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________________ ४.० घरगानुयोग मथुन संबन के संकल्प से नखों का परिकर्म करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५६२-१६४ सेल्लेग वा-जाय-णवणोएण बा, तेल-पावत्--मक्खन, मक्खेज वा, मिलिगेग्ज वा, मले, बार-बार मले, मलवावे, बार-बार मलवावे, मोतं का, मिलिगेंत या साइजा। मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू माजग्गामास मेहपटियाए अप्पणो पाए जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियां जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने पैरों पर--- लोण वा-जाय दोष वा, लोध-पावत् -वर्ण का, उल्सोलेज्ज वा, उग्वट्टज्ज वा, उबटन करे, बार-बार उबटन केरे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उहलोलतं वा, उव्वदृतं या साइम्बइ। उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू माउम्गामस्स मेहुणवडियाए अध्मणो पाए जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने पैरों कोसोओदग-वियरेण वा, उसियोधग-वियरेण वा, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, उपछोलेज वा, पधोएज्ज वा, धोबे, बार-बार धोवे, धुलावे, बार-बार धुलावे, उन्छोसेंतंबा, पधोएतं वा साइबद। धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू माजगामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने पैरों कोफूमेजवा, रएग्जबा, रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगबावे, फूतं वा, रएतं वा साइवह। रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आधज्म चाजम्मासियं पहिारदा मणग्याइय। उसे चातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -लि. . ६, सु. २४-२६ आता है। मेहुणपडियाए णहसिहापरिकम्मस्स पायच्छित्त सुतं- मैथन सेवन के संकल्प से नखों का परिकर्म करने के प्राय श्चित्त सूत्र५३. जे मिक्लू माजग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पमो दोहाओ नह- ५६३. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री सीहाओ से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने लम्बे नखानों कोकम्पेन था, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्त वा, संठवतं वा साइजद। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे भावज्जह चाउम्मासिस परिहाराणं ममुग्धाइय। उसे चातुर्मासिक अनुद्धातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ६, सु. ४६ आता है। मेहणयडियाए जंघाइ रोमाण परिकम्मस्स पायपिछत्त मैथुन सेवन के संकल्प से जांध आदि के रोमों का परिकर्म सुताई करने के प्रायश्चित्त सूत्र-- ५६४, जे मिक्खू माउरगामस्स मेहणग्यिाए अप्पणो बीहाई जंघ- ५६४. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री रोमाई से) मैथुन सेवन का संकल्प करके अपने जंघा (पिण्डली) के लये रोमों को
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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