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सत्र ३२३
अहिंसा स्वरूप के प्ररूपक और पालक
चारित्राचार
२२३
१. मणबलिएहि, २. पयलिएहि, ३. कापालिएहि ।
१. गाणबलिदहि, २. सणबलिएहि, ३. परित्तबलिदहि,
१. खीरासबेहि ३. मप्पियासदेहि
२. महुशासवेहि, ४. अक्खीणमहाणसिएहि,
१. चारणेहि, विज्बाहरेहि । चउत्थमत्तिएहि एवं-जाव-छम्मासमत्तिएँहि,
१. उक्खित्तचरएहित २. असचररहि, ५. लहपरएहि. ७. समुपाणचरएहि. ६. संसट्टकम्पिहि. ११. उणिहिएहि १३. संखावत्तिएहि. १५. अविटुलामिएहि, १७. आयंबिलएहि। १६. एक्कासपिएहि. २१. मिणपिरवाइएहि. २३. अंताहारेहि, २१. अरसाहारेहि २७. सूहाहारहिं. २६. अन्तजीवीहिं. ३१. सहजीवीहि, ३३. उषसन्तजीवीहि, ३५. विवित्तजीवोहिं ३६. अखीरमासप्पिएहि,
२. णिक्षितचरएहि, ४. पन्तवरहि, ६. अण्णइलाएहि, ८. मोणचरएहि, १०. सज्जायसंसटुकप्पिएहि. १२. सुद्धसणिएहि, १४. विट्ठलाभिएहि. १६. पुटुलामिएहि, १८. पुरिमदिवएहि २०. गिरिधारहि, २२. परिमियपिस्वाइएहिं, २४. पंक्षाहारेहि, २६. विरसाहारेहि २८. तुष्टाहारेहि ३०. पन्तमीवी हिं, ३२. तुच्छ जीवीहि, ३४. पसन्सजीले हि
(१) मनोबली, (२) वचनबली और (३) कायबली मुनियों ने
(१) ज्ञानबली, (२) दर्शनबली तथा (३) चारित्रबली महापुरुषों ने
(३) क्षीराखवलब्धिधारी, (२) मध्वानवलब्धियारी, (३) सपिरानवलधिधारी तथा (४) अक्षीण महानसलब्धि के धारकों ने,
(१) चारणों और विद्याधरों ने
चतुर्थभक्तिकों-एक-एक उपवास करने वालों से लेकर -यावत्-छ: मास भक्तिक तपस्त्रियों ने इसी प्रकार
(१) उत्क्षिप्तचरक, (२) निक्षिप्तचरक, (३) अन्तचरक, (४) प्रान्तचरक, (५) रूक्षचरक, (६) अन्नग्लायक, (७) समुदानचरक, (८) मोनचरक, (8) संसृष्टकल्पिक, (१०) तज्जातसंसष्टकल्पिक, (११) उपनिधिक, (१२) शुषणिक, (१३) संख्यादत्तिक, (१४) दृष्ट लाभिक, (१५) अदृष्टलाभिक, (१६) पृष्ठलाभिक, (१५) आचाम्लक, (१८) पुरिमाधिक, (१६) एकाशनिक, (२०) निर्दिकृतिक, (२१) भिन्नपिण्डपातिक, (२२) परिमितपिण्डपातिक, (२३) अन्ताहारी, (२४) प्रान्ताहारी, (२५) अरसाहारी, (२६) विरसाहारी, (२७) रूक्षाहारी, (२८) तुच्छाहारी, (२६) अन्तजीवी, (३०) प्रान्तजीवी, (३१) क्षजीवी, (१२) तुच्छजीवी, (३३) उपशान्तजीवी (३४) प्रशान्तजीवी, (३५) विविक्तजीवी तथा
(३६) दूध, मधु और घृत का यावज्जीवन त्याग करने बालों ने,
(३७) मद्य और मांस से रहित आहार करने वालों ने,
(१) कायोत्सर्ग करके एक स्थान पर स्थिर रहने का अभिग्रह करने वालों ने, (२) प्रतिमास्थायिकों ने, (३) स्थानोत्कटिकों ने, (४) वीरासनिकों ने, (३) नंषधिकों ने, (६) दण्डायतिफों ने (७) लगण्डशायिकों ने, (८) एकपार्श्वकों ने, (९) आतापकों ने, (१०) अप्रावतों ने, (११) अनिष्ठीवकों ने, (१२) अकंड्रयकों ने, (१३) धूतकेश श्मश्रु-लोम-नस अर्थात् सिर के बाल, दाढ़ी मूंछ
और नखों का संस्कार करने का त्याग करने वालों ने, (१४) सम्पूर्ण शरीर के प्रक्षालन आदि संस्कार के त्यागियों ने,
३७. अमज्जमसासिएहिं । १. ठाणाइएहि, २. परिमंठाइएहि, ३. ठाणुक्कडिएहिं, ४. वीरासगिएहिं. ५. गेसग्लिएहि ६. शाइएहिं, ७. समाईएहि . एगपासमेहि. ६. आयावएहि. १०. अध्यावएहिं, ११. अणिमएहि. १२. अकंडूयएहि, १३. घुमकेसमंसुलोमनसएहि,
१४. रम्बगायपडिकम्मनिष्पमुक्केहि समणुषिण्णा,