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________________ ३१५] परणानुयोग गह्मचर्य महिमा सूत्र ४५१-५५२ गातिमत्तपाण-मोयणमाई से निथे, गो पणीतरसमोयणमोई इसलिए निम्रन्थ को अति मात्रा में माहार-पानी का सेवन ति चवस्था भावणा। या सरस स्निग्ध भोजन का उपभोग नहीं करना चाहिए । यह तीथी भावना है। ५. अहावरा पंचमा भावणा इसके अनन्तर पंचम भावना का स्वरूप इस प्रकार है -. गो णिगये इत्यो पसु पंडगसंसत्ताई सपणासणाई सेवितए निर्मन्य स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या (वसति) सिया। और आसन आदि का सेवन न करे। केवली यूमा-निगये गं पी-पसु-पंडगसंसत्ताई सयका- केवली भगवान् कहते हैं जो नियन्य स्त्री, पशु और नपुंसणाई सेवेमागे सतिभेवा संतिविमंगा, संति केवलिपग्ण- मक से संसक्त पाया और आसन आदि का सेवन करता है, वह सामो धम्माओ मंसज्जा । शान्तिरूप चारित्र को नष्ट कर देता है, शान्तिरूप ब्रह्मचर्य को भंग कर देता है और शान्तिरूप केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। मो जिग्गवे इत्थी-पसु-पक्षणसंसत्ताई सपणासणाई सेवित्तए इसलिए निम्रन्थ को स्त्री-पशु-नपुंसक संसक्त शय्या और सिय ति पंचमा भावणा।' आसन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। यह पंचम भावना है। एताव ताव महम्बए सम्म काएम कासिते पालिते सोहिते इस प्रकार इन पांच भावनाओं से विशिष्ट एवं स्वीकृत सौरिए किहिते अदिको प्राणार आराहिते पावि अप्रति। मैथुनविरमण रूप चतुर्थ महावत का सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्श करने पर, उसका पालन करने पर, उसका शोधन करने पर, प्रारम्भ से पालन करते हुए पूर्ण करने पर, पूर्ण नियमों का पालन करने पर, कीर्तन करने पर तथा अन्त तक उसमें अबस्थित रहने पर भगवदाज्ञा के अनुरूप सम्बर आराधन हो जाता है। अउत्य भंते ! महस्वयं मेहुणामी वेगमणं । भगवन् । यह मैथुन-विरमणरूप चतुर्थ महाव्रत है । -आ. सु. २, अ. १५, सु. ७८६-७५ बंभवेर महिमा ब्रह्मचर्य महिमा४५२. जंबू ! एतोय बंभवेरं उत्तम-तब-मियम-माण-बसण-चरित- ४५२. हे जम्बू ! अदनादानविरमण के अनन्तर ब्रह्मचर्य व्रत है। समत-विणपमूल। यह ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व तथा विनय का मूल है। यम-नियम-गुणयहाणबुसं, यम और नियम रूप प्रधान गुणों से युक्त है। हिमवंत-महंत-तैयमंत-पसत्य-गंभोर-थिमित-ममा, हिमान् पर्वत से भी महान और तेजस्वी, जिसके पालन करने से साधकों का अन्तःकरण प्रशस्त, गम्भीर और स्थिर हो जाता है। १ (क) समवायोग सूत्र में चतुर्थ महाव्रत की पांच भावनाएं इस प्रकार है-१. स्त्री-पशु और नपुंसक से संसक्त शयन, आसन का वजन, २. स्त्रीका बिरर्जनता, .. स्त्रियों की इन्द्रियों के अवलोकन का वर्जन, ४. पूर्वमुक्त और पूर्वक्रीड़ित का प्रस्मरण, ५. प्रणीत आहार का विघर्जन। --सम, २५, सु. १ (ख) प्रश्नव्याकरग में पांच भावनाएं इस प्रकार हैं-१. असंसक्त वासवसति, २. स्त्रीजन कथा-वर्जन, ३. स्वी के अंग प्रत्यंगों और पेष्टाओं के अवलोकन का वर्जन, ४. पूर्वभुक्त भोगों को स्मृति का वर्जन, ५. प्रणीत रस का भोजन वर्जन। विस्तृत पाठ परिशिष्ट में देखें। -प. सु. २. अ. ४, सु. ८-१२
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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