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________________ ५४८] चरणानुयोग भिक्षा के समय उन्मत्त साण्ड आदि को देखकर गमन का विधि निषेध पविसित्तकामे अंतरा से रसेसिषो बहवे पाणा घासेसगाए करना चाहे, उस समय भार्ग के वीच में यदि आहार के इच्छक संथडे संनिवाइए पेहाए: अनेक पशु-पक्षी आहार के लिए एकत्रित होकर आये हुए दिखाई दें. त जहा-कुक्कुडजाइयं बा, सूपरजाइयं था, अग्नपिसि वा यथा कुक्कुट, सूकर आदि अनेक प्राणी या अग्रपिण्ड पाने वायसा संबडा सनिवाइया पेहाए. के लिए कौवों आदि को एकत्रित होकर आता हुआ देख कर, सद परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा नो उज्जु गच्छिज्जा यदि अन्य मार्ग हो तो संगत यतनापूर्वक उसी मार्ग से जावे, -आ. गु. २, अ. स. ६. सु. ३५६ किन्तु उम (पशु-पक्षी वाले) मीधे मार्ग से न जावे । भिक्खाकाले उम्मत्तगोणाई पेहाए गमविहि णिसेहो- भिक्षा के समय उन्मत्त साण्ड आदि को देखकर गमन का विधि निषेध८८२. से मिक्खू वा भिक्खूणो गाहावाकुल पिंडवायपरियार ८८२. भिक्षु मा भिक्षुणी भिक्षा के लिए गहरूबों के घरों में प्रवेश पविसिसुकामे गोणं वियावं पशिपहे येहाए, महिस वियान करना चाहे. उस समय मार्ग में मदोन्मत्त गार या मतवाला पहिपहे पेहाए, भैसे को देखकर एवं मणुस्सं, आस. हत्यि, सीह, बग्घ, विग. दीविय, अच्छ, तथा दुष्ट मनुष्य, घोड़ा. हाथी. सिंह, बाघ, भेडिया, चित्ता, तरच्छं, परिसर, सिंथाल, बिराल, सुणयं, कोलसुणयं, रीछ, व्याघ्र विशेष अष्टापद, शियाल, वन विलाव, कुत्ता, कोकतिय, चित्ताचल्लाय वियाल पति पहे पेहाए, महाशूकर, लोमड़ी, चिल्लक आदि विकराल प्राणया सति परिक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उम्जुयं में देखकर यदि दुसरा मागं हो तो उसी मार्ग से जाए, किन्तु गच्छम्मा। - -आ. सु. २, म.१, उ. ५. सु ३५४ उस सीधे मार्ग से न जाए। साण सुइय गावि, वित्तं गोणं हयं गयं । (गोचरी में प्रविष्ट भिक्षु) कुत्ता व नव प्रसूता माय तथा संडिन्म कलह जुद्ध दूरओ परिवज्जए । मदोन्मत बैल, घोड़ा व हाथी और बच्चों का क्रीडा स्थल, क्लेश · · दस. अ. ५. उ. १, गा. १२ व युद्ध के स्थानों को दूर से ही वर्जन करे । खड्डाइजुत्तपहे गमण णिसेहो खड्डा आदि से युक्त मार्ग में जाने का निषेध८८३. से भिक्खू या, भिक्षुणी वा याहाषइकुल पिंडवायपडियाए ८८३. भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थों के घरो में प्रवेश पविसित्तुकामे अतरा से ओवाए खाणु वा, कंटए वा. घसी करना चाहें उन ममय मार्ग के बीच में यदि गड्ढा हो. बंटा हो वा, भिलुगा था, विसमे वा, विज्जले वा परियावज्जेज्जा। या टूट पड़ा हो. कांदे बिम्बरे हों. अन्दर धसी हुई भूमि हो. सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा को उज्जयं फटी हुई काली भूमि हो, ऊंची-नीची भूमि हो या कीचड़ हो ऐसी गच्छेज्जा।' -आ. सु. २, अ. १, उ. ५, सु. ३५५ स्थिति में दुसरा मार्ग हो तो उसी मार्ग से जावे, किन्तु सीधे मार्ग से न जावे। अदुगुंछियकुलेसु भिक्खागमणविहाणं अघृणित कूलों में गोचरी जाने का विधान४. से मिक्खु या, भिक्खुगी वा गाहावाकुसं पिड वायरियाए ८५४. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार प्राप्ति के लिए अणुपवि? समाणे सेज्जाई पुण फुलाई जाज्जा , तं जहा- प्रविष्ट होने पर (आहार ग्रहण योग्य) जिन कुलों को जाने, के इस प्रकार हैं१. उपगकुलाणि वा. , भोगकुलाणि वा, (१) उपकुल, (२) भोगकुल, १ (क) तहेबुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए सभागया । तं उज्जुयं न गच्छेज्जा, जयमेव परक्कमे ।। -दस. अ. ५, उ. २. गा.. (ख) दशवकालिक अ. ५, उ, १, गाथा ६-११ में वेश्याओं के आवासों की ओर जाने वाले मार्ग मे भिक्षा के लिए जाने का __ निषेध है अतः ये गाथायें ब्रह्मचर्य महाव्रत को विभाग में दी गई हैं। २ ओवायं विमम खाणं, विज्जलं परिवज्जिए। संक्रमेण न गच्छेज्जा. विज्जमाणे परक्कमे । नम्हा तेण न गच्छेज्जा, मंजए सुसमाहिए। मुड अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥ -दम. अ. ५. इ. १, गा. ४-६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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