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सूत्र ४४५
अन्यतीथिकों द्वारा असावाम माक्षेप :स्थविरों द्वारा परिहार
पारिवाचार
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सुम्मे मं अमो रिज्नमाणे-अविन्ने, पजिगहेन्जमाणे अपडित हे आर्यों तुम देते हुए को "अदत्ता' ग्रहण करते हुए को गहिए, निसिरिज्ममाणे अनिस ।
"ग्रहण नहीं किया", पात्र में डाला जाता पदार्थ “नहीं जाता
गया" (मानते हो)। पुरे में जो ' मा प्रतिपादन मन
हे आर्य ! दिया जाता हुआ पदार्थ जब-तक पात्र में नहीं अंतरा केह अवहरिगना गाहस्वइस्स पं तं, नो खलु तं तुम्म, आया और बीच में से ही कोई उसे अपहरण करता है तो वह तए मे अदिन्नं गेहह, अरिन्नं भुजह, अदिन्नं सातिजह, गृहस्थ का है, वह तुम्हारा नहीं है, अतः तुम अदस्त ग्रहण करते
हो, अदस्त भोजन करते हो, अदत्त की अनुमति देते होतए गं तुम्मे अदिन्नं गेहमागा, अदिन्नं मुंजमाणा, अविन्नं इस प्रकार तुम अदस्त का ग्रहण करते हुए अदस्त का साइजमाणा तिधिलं तिषिहेणं असंजय-अविरय-अपरिय- भोजन करते हुए, अदत्त की अनुमति देते हुए विधि-विविध से अपस्वखाप पावकम्मा-जाव एतबाला यादि पवह।" असंमत्त-अविरत-पापकों के अनिरोधक, पापकों का प्रत्यायन
- वि. स. प. उ. , सु. १-१५ नहीं किये हुए-पावत्-एकान्त अशानी हो।"