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पुत्र ४६१-४६३
ब्रह्मचर्य की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति
चारित्राचार
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१०-सोच्या गं अंते ! केवलिस वा-जाव-तपकिलय- प्र... भन्ते ! केवली से - यावत्-केवली पाक्षिक उपा
उवासियाए वा केवलं बेभरवासं आवसेज्जा ? सिका से सुनकर कोई जीब ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है? उ.-गोयमा ! सोच्चा केवलिस वा-जाव-तपक्खिय- उ.--गौतम ! केवली से - यावत् केवली पाक्षिक उपा
उवासियाए या प्रत्येगसिए केवल अमचेरवासं आव- सिका से सुनकर कई जीव ब्रह्म वयं का पालन कर सकते हैं और
सेछजा , अस्यगत्तिए केवल बभबेरवास नो आवसेना । कई जीव ब्रह्म वर्ष का पालन नहीं कर सकते हैं। २०-सेकेण? ते ! एवं बुच्च
प्र-मन्ते ! किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैसोन्या गं केवलिस्स वा-जाव-तपक्खिवनवासिपाए केवली से ---यावत्-फेवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर वा बरयंगत्तिए फेवसं भवेरवासं आवसेज्जा, अरषे- कई जीव ब्रह्मचर्य पालन कर सकते हैं और कई जीव ब्रह्मचर्य
गत्तिए केवल बमरवास मो आवसेग्जा? पालन नहीं कर सकते है ? उ.-गोयमा | जस्स णं चरितावरणिज्जामं कम्माणं खओ- उ०—गौतम ! जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम
वसमे को मवर से गं सोचा फेवलिस्म वा-जाव- हुआ है वह केवली से-पावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से सम्पक्षियजवासियाए वा केवलं बमचेरवास आवसेज्जा। सुनकर ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है। अस्स गं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खीवसमे मो जिसके चारिवावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह कडे मवद से गं सोचा केलिस्स बा-जाव-सम्परिणय- केवसी से यावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर भी उवासियाए पा केवलं बंभचेरवास मो आवसेजा। ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता है। से ते?ण गोयमा एवं बुच्चा
गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैजस्सगं चरित्तावरगिजाणं कम्माणं खओवसमे करे जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है, वह भवा से सोचा फेलिस्स वा-जाव-सप्पक्खिय- वली से-यावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर ब्रह्म
वासियाए वा केयलं बभरवास आवसेना। चर्य पालन कर सकता है। जस्स नंबरिसावरणिज्जाणं कम्माणं खओषसमे नो जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हया है. को भवा, से गं सोचमा केबलिम्स वा-जाप-तपक्लिय- वह केवली से-पावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर उवासियाए वा केवल भरवास नो आवसेजा। भी ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता है।
-वि.स. १, उ. ३१, सु. ३२
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ब्रह्मचर्य पालन के उपाय (२)
धम्मरहसारही धम्मारामविहारी बंभयारी -
धर्मरथ सारथी धर्मारामबिहारी ब्रह्मचारी--- ४६२. धम्माराम चरे भिक्खू, घिइमं धम्मसारही।
४६२. धैर्यवान, धर्म के रथ को चलाने वाला, धर्म में रत, धम्मारामरए बरते, धम्मरसमाहिए ।
दान्त और ब्रह्मचर्य में चित्त का समाधान पाने वाला भिक्षु धर्म
-उत्त. अ. १६, गा. १७ के उद्यान में विचरण करे । बंभचेरसमाहिठाणा
ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान४६३, सुयं मे भाउस ! हेव भगवया एवमपणा
४६३. हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है, भगवान् ने ऐभा कहा है..इह बलु थेरेहि मगन्तेहि बस बम्भरसमाहिताणा पन्नता, निर्ग्रन्थ प्रवचन में जो स्थविर (गणधर) भगवान् हुए हैं
उन्होने ब्रह्मचर्य समाधि के दम स्थान बतलाय हैं,