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सूत्र ३७६-३८०
निप्रंग्य द्वारा निर्ग्रन्थी के गवादि को चिकित्सा करवाने के प्रायश्चित्त सत्र
चारित्राचार
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आमज्जावेजम वा पमज्जावेज्ज मा,
मार्जन करवावे, प्रमार्जन करदावे, बामजासं वा, पमज्जावेतं वा सहज्जा।
मार्जन करवाने वाले का, प्रमार्जन करवाने वाले का अनु
मोदन करे। जे गिरगये गिरगंधीए कार्यति वर्ग
जो निन्य निर्जन्यी के शरीर पर हुए वण का, अण्णउत्यिएण या, पारस्थिएग बा,
अन्यतीथिक या गृहस्थ से, संबाहेग्ज वा, पलिमहावेज वा,
मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवाये, संशहावेत वा, पलिमहावसं वा साइजइ ।
मर्दन करवानेवाले का, प्रमर्दन करानेवाले का अनुमोदन
करे। जे णिगंथे गिग्गंथीए कार्यप्ति वर्ण
जो निर्गन्य निग्रंथी के शरीर पर हुए प्रण का, अम्पाउथिएण वा, गारथिएग वा,
अन्यतीथिक या गृहस्थ से, तेस्लेव वा-जाव-गवणीएचपा
तेल-पावत्-मक्खन, मक्खावेज्न वा, मिलिंगावेज्ज वा,
मलवावे, बार-बार मलवावे, मसावेतं का, मिलिंगाचतं वा साइन्जा।
मलवानेवाले का, बार-बार मलबानेवाले का अनुमोदन करें। जिगांधे णिगंथीए कायति वर्ण
जो निग्रन्थ निग्रंथी के शरीर पर हुए व्रण परअण्णउस्थिएण वा, गारस्थिएण वा,
अन्यतीथिक या गृहस्थ से, लोबेण वा-जाव-यग्ण वा.
लोध-यावत्-वर्ण का, उल्लोलावेज्ज वा, उम्बट्टावेज वा,
उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उस्लोसायत वा, उज्वट्रावतं वा साहग्जद ।
उबटन करवाने वाले का, बार-बार उबटन करवाने वाले
का अनुमोदन करे। ने णिगंथे णिगंथीए कायंसि यणं
जो निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के शरीर पर हुए व्रण को, अण्णउस्थिरण वा, गारस्थिएण था,
अन्यतीथिक या गृहस्थ द्वारा, सीओदग-वियर्डण वा, सिणोदग-वियण ना,
अचित्त शीत जल से या अचित उष्ण जल से, उक्छोलाउज वा, पक्षीयावेज्ज था,
घुलबावे बार-बार धुलवावे. उच्छोलात वा, पधोयावसं का साइजह ।
घुलवानेवाले का बार-बार खुलवानेवाले का अनुमोदन करे । मेणिगंथे णिग्गंधीए कापंसि वर्ग--
जो निग्रंथ निम्रन्थी के शरीर पर हुए श्रण को, अग्णउत्थिएम था, गायिएण वा,
अन्यतीथिक या गृहस्थ से, फूमावेज वा, त्यावेज मा,
रंगवावे बार-बार रंगबादे, फूमावेसं वा, रवावेंतं वा साइजमह ।
रंगवानेवाले का, बार-बार रंगवानेवाले का अनुमोदन करे । तं सेवमाणे आवग्जद बातम्मासियं परिहारद्वाणं उग्वाइपं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. र. १७, सु ८०-८५ आता है। णिगंण णिम्गमी गंडाइ तिगिच्छाकारावणस्स पायपिछत्त- निग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी के मण्डादि की चिकित्सा करवाने सुत्ताई
के प्रायश्चित्त सूत्र -- ३५०. गिरगंये णिग्गंधीए कार्यसि -
३८०, जो निग्रंथ निग्रन्थी के शरीर के, गरवा, पिलग या, अरदयं वा, असिय ना, मगंबलं वर, गण्ड-पावत्-भगन्दर कोअग्पत्थिएण बा, गारस्थिएण वा,
अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से, अन्नयरेणं तिरसेणं सस्थताएणं.
किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, किरायेज्ज वा विपिछवावेज्ज बा,
छेदन करवाये, बार-दार छेदन फरवावे, अभिलवायतं वा, विच्छिवावेत वा साइम्जा ।
हेदन करवाने वाले का, बार-बार छेदन करवाने वाले का अनुमोदन करे.