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________________ २९२] चरगानुयोग सत्य वचन को छह उपमाएं सूत्र ४२३-४२४ भक्तिह, विज्जाहरवागणगमग-विजाण साहकं सरगमग-सिद्धिपहदेसगं यह सत्य वचन विद्याधरों की आकापयामिनी विद्या की सिद्धियों में साधन रूप है। स्वर्गमार्ग और सिद्धिमार्ग का दर्शक है । असत्य से रहित है। तं सच उज्जु अकुडिलं भूयस्थं अत्यओ विसुखं उज्जोयकर यह सरक सरल है, अकुटिल है, वास्तविक अर्थ का प्रतिपभासगं मवद सन्यभावाणं जोवलोए, अविसंथाह । पादक है, प्रयोजन से शुद्ध है, उद्योत करने वाला है, जीव लोक में ममस्त भावों को प्रकाशित करने वाला है, अविसंवादी है, जहरथमहरं पाचवं कयिमय व जंतं अच्छरकारणं यथार्थ में मधुर है । प्रत्यक्ष देवता के समान है. आश्चर्यजनक कार्यों का साधक है। १. अवत्यंतरेसु बहुएसु मगुसाणं, सच्चेग महासमुहमजो वि (१) अनेक अवस्थाओं में मनुष्य सत्य के प्रभाव से महा. मूडागिया वि पोया । समुद्र के मध्य में रहा हुआ भी डूबता नहीं है। २. सच्चेण य उदगसंभमम्मि वि ण बुजाण व मरति चाहं (२) सत्य के प्रभाव से समुद्र में भूले हुए जहाज और उनके से लहंति । नलाने वाले पानी के भंवरों में भी बते नहीं हैं. मरते नहीं हैं और किनारे लग जाते हैं। ३. सन्चेण य अमणिसममम्मि विन अमंति उगा (३) सत्य के प्रभाव से मनुष्य अग्नि का क्षोभ होने पर भी मणुस्सा। जलता नहीं है। ४. सण य तत्ततेल्ल-सउ-लोह-सीससगाई छिवंति पति (४) सत्य के प्रभाव से सरल मनुष्य तपे हए तेल, तांबा. पप जति मणस्सा। लोहा या सीसे को छुए या हथेली पर रखे तो भी जलता नहीं है। ५. सरचेण प मणुस्सा पश्वयकाकाहि मुरचते ण य मरति । (५) सत्य के प्रभाव से पर्वत पर से गिराये गए मनुष्य मरते नहीं है। ६. सच्चेण य परिणहिया अतिपंजरगया समराओ वि मिति (६) सत्य के प्रभाव से समर में शत्रुओं के मध्य में फगः अण्णहा व सच्चवाई। हुआ मनुष्य भी बिना घाव लगे निकल जाता है। ७. बहबंधभियोगवेर-धोरेहि पमुक्चंति य । (७) सत्यवादी पुरुष प्रबल शत्रुओं द्वारा की जाने वाली मारपीट, बन्धन और बलात्कार से भी मुक्त हो जाता है। ८, अमित्तमज्याहि णिहति अण्णहा य सच्चवाई। (6) सत्यवादी शत्रुओं के मध्य में आया हुआ भी निर्दोष निकल आता है। वाणि य देवयाओ करेंति सहाय समनवयणे रत्ताणं। () सत्यवादी को देवता भी सहायता करते हैं। महसु २, अ २, सु. १-३ सत्सवयणस्स छ उखमाओ सत्य वचन को छ उपमायें४२४. १. गंभोरयरं महासमुहाओ, ४२४. (१) सत्य महासागर से भी अधिक गम्भीर है, २. यिरयरगं मेवपश्यपाओ, (२) सत्य सुमेह से भी अधिक स्थिर है, ३. सोमयरगं चंदमंडलाओ, (३) सत्य चन्द्रमण्डल से भी अधिक सौम्य है, ४. रित्तयर सूरमालाओ, (४) सत्य सूर्यमण्डल से भी अधिक दीप्तिमान है, ५. विमलपरं सरपणयलाओ, (५) सत्य शरद ऋतु के आकाश मण्डल से भी अधिक निर्मल है, ६. सुरभियर गंधमावगाओ। (६) सत्य गन्धमादन पर्वत से भी अधिक सुगन्धमय है। - - - - -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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