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________________ ४५८] चरणानुयोग संवृत्त अणगार की क्रिया का प्रस्पण सूत्र ७४५-७४६ जस्स णं कोह-माण-माया-लोमा अधोच्छिण्णा भवंति जिसके प्रोध, मान, माया और लोभ अव्यवच्छिन्न होते तस्स णं संपराइया किरिया कज्जह । हैं उनको साम्परायिकी क्रिया लगती हैं। अहामुत्तं रीयमाणस्स इरियावहिया किरिया कज्जइ। क्योंकि यही यथासूत्र (भागम) के अनुगार प्रवृत्ति करने उस्मुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ. पाले अषगार को ऐर्यापधिकी श्रिया लगती है और उत्सुत्र प्रवृत्ति से गं अहासुत्तमेव रोयति. करने वाले को माम्परापिकी क्रिया नगती है। से तेणठे गं गोयमा । एवं बुच्चइ अणमारस्स णं इन कारण से हे गौतम ! ऐगा कहा जाता है कि भाविभावियप्पणो-जाव-इरियावही किरिया कज्जइनो संप- तारमा अणणार को-यावत्-इरियावही क्रिया लगती है माम्मराइया किरिया कज्जइ। रायिक किया नहीं लगती है। -- वि स. १८, उ ८. सु. १ संवुड अणमारस्स किरिया विहाणं संवृत्त अणगार की क्रिया का प्ररूपण :७४६. ५०-संवउस्स गं भंते ! अणगारस्स आउस एच्छमाणस्स. ७८६ प. हे भदन्त ! उपयोगपूर्वक गमन करने वाला, आवत्तं चिट्ठमाणस्स, उपयोगपूर्वक खड़ा रहने वाला, आप निसीयमाण, उपयोगपूर्वक बैठने वाला, आउत्तं तुयट्टमाणस्स, उपयोगपूर्वक करवट बदलने वाला, आडतं वत्थ पडिगहं कंबलं पायपुंछणं गिग्रहमाण्स्स उपयोगपूर्वन बस्त्र-गाव-कम्बन-पादांछनाः ग्रहण करने वा, मिक्लिवमाणस वा. तस्स गं भंते ! कि इरिया- वाना, निक्षेप करने वाला (रमने बाला) रावृत्त अनगार ईया बहिया किरिया कज्जइ ? संपराइया किरिया कज्जइ? पनि क्रिया करता है ? गांगयिकी किया करता है ? ..-गोयमा ! संवुद्धस्स गं अणगारस्स आउत मचा- जल गौतम ! उपयोगपूर्वक गमन करने वाभा-यावस् माणस्म-जाव-आउत्तं यत्वं पडिमगहं कंबरन पायछणं उपयोगपूर्वक वर-व-यात्र-कम्बल-पादनेछन ग्रहण करने वाला - गिण्हमाणल्स था, निक्खिचमाणस वा, तस्स र्ण इरिया- निक्षेप करने वाला संवत्त अणगार ईयपथिकी किया करता है - वहिया किरिया कज्जइ. गो संपराइया किरिया सागराविकी फिया नहीं करता है। ५०--से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चह संबुद्धस्स णं अणगारस्स प्रा. हे भदन्त ! किम प्रयोजन में ऐसा कहा जाता है .. आउत्तं गच्छमाणस-ज्ञान-णिक्षिचमाणस्स वा, इरिया- उपयोगानक गमग वरने वाला यावत् - निक्षेप करने वाला वहिया किरिया कज्जहणो संपराझ्या किरिया कज्जइ ? संवृत्त अणगार ईर्याथिकी क्रिया करता है। गांरापिकी क्रिया नहीं करता है? उ.-पोयमा ! जरूस गं कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिमार गौतम ! जिमवे क्रोध-मान-माया-लाभ व्युच्छिन्न भवंति, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ. नो (नाष्ट) हो गये हैं उमको ईपिथिती क्रिया होती हैं, सांपराविकी संपराइया किरिया कज्जइ । क्रिया नहीं होती है। जस्स णं कोह-माण-माया-लोमा अबत्तिकमा भवंति, जिगक क्रोध-मान-माया-नोभ अन्यूच्छिक (नष्ट नहीं हए) तस्स णं संपराइया किरिया कज्जइ। हैं उसको सांपरायिकी क्रिया होती है। अहासुतं रीयमाणस्स इरियावहिया किरिया फज्जा यथाथत से व्यवहार करने वाले को ईपिथिकी क्रिया होती उस्मुत्तं रीयमाणस्स संपराया किरिया व.ज्जई. है । उत्सूत्र से व्यवहार करने वाले को सांपरायिकी क्रिया होती है। से णं अहासुत्तमेव रोयइ. (उपयोगपूर्वब नमनादि करने वाला संवृत्त अनगार) यथासूत्र व्यवहार करता है। से तेणठेणं गोममा ! एवं बुच्चद संयुङस्त णं अण- डम प्रयोजन मे गौतम ! ऐसा कहा जाता है। संवृत्त गारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स-जाव-णिक्खिवमाणस्स णो अपगार को उपयोगपूर्वक गमन करने वाले को-पावत् -सांपसंपराइया किरिया कज्जद। राविकी क्रिया नहीं होती है । –वि. स.७, २.७, नु.१
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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