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________________ सूत्र ८७८-८-१ असमय में प्रवेश के विधि-निषेध चारित्राचार : एषणा समिति [५४७ रयं, ततो संजयामेव गाहावहाल पिंडवायपडियाए गिल- पाणी हो तो उन्हें निकाल कर और रज हो तो उसका प्रमार्जन मेज्य वा पक्सिज्ज वा। कर बाद में यततापूर्वक आहार-पानी लेने के लिए निकले या प्रवेश करें। केवली बूया-आयाणमेय । केघनी भगवान् कहते हैं--'ऐसा न करना कर्मबन्ध का कारण है।' अंतो पडिगहसि पाणे या, बोए बा, रए वा परिया- क्योंकि पात्र के अन्दर द्वीन्द्रिव आदि प्राणी, वीज या रज वजेज्जा. आदि रह सकते है। अह भिक्खूणं पुन्खोवविद्वा एस पइण्णा-जाब-एस उवएसे ज इसलिए तीर्थकर आदि आप्तपुरुषों ने माधुओं के लिए पहले पुष्यामेव पहाए पडिग्गहं अवहट्ट पाणे बा, पमस्जिय रय- से ही इस प्रकार की प्रतिज्ञा-यावत्-उपदेश दिया है कि ततो संजयामेव गाहावतिकुल पिंजवायपवियाए णिक्यमेज्ज आहार-पानी के लिए जाने से पूर्व पार का सम्यक निरीक्षण वा, पविसेज्ज था। करके कोई प्राणी हो तो उसे निकालकर, रज हो तो उसका -आ. सु. २, अ. ६. उ. २. सु. ६०२ प्रमार्जन कर, बाद में वतनापूर्वक आहार पानी के लिए निकले या प्रवेश करे । असमये पवेसणस्स विहि-णिसेहो असमय में प्रवेश के विधि निषेध८७६. से भिक्खू का, भिक्खुगी वा गाहाबतिकुलसि पिडयायपडि- ८७६. भिक्षु या भिशुणी गुहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश याए पविसितुकामे सेज्ज पुण जाणेज्जा, करना चाहे, उस समय यदि यह जाने कि, खीरिणीओ गायोमो जीरिज्ममाणीओ पहाए, __ अभी दुधारु गायों को दुहा जा रहा है, असणं या-जाव-साइमं वा उपपडिज्जमाणं पेहाए पुरा मशन यावत् स्वादिम आहार अभी तैयार किया जा अप्पजूहिए। रहा है या हो रहा है, सेवं गत्वा णो गाहावतिकुल पिडवायपडियाए णिक्लमेज अभी तक उसमें से किसी दूसरे को जितना देय है उतना वा, पविसेज्ज बा। दिया नहीं गया है, ऐसा जानकर बह आहार प्राप्ति की दृष्टि से निष्करण प्रवेश न करे। से समायाए एतमबक्कमेवजा, एगतमयपकमित्ता अणावा- किन्तु ऐसा जानकर वह भिक्षु एवान्त में चला जाये और यमसंलोए चिट्ठज्जा जहाँ कोई आता जाता न हो और देवता न हो वहाँ ठहर जाए । अह पुण एवं जाणेज्जा जब वह यह जान ले किबीरिणीमो गाधीओ खोरियाओ पेहाए, दुधारु गायें दुही जा चुकी हैं, असणं वा-जाव-साइम वा उववरित पहाए पुरा पजूहिते । अशन -यावत् -स्वादिम आहार भी अब तैयार हो गया सेवं णच्चा ततो संजयामेव गाहावतिफुलं पिडबायपडियाए है, उसमें से दूसरों को जितना देव है उतना दे दिया गया है, मिक्लमेन्ज बा, पविसेज वा । तत्र वह संयमी साधु आहार प्राप्ति के लिए निष्क्रमण प्रवेश करे। -आ. सु. २, अ. १, उ. ४. सु. ३४६ एसणाखेत्तपमाणं एषणा क्षेत्र का प्रमाण८८०. अवसेस भण्डग गिझा, चवलसा पडिलेहए। ८५०. भिक्षु सब भण्डोपकरणों को ग्रहण कर चक्षु से उनकी परमजोयणाओ विहार विहरए मुणी ।। प्रतिलेखना करे और उत्कृष्ट अर्ध-योजन तक भिक्षा के लिये -उत्त. अ. २६, गा. ३५ जाए। भुजमाणाणं पाणाणं मम्मे आवागमण णिसेहो बाहार करते हए प्राणियों के मार्ग में आने जाने का निषेध५८१. से मिक्सू वा, मिक्खूणी वा गाहावइकुल पिटवायपरियाए ८८१. भिक्षु या भिक्षुणी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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