SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुत्र १२१ हिंसा के साठ नाम धारित्राचार [२१६ अहिंसाए सट्ठी नामाई३२६. सत्य पदम अहिंसा, सस-पावर-सम्पभूय खेमकरो। सीसे सभाषणायो, किचि धोर; तुगसं ॥ तस्थ परम अहिंसा। जा सा सवेव मयासुरस्स लोगस्स भवइ बोशे अहिंसा के साठ नाम--- ३२१. इन संवरद्वारों में प्रथम जो अहिंसा है, वह त्रस और स्यावर--समस्त जीवों का क्षेम-कुशल करने वाली है। मैं पाँच भावनाओं सहित अहिंसा के गुणों का कुछ कथन करूंगा। उन (पूर्वोक्त) पाँच संवरद्वारों में प्रथम संदरद्वार अहिंसा है। यह अहिंसा देवों, मनुष्यों और असुरों सहित समय लोक के लिए द्वीप अथवा दीए (दीपक) के समान है। त्राण है--विविध प्रकार के जागतिक दुःखों से पीडित जनों की रक्षा करने वाली है। शरणदात्री है, उन्हें शरण देने वाली है। कल्याणकामी जनों के लिए गति-गम्य है -प्राप्त करने योग्य है तया समस्त गुणों एवं सुखों का आधार है। (अहिंसा के निम्नलिखित नाम है।) (१) निर्वाण-- मुक्ति का कारण है। (२) निति-दुर्थ्यानरहित होने से मानसिक स्वस्थता ताणं सरणं गद्द पट्ठा। १. निम्वा, २. मिल्नु ३. समाही, ४.ससी ५. कित्ती, ६. कंसी, ७. रतोय, ८. बिरती य, ६.सुसंग, (३) समाधि-समता का कारण है। (४) शक्ति-आध्यात्मिक शक्ति या शक्ति का कारण है। (कही-कहीं "सती" के स्थान पर "सन्तो" पद मिलता है, जिसका अर्थ है—शांति, अहिंसा में परद्रोह की भावना का अभाव होता है, अतएव वद् शान्ति भी कहलाती है।) (५) कीति-कीति का कारण है। (६) कान्ति-अहिंसा के आराधक में कान्ति-तेजस्विता उत्पन्न हो जाती है, अतः वह बान्ति है। (७) रति--प्राणिमात्र के प्रति प्रीति, मैत्री, अनुरतिआत्मीयता को उत्पन्न करने के कारण वह रति है। (८) बिरति-पापों रो विरक्ति । (६) श्रुतांग-समीचीन श्रुतशान इसका कारण है, अर्थात् सत् शास्त्रों के अध्ययन मनन से अहिंसा उत्पन्न होती है, इस कारण इसे श्रुताग कहा गया है। (१०) तृप्ति-मन्तोषवृत्ति भी अहिंसा का एक अंग है। (११) दया-कष्ट पाते हुए, मरते हुए या दुःखित प्राणियों की करुणारित भाव से रक्षा करना, यथाशक्ति दूसरे के दुःख का निवारण करना । (१२) विमुक्ति -बन्धनों से पूरी तरह छुड़ाने वाली। (१३) क्षान्ति-क्षमा, यह भी अहिंग का रूप है। (१४) सम्यक्त्वाराधना---सम्यक्त्व की आराधना-सेवना कारण। १०. तिती, ११. क्या, १२. विमुत्तो, १३. खंती, १४. समताराहणा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy