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________________ सूत्र ५०५-५०७ पन्त परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार ३५५ जै भिषल अस्पषो दोहाई णासा-रोमाईकप्पंज वा, संठवेज्ज का, जो मिल अपन ना लम्बे रोमकाटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवावे, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। कप्तं या, संख्येतं वा साइजह । तं सेवाणे आवस्जद मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं । -नि.उ.३, सु. ५६ दंतपरिकम्मस्स पायच्छित्त सुत्ताई१०६. मे मिक्खू अपणो देते आघंसेज्ज या, पघंसेज्ज वा, आघंसंस वा, पसंतं वा साइजद्द । जे भिक्खू अप्पणी यंतेउस्छोलेज वा, पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा, पधोएंत वा साइजह । जे भिक्खू अपणो वैसेफूमेन वा, रएज्ज वा, कूमत बा, रयत वा साइज्जद। तं सेवमाणे आवग्जद मासिवं परिहारट्ठागं उग्घाइयं । -ग. उ. ३, सु. ४७०४६ चक्खु परिकामस्स पायच्छित्त सुत्ताइ५०७. जे मिक्य अप्पणो अच्छीगि आमनेज्ज वा, पमजेडज बा, दन्त परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र५०६. जो भिक्षु अपने दांतों को घिसे, बार-बार घिसे, घिसवाचे, वार-बार घिसवावे, घिसने वाले का, बार-बार घिसने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने दाँतों कोधोये, बार-बार धोये. धुलवावे, बार-बार धुलवावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु अपने दांतों कोरंगे, बार-बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवाये, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। चक्षु परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र५०७. जो भिक्षु अपनी आँखों का मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, माजन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपनी आँखों काभदंन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपनी आँखों परतेल-यावत्-मक्खन, मले, बार-बार भले, मलवादे, बार-बार गलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपनी आंखों पर -- आमजंतंबा, पमज्नंत या साइज्जद। मे भिमखू अपणो अच्छीणिसंजाहेज वा, पलिमद्दज्ज वा, संबाहेंतं वा. पलिमतं वा सम्हग्ज । जे भिक्खू अप्पणो अछोगिसेल्लेग वा-गाव-णवणीएण वा, अमरज या, मक्खेज वा, अमगेत वा, मक्खेत वा, साइम्जा। से मिक्लू अप्पको अच्छोणि---
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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