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________________ २३८) परगानुयोग वनस्पतिकायिक जीवों का आरम्भ न करने को प्रतिज्ञा सूत्र ३३७.३३ सेमि-संति संपामा पाणा माहपच संपतति य । मैं कहता हूँ सम्मातिम-उड़ने वाले प्राणी होते हैं, वे वायु से प्रताड़ित होकर नीचे गिर जाते हैं। फरिस ससु पुद्धा. एगे संघायमावति । जे सत्य संघाय- वेशणी वायु का स्पर्श-आघात होने से सिकुड़ जाते हैं। मावति, से तत्व परियावज्जति, जे सस्थ परिया- जब ये वायुस्पर्श से संघातित होते हैं-मिकुड़ जाते हैं, तब वे बरजति से सस्थ उद्यायन्ति । मूच्छित हो जाते हैं। जब वे मूर्छा को प्राप्त होते हैं तो वहाँ मर भी जाते हैं। एस्थ सत्थं समारम्भमाणस्स इच्छेते आरम्मा अपरिष्णाता जो यहाँ वायुकायिक जीवों का समारम्भ करता है, वह इन अयंति। __ आरम्भों से वास्तव में अनजान है। एत्वं सरर्थ समारम्भमाणस्स इन्चेते आरम्भा परिण्णाता जो वायुकायिक जीवों पर शस्त्र-समारम्भ नहीं करता, भवति । वास्तव में उसने आरम्भ को जान लिया है। तं परिणाय मेहावी व सयं बाउसस्थं समारज्जा, यह जानकर बुद्धिमान मनुष्य स्वयं वायुकाय का समारम्भ न करे। गेवण्मेहि बाउसत्यं समारभावेज्जा, दूसरों से वायुकाय का समारम्भ न करवाए। गवऽपणे वाढसत्थं समारभंते समजाणेज्जा। वायुकाय का समारम्भ करने वालों का अनुमोदन न करे । मासे बाउसत्य समारम्भा परिण्यााता भवति, से मुणी जिसने वायुकाय के शस्त्र-समारम्भ को जान लिया है, वही परिग्णायकम्मे तिबेमि। मुनि परिशात-कर्मा (हिसा का त्यागी) है। ऐसा मैं कहता हूँ। -आ. शु. १, अ. १, उ. ७. सु. ५७-६१ वणस्सहकाय अणारम्भ-करण यइपणा- . वनस्पतिकायिक जीबों का मारंभ न करने की प्रतिज्ञा१३८. धणसई चित्तमतमक्खाया अगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थसत्य- ३३८. शस्त्र परिणति से पूर्व वनस्पति चित्तवती (सजीव) कही परिणएणं, गई है। वह अनेक जीव और पृथक सत्वों (प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व) वाली है। तं जहा–अग्गवीया मूलबीया पोरबीया खंधनीया बीयरूहा उसके प्रकार ये है-अग्र-बीज, मूल-बीज, पर्व-बीज, स्कन्धसम्मुरिछमा तणलया। बीज, बीज-रूह, सम्मूछिम, तृण और लता। अगस्तइकाइया सीमा चिप्ससमवखाया अणेगजोषा पुको शस्त्र-परिणति से पूर्व बीजपर्यन्त (मूल से लेकर बीज तक) सत्ता अस्वस्थ सत्यपरिमएणं। वनस्पतिकायिक चित्तवान् कहे गये हैं। वे अनेक जीवों और - दस. अ. ४, सु. ८ पृथक् सत्वों वाले प्रत्येक जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व वाले हैं। से भिम वा भिक्षणी वा संजय विरम-पहिय-पच्चरखाय- संयत-विरत-प्रतिहत प्रत्याख्यात-पापकर्मा भिक्षु अथवा पावकम्मे, दिया था रामी वा एगो वा परिसागओ वा मुत्ते भिक्षुणी, दिन में या रात में, एकान्त में या परिषद् में, मोते या या जागरमाणे वा जागले । से बीएसु वा डीयपटिएसु वा रुवेसु वा सपद्विएसु वा बीजों पर, बीजों पर रखी हुई वस्तुओं पर, स्फुटित वीजों माएसु वा जायपाद्विएसु वा हरिएसु था हरियपद्विएसु वा पर, स्फुटित बीजों पर रखी हुई वस्तुओं पर, पत्ते आने की छिन्नेसु वा सिपाडिएसु वा सविससु वा सच्चित्तकोलडि- अवस्था वाली वनस्पति पर स्थित वस्तुओं पर, हरित पर, निस्सिएमु मा, म गछज्जा, न चिट्ठजा, न निसीएज्जा, हरित पर रखी हुई वस्तुओं पर, छिन्न वनस्पति के अंगों पर, न सुयडेजा, छिन्न वनस्पति के अंगों पर रखी हुई वस्तुओं पर, सचित्त वनस्पति पर, सचित्त कोल--अण्डों एवं काष्ठ-कीट-से युक्त काष्ट आदि पर न चले, न खड़ा रहे, न बैठे, न सोये, अग्नं न गमछायजाम चिट्ठावेज्जा न मिसियावेजा न दूसरों को न चलाए, न खड़ा करे, न बैठाए, न सुलाए, तुमटावेज्या,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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