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चरणानुयोग
आमन्त्रण में सावध भाषा का निषेध
सूत्र ८२२-८२३
से भिक्खू वर भिकरणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में से पाउिपहिया आगच्छेम्जा ते ण पारिपहिया एवं बवेज्जा- सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएँ और वे साधु से यो पर्छ"आउसंतो समणा । अबियाई एत्तो पजिपहे पासह उदग- "आयुध्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जल में पैदा पसूतागि कंबाणि वा, मूलाणि बा. तथाणि वा, पत्ताणि या, होने वाले कन्द या मूल, अथवा छाल, पत्ते, फूल, फल, नीज पुष्पाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरिताणि वा, उदयं रहित अचवा मंग्रह किया हुआ पेयजल या निकटवर्ती जल का वा, संणिहियं अगणिं पा संणिबिखतं, से तं मे आइवसह स्थान, अथवा एक जगह रखी हुई अग्नि देखी है? अगर देखी रंसेङ ।"
होतो हमें बताओ?" तंणो आइक्लेग्जा-जाव-गामाणुगाम दूइज्जेमा ।
इस पर साधु उन्हें कुछ न बतावे-यावत्-प्रामानुग्राम
विहार करे। से मिक् वा भिक्खूणी वा गामाणुगार्म दूइज्जेज्जा, अंतरा ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में से पारिपहिया आगच्छेज्जा ते पाडिपहिया एवं ववेज्जा- कुछ पथिक निकट आकर पूछे कि"आउसंतो समणा ! अवियाई एत्तो परिपहे पासह जवसाणि "आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जो (आदि वा, सहाणि वा, रहाणि या, सखफाणि वा, परचक्काणि धाग्यों का ढेर) बैलगाड़ियाँ, रथ, या स्वचक्र या परचक्र के बा, सेणं बा, विस्वरुवं संणिविट्ट से मे आइपसह शासक के (सैन्य के) या नाना प्रकार के पड़ाव देखे हैं? यदि दंसह ?"
देखे हो तो हमें बताओ।" तं जो आरक्खेज्जा-जाव-गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।
ऐसा सुनकर साधु उन्हें कुछ न बताये.-यावत्-ग्रामानु
ग्राम विहार करे। से लिप चा, भिक्खु णी वा गामाणगाम दूइज्जमाणे अंतर ग्रामानृग्राम विहार करते हुए साघु या साध्वी को मार्ग में से पाडिपहिया आगच्छज्जा ते णं पाडिपहिया एवं वदेग्जा- कुछ पथिक निकट आवार पूछे कि"आउसंतो समणा! केवतिए एत्तो गामे वा-जाव-रायहाणी "आयुष्मन् श्रमण ! यह गांव कैसा है, या कितना बड़ा है? या, से तं मे आइक्खह देसेह ?"
—पावत्-राजधानी कैसी है या कितनी बड़ी है? यदि देखी
हो तो हमें बताओ?" संगो आइक्योज्जा-जाव-गामाणुगाम इज्जेज्जा ।
ऐसा सुनकर साधु उन्हें कुछ न बताए -यावत् प्रामानु
ग्राम विहार करे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जेम्जा, अंतरा सामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में से पारिपहिया आगच्छेम्जा ते गं पाडिपहिया एवं बवेजा- कुछ पथिक निकट आकर पूछे कि"माउसंतो समणा ! केवइए एत्तो गामस्स बा-जात्र- 'आयुष्मन् श्रमण ! यहाँ से ग्राम-यावत् --राजधानी रायहाणीए वा मगो ? से तं मे आइक्सह बसेह ?" कितनी दूर है? या यहाँ से बाम–चात् राजधानी का मार्ग
अब कितना शेष रहा है ? जानते हो तो हमें बताओ।" तं जो आइक्वेज्जा-जाव-गामाणुगाम दूइज्जेम्मा।
ऐसा सुनकर साधु उन्हें कुछ भी न कहे-यावत्-यतना -आ. सु. २, अ. ३, उ. ३, सु. ५१०-५१४ पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । आमंतणे सावज्ज भासा णिसेहो
आमन्त्रण में सावध भाषा का निषेध८२३. से भिक्खू दा भिवस्तुगी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिते बा ८२३, साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमन्त्रित (सम्बोधित) अपरिसुणेमाणे णो एवं ववेज्जा
कर रहे हों, और भामन्त्रित करने पर भी वह न सुने तो उसे
इस प्रकार न कहेहोले ति वा, गोले तिवा, वसूले ति वा, कुपक्से ति बा, अरे होले (मूर्ख) रे गोले ! (या हे गोले ! या हे गोला !) घरवासे तिवा, साणे ति बा, तेणे ति वा नारिए ति वा, अय बृषल (शूद्र) हे कुपक्ष (दास या निन्धकुलीन) अरे घटदास
१ होलावायं, सहीवायं, गोतावायं च नो बदे । तुम तुम ति अमणुण्णं, सब्बसो त ण बत्तए ।।
-सूव. सु. १, अ. ६, गा. २५