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________________ ३९४] परणानुयोग विभूषा के संकल्प से होठों का परिक्षम करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५८१-५२ कप्पेजबा, संठवेजपा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, करतं वा, संठवत वा साइन । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करें। मे भिषणू विभूसावडियाए अपणो वोहाई कक्ष-रोमाई- जो भिक्ष विभषा के संकल्प से अपने बगल (कांख) के लंबे रोमों कोकम्पेन्जवा, संठवेज्ज बा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्तं बा, संठवेतं वा साइजह । काटने बाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । के भिक्खू विमसावरियाए अप्पणो बहाई मंसु-रोमाई जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने स्मथ (दाढ़ी मूछ) के लम्बे रोमों कोकप्पेज वा, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्त वा, संठवेतं या साइन्माद । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । मे मिश्य विभूसायशियाए अपणो बीहाई वरिय-रोमाई- जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने बस्ति के लम्बे रोमों कोकप्न बा, संठवेम्स वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाये, कप्तं वा, संठवेंतं वा साइना। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्खू विभुसावरियाए अप्पणो रोहाई अक्षुरोमाई- जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने चक्षु के लम्बे रोमों कोकप्पेज्ज बा, संठवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, करत वा, संठवेत वा साहजह । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे भावनइ चाउम्भासिय परिहारद्वाणं उाधाइयं । उसे चातुर्मासिक उदघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. १२५-१३० आता है। विभूमावडियाए ओट्रपरिकम्मस्स पायसिछत्त सुताई- विभूषा के संकल्प से होठों का परिकर्म करने के प्रायश्चित्त सूत्र५०१, मिक्लू विमूताववियाए पप्पणो उ? ५८२. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने होठों काभामग्ण वा, पमजेज वा, मार्जन करे, प्रमार्जन करे, माणन करवावे, प्रमार्जन करवावे, भामात वा, पमजतं वा साइम्मद । मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। थे भिमत विभूसावजियाए अप्पणो उटू जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने होठों कासंबाहेम्ज वा, पसिमद्देज्ज मा, मदन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, संबाहेत ना, पलिमहतं वा साइजद । मदन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे । जं मिव विभूसाखियाए अप्पणो ज? जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से अपने होठों परतेस्लेण वा-जाव-णवणोएण वा, सेल-यावत्-मक्खन, मखेज वा, मिलिगेज बा, मले, बार-बार मले, मलवावे, बार-बार मलवावे, ममतबामिसिगतं ना साइम्जा। मलने वाले का, भार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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