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________________ ३१६ घरणानुयोग अक्षिपत्र-परिकम का प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ५०७-५१० लोण वा-जाव-बणेण वा, लोध्र-यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उल्लोल्लेज्ज या, उध्वटज्ज वा. उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उल्सोलेंतं वा, उव्वदृतं वा माइगई। उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे। जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि जो भिक्षु अपनी आँखों कोसीऔरग-वियांण बा, उसिपोरगविपडेण वा, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, उच्छोलेज वा, पधोवेज्ज था, धोवे, बार-बार धोबे, घुलवावे, बार-बार धुलवावे, उच्छोलेंतं वा, पधोयतं वा साइजह । घोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । मे भिक्खू अपणो अच्छीणि जो भिक्षु अपनी आँखों कोफूमेज्ज वा, रएज्ज वा, रंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवाये, फूमंत बा, रएतं वा साहज्जा । रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे आयज्जद मासियं परिहारहाणं उाघाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (पायश्चित्त) -नि.उ. ३, सु.५८.६३ आता है। अच्छिपत्तपरिकम्म पार्याछत सत्त अक्षिपत्र-परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र५०८. जे मिक्खू अपणो दोहाई मच्छि-पत्ताई ५०८, जो भिक्ष अपने लम्बे अति पत्रों कोकप्पेज्ज बा, संठवेज्ज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्तं वा, संठवेतं वा साइजद। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे आवज मासियं परिहारद्वाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ३, मु.५७ आता है। भुमगाइरोमाणं परिकम्मस्स पायच्छित्त सत्ताई भौंहादिरोम परिकर्मों के प्रायश्चित्त सूत्र५.०६.जे भिक्खू अप्पणो दीहाई मुमग-रोमाई ५०६. जो भिक्षु अपने भौह के लम्बे रोमों कोकप्पेज या, संडवेज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्त वा, संठवेतं का साइज्बई । काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । जे मिमल अप्पणो दीहाइ पास-रोमाई जो भिक्षु अपने पावं के लम्बे रोमों कोकप्पेज वा, संटवेज्ज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, कप्तं वा, संठवेत वा साइजह ।। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आवाज मासिवं परिहारट्ठाणं उम्पाइर्य । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्स) -नि. उ. ३, सु. ६४-६५ आता है। केस परिकम्मस्स पायच्छित्त सत्तं केशों के परिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र५१०. मिक्खू अप्पणो दोहाई केसाई ५१०. जो भिक्ष अपने लम्बे केशों को-. फापेन वा, संठवेज्ज वा, काटे, सुशोभित करे, कटवाने, सुशोभित करवावे, कतं चा, संठवेतं वा साइजा। काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन कर । तं सेवमाणे आवजा मासिक परिहारट्टाणं ग्याइय। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) ---नि. उ. ३, सु. १६ बाता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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