बड के फलों का चूर्ण, (३) प्लक्ष फल का चूर्ण, (४) पीपल का चूर्ण अथवा अन्य भी इसी प्रकार का चूर्ण है जो कि अभी कच्चा (सचिन) है, थोड़ा -आ. सु. २, अ. १, उ. ८ सु. ३५० पिमा हुआ है और बीज युक्त है उसे अप्राक जानकर यावत्ग्रहण न करे । सेवा या माहाकुलं चियापडिया अब समाने से १. कर्ण वा २. बा ३. ४. वाउलं वा ५. ६. तिलं वर ४ ७. तिलपि वा ८ तिलपपडगं वा अण्णतरं वा तप्पगारवा अगत्यपराजय पि सूत्र ९५७-६५८ अपरिणत मिश्र वनस्पतियों के ग्रहण का निषेधके घर में आहार के लिए प्रष्ट भिक्षु वनस्पति के यह ने कि चूर्ण सम्बन्ध में जाने १ सन फलम २ दस. अ. ५, उ. १, गा. १०४ सहारन्तु मालिनी गृहस्य के पद में केलिए भिक्षु वाणी यदि यह जाने कि (१) अस्थिक वृक्ष के फल, (२) सिन्दुर का फन (२) ि फल, (४) श्रीपण का फल जो कि खड्डे आदि में धुएँ आदि से पकाये गये हों अथवा अन्य इसी प्रकार के फल जो कच्चे (सचित्त) और शस्त्र-परिणत नहीं हैं, ऐसे फलों को अप्रासुक जानकर यावत् -ग्रहण न करे । -- गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जाने कि (१) (२) काटा (1) (रोटी आदि), (४) कच्छे चावल, (५) चावल का कूदा, (६) कच्चे तिल, (७) तिल का कूटा, (८) तिलों की अर्द्ध पक्व पपड़ी आदि तथा अन्य भी इसी प्रकार के पदार्थ जो कि कच्चे - आा. सु. २, अ. १ उ. सु. ३८८ (सचिन) और शस्त्रपरिणत नहीं है तो बप्राक जानकर - यावत् ग्रहण न करे । बीयपूणि जाणिवा विना मग परिव आम परिव ४ भट्टिचिवका समिति आम परिव तिलपपड नीम, आमगं परिवज्जए || दस. अ. ५, उ. २,२४ --इस म. ५. उ. २, गा. २१ इस. अ. ५. उ. २, मा. २२ दस अ ५, उ. २, गा. २१
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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