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२२०)
परमानुयोग
अहिसा के साठ नाम
सूत्र ३२१
१५. महतो,
१५. बुद्धी, १८.धिई, १६. समिती,
२०.रिबी, २१. विशी, २२. ठित्ती, २३. पुट्ठी,
२४. नंदा,
२५. महा,
२६. विसुद्धी, २७. लदी, २८. विसिविट्टी,
(१५) महती-समस्त प्रतों में महात्-प्रधान-जिनमें समस्त व्रतों का समावेश हो जाए ।
(१६) बोधि-धर्म प्राप्ति का कारण । (१७) बुद्धि-बुद्धि को सार्थकता प्रदान करने वाली। (१८) धृति---चित्त की धीरता - दृढता ।
(१६) समृद्धि-सव प्रकार की सम्पन्नता से युक्त जीवन को आनन्दित करने वाली ।
(२०) ऋद्धि-लक्ष्मी प्राप्ति का कारण । (२१) वृद्धि-~-पुण्य एवं धर्म की वृद्धि का कारण । (२२) स्थिति मुक्ति में प्रतिष्ठित करने वाली।
(२३) पुष्टि-पुण्यवृद्धि से जीवन को पुष्ट बनाने वाली अथवा पाप का अपचय करके पुष्प का उपचय करने वाली ।
(२४) नन्दा-स्व और पर को आनन्द-प्रमोद प्रदान करने थाली।
(२५) भद्रा ..स्व वा और पर का भद्र-कल्याण करने वाली।
(२६) विशुद्धि-आत्मा को विशिष्ट शुद्ध बनाने वाली। (२७) लब्धि-केवलज्ञान आदि लब्धियों का कारण ।
(२८) विशिष्ट दृष्टि - विचार और आचार में अनेकान्त प्रधान दर्शनवाली।
(२६) कल्याण-कल्याण या शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का कारण ।
(३०) मंगल-पाप-विनाशिनी, सुख उत्पन्न करने वाली, भव-सागर से तारने वाली।
(३१) प्रमोद-स्व-पर को हयं उत्पन्न करने वाली । (३२) विभूति-ऐश्वयं का कारण !
(३३) रक्षा-प्राणियों को दु:ख से बचाने की प्रकृतिरूप, आत्मा को सुरक्षित बनाने वाली ।
(३४) सिद्धावास-सिद्धों में निवास कराने वाली, मुक्तिधाम में पहुँचाने वाली मोक्ष हेतु।
(३५) अनानव-आते हुए कर्मों का निरोध करने वाली। (३६) केवली-स्थानम्- केवलियों के लिए स्थान रूप । (३७) शिव--सुख स्यरूप, उपद्रवों का शमन करने वाली। (३८) समिति-सम्यक् प्रवृति । (18) शील-सदाचार स्वरूपा, समीचीन आचार।
(४०) संयम-मन और इन्द्रियों का निरोध तथा जीन रक्षा रूप।
(४१) शीलपरिग्रह-सदाचार अथवा ब्रह्मपर्व का घरचारित्र का स्थान ।
२६. कल्लागं,
३०. मंगलं,
३३. पमोओ, ३२. विभूती, ३३. रक्सा ,
३४. सिद्धावासो,
१५. अपासपी, ३६. केवलीणठाण, ३७. सिव, ३८. समिई, २६. सोलं, ४०, संजमो तिप,
४१. सोलपरिघरो,